"भवभूति": अवतरणों में अंतर
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अनुनाद सिंह (वार्ता | योगदान) No edit summary |
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जगद्धर2 ‘मालती माधव’ की टीका में ‘ नाम्ना श्रीकण्ठः; प्रसिद्धया भवभूतिरित्यर्थः’ तथा त्रिपुरारि3 ने भी इसी नाटक की टीका में ‘भवभूतिरित व्यवहारे तस्येदं नामान्तरम्’ कहकर इसी मत का प्रतिपादन किया है कि श्रीकण्ठ का नाम था और भवभूति प्रसिद्धि तथा व्यवहार का नाम था।
‘उत्तररामचरित’ के टीकाकार घनश्याम के शब्द ‘भवात् शिवात् भूतिः भस्म सम्पद् यस्य ईश्वरेणैव जाति द्विजरूपेण विभूतिर्दत्ता’—कि स्वयं भव (शिव) ने कवि को अपनी ‘भूति’ प्रदान की, अतः उसे ‘भवभूति’ पुकारा गया, - इसी मत की पुष्टि करते हैं।
==रचनाएँ==
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