"हलायुध": अवतरणों में अंतर

No edit summary
पंक्ति 1:
'''हलायुध''' या '''भट्ठ हलायुध''' (समय लगभग १० वीं० शताब्दी ई०) [[भारत]] के प्रसिद्ध [[ज्योतिषविद्]], [[गणितज्ञ]] और [[वैज्ञानिक]] थे। उन्होने [[मृतसंजीवनी]] नामक ग्रन्थ की रचना की जो [[पिङ्गल]] के [[छन्दशास्त्र]] का भाष्य है। इस ग्रन्थ में [[पास्कल त्रिभुज]] का स्पष्ट वर्णन है। इस ग्रन्थ में इसे ''मेरु-प्रस्तार'' कहा गया है।
 
भट्ठ हलायुध के [[शब्दकोश|कोश[[]] का नाम '''अभिधानरत्नमाला''' है, पर 'हलायुधकोश' नाम से यह अधिक प्रसिद्ध है । इसके पाँच कांड (स्वर, भूमि, पाताल, सामान्य और अनेकार्थ ) हैं । प्रथम चार पर्यायवाची कांड हैं, पंचम में अनेकार्थक तथा अव्ययशब्द संगृहीत है । इसमें पूर्वकोशकारों के रूप में अमरदत्त, वरुरुचि, भागुरि और वोपालित के नाम उद्धृत है । रूपभेद से लिंग-बोधन की प्रक्रिया अपनाई गई है । ९०० श्लोकों के इस ग्रंथ पर [[अमरकोश]] का पर्याप्त प्रभाव जान पड़ता है । 'कविरहस्य' भी इनका रचित है जिसमें 'हलायुध' ने धातुओं के लट्लकार के भिन्न भिन्न रूपों का विशदीकरण भी किया है ।
 
==इन्हें भी देखें==