"संयुक्त निकाय": अवतरणों में अंतर

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==सलायतन वग्ग==
1. सलायतन सं. - चक्षुरादि इंद्रियों की आसक्ति के निरोध से अहंभाव का निरोध।
1. सलायतन सं. - चक्षुरादि इंद्रियों की आसक्ति के निरोध से अहंभाव का निरोध। 2. वेदना सं. - तीन प्रकार की वेदनाओं का विवरण। 3. मातुगाम सं. - स्त्रियों के विषय में, 4. जंबुखादक सं. - जंबु को सारिपुत्र का उपदेश। राग, द्वेष और मोह का निरोध ही निर्वाण। अष्टांगिक मार्ग से उसकी प्राप्ति। 5. सामंडक सं. - सामंडक परिव्राजक को सारिपुत्र का उपदेश। विषयावस्तु पूर्वसूत्र के समान। 6. मोग्गल्लान सं. - मौद्गल्यायन द्वारा रूप, अरूप और अनिमित्त समाधियों का विवरण। 7. चित्त सं. - चित्त गृहपति का उपदेश। तृष्णा ही बंधन है, न कि इंद्रिय या विषय। 8. गमणी सं. - भोगविलास और कायक्लेशों के दो अंतों को छोड़कर मध्यम मार्ग पर चलने का यह उपदेश कई ग्रामप्रमुखों को दिया गया था। 9. असंखत सं. - असंस्कृत निर्वाण की प्राप्ति का मार्ग। 10. अव्याकत सं. - अव्याकृत् अकथनीय वस्तुओ का निर्देश।
 
2. वेदना सं. - तीन प्रकार की वेदनाओं का विवरण।
 
3. मातुगाम सं. - स्त्रियों के विषय में,
 
4. जंबुखादक सं. - जंबु को सारिपुत्र का उपदेश। राग, द्वेष और मोह का निरोध ही निर्वाण। अष्टांगिक मार्ग से उसकी प्राप्ति।
 
5. सामंडक सं. - सामंडक परिव्राजक को सारिपुत्र का उपदेश। विषयावस्तु पूर्वसूत्र के समान।
 
6. मोग्गल्लान सं. - मौद्गल्यायन द्वारा रूप, अरूप और अनिमित्त समाधियों का विवरण।
 
7. चित्त सं. - चित्त गृहपति का उपदेश। तृष्णा ही बंधन है, न कि इंद्रिय या विषय।
 
8. गमणी सं. - भोगविलास और कायक्लेशों के दो अंतों को छोड़कर मध्यम मार्ग पर चलने का यह उपदेश कई ग्रामप्रमुखों को दिया गया था।
 
9. असंखत सं. - असंस्कृत निर्वाण की प्राप्ति का मार्ग।
 
10. अव्याकत सं. - अव्याकृत् अकथनीय वस्तुओ का निर्देश।
 
[[श्रेणी:बौद्ध धर्म]]