"पैशाची भाषा": अवतरणों में अंतर

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[[पश्तो]] तथा उसके समीपवर्ती दरद भाषाएँ पैशाची से उत्पन्न एवं प्रभावित हुई पाई जाती हैं।
 
== लक्षण ==
हेमचंद्रादि प्राकृत व्याकरणों में इसके निम्न लक्षण पाए जाते हैं :
 
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अन्य प्राकृतों से मिलान करने पर पैशाची की ज्ञ के स्थान पर तथा ञ्ञ तथा ल् के स्थान पर र् की प्रवृत्तियाँ [[पालि]] से मिलती हैं। र् के स्थान पर लू की प्रवृत्ति मागधी प्राकृत का विक्षेप लक्षण ही है। तीनों सकारों के स्थान पर स्, कर्ताकारक एकवचन की विभक्ति ओ, पैशाची को शौरसेनी से मिलाती है। यथार्थत: शौरसेनी से उसका सबसे अधिक साम्य है और इसलिये वैयाकरणों ने उसकी शेष प्रवृत्तियाँ "शौरसेनीवत्" निर्दिष्ट की हें।
 
== साहित्य ==
पैशाची की उक्त प्रवृत्तियों में से कुछ अशोक की पश्चिमोत्तर प्रदेशवर्ती [[खरोष्ठी लिपि]] की शहबाजगढ़ी एवं मानसेरा की धर्मलिपियों में तथा इसी लिपि में लिखे गए प्राचीन मध्य एशिया-खोतान-तथा पंजाब से प्राप्त हुए लेखों में मिलती हैं। पैशाची भाषा में विरचित गुणाढ्य कृत [[बृहत्कथा]] की भारतीय साहित्य में बड़ी ख्याति है। दंडी ने इसके संबंध में कहा है - "भूतभाषमयीं प्राहुरद्भुतां बृहत्कृथाम्।" दुर्भाग्यत: यह मूल ग्रंथ अब उपलब्ध नहीं है, किंतु उसके संस्कृत अनुवाद [[बृहत्कथामंजरी]], [[कथासरित्सागर]] आदि मिलते हैं। प्राकृत व्याकरणों एवं संस्कृत नाटकों में खंडश: इस भाषा के अंश प्राप्त होते हैं।
 
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[[श्रेणी:भाषा]]
 
[[en:Paisaci language]]
[[mr:पैशाची भाषा]]
[[ru:Пайшачи]]