"पाण्डु": अवतरणों में अंतर

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'''पाण्डु''' [[महाभारत]] के एक पात्र थे। वे [[पाण्डव|पाण्डवों]] के पिता और [[धृतराष्ट्र]] के कनिष्ट भ्राता थे। जिस समय [[हस्तिनापुर]] का सिंहासन सम्भालने के लिए [[धृतराष्ट्र]] को मनोनीत किया जा रहा था तब [[विदुर]] ने राजनीति ज्ञान की दुहाई देकर की एक नेत्रहीन व्यक्ति राजा नहीं हो सकता, पाण्डु को नरेश घोषित किया गया।
 
एक बार महाराज पाण्डु अपनी दोनोदोनों रानियों [[कुन्ती]] और [[माद्री]] के साथ वन विहार कर रहे थे। एक दिन उन्होंने मृग के भ्रम में बाण चला दिया जो एक ऋषि को लग गया। उस समय ऋषि अपनी पत्नी के साथ सहवासरत थे और उसी अवस्था में उन्हें बाण लग गया, किन्तु उन्होंने पाण्डु को श्राप दे दिया की जिस अवस्था में उनकी मृत्यु हो रही है उसी प्रकार जब भी पाण्डु अपनी पत्नियों के साथ सहवासरत होंगे तो उनकी भी मृत्यु हो जाएगी। उस समय पाण्डु की कोई सन्तान नहीं थी और इस कारण वे विचलित हो गए। यह बात उन्होंने अपनी बड़ी रानी [[कुन्ती]] को बताई। तब कुन्ती ने कहा की ऋषि [[दुर्वासा]] ने उन्हें वरदान दिया था की वे किसी भी देवता का आवाह्न करके उनसे सन्तान माँग सकतीं हैं। तब पाण्डु के कहने पर कुन्ती ने एक-एक कर कई देवताओं का आवाह्न किया। इस प्रकार [[माद्री]] ने भी देवताओं का आवाह्न किया। तब कुन्ती को तीन और माद्री को दो पुत्र प्राप्त हुए जिनमें [[युधिष्ठिर]] सब्से ज्येष्ठ थे।
 
एक दिन वर्ष ऋतु का समय था और पाण्डु और माद्री वन में ही थे। उस समय पाण्डु अपने काम वेग पर नितन्त्रण ना रख सके और माद्री के साथ सहवास करने को उतावले हो गए और तब ऋषि का श्राप महाराज पाण्डु की मृत्यु के रूप में फलित हुआ।