"मेघवाल": अवतरणों में अंतर

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मेघ, मेघवाल या मेघवार, (उर्दू:میگھواڑ, सिंधी:ميگھواڙ) लोग मुख्य रूप से उत्तर पश्चिम भारत में रहते हैं और कुछ आबादी पाकिस्तान में है. सन् 2008 में, उनकी कुल जनसंख्या अनुमानतः 2,807,000 थी, जिनमें से 2760000 भारत में रहते थे. इनमें से वे 659000 मारवाड़ी, 663000 हिंदी, 230000 डोगरी, 175000 पंजाबी और विभिन्न अन्य क्षेत्रीय भाषाएँ बोलते हैं. एक अनुसूचित जाति के रूप में इनका पारंपरिक व्यवसाय बुनाई रहा है. अधिकांश हिंदू धर्म से हैं, ऋषि मेघ, कबीर, रामदेवजी और बंकर माताजी उनके प्रमुख आराध्य हैं. मेघवंश को राजऋषि वृत्र या मेघ ऋषि से उत्पन्न जाना जाता है.[1] [2] [3][4]

जम्मू, भारत में एक समारोह के दौरान मेघ बालिकाओं का एक समूह


मूल

अलेक्ज़ेंडर कनिंघम ने अपनी 1871 में छपी पुस्तक ‘सर्वे ऑफ इंडिया’ में प्रतिपादित किया कि आर्यों के आगमन से पूर्व मेघ असीरिया से पंजाब में आए और सप्त सिंधु (सात नदियों की भूमि) पर बस गए. आर्यों के दबाव के तहत, वे संभवतः पाषाण युग (1400-1200 वर्ष ईसा पूर्व) के दौरान महाराष्ट्र और विंध्याचल क्षेत्र और बाद में बिहार और उड़ीसा में भी बसे..[5] वे सिंधु घाटी की सभ्यता से संबंधित हैं.[6] वे एक संत ऋषि मेघ के वंशज होने का दावा करते हैं,[1] जो अपनी प्रार्थना से बादलों (मेघों) से बारिश ला सकता था.[7] ‘मेघवार’ शब्द संस्कृत शब्द ‘मेघ’ से निकला है जिसका अर्थ है बादल और बारिश और ‘वार’ का अर्थ है ‘युद्ध’, एक ‘समूह’, ‘बेटा’ और ‘बच्चे’ (संस्कृत: वार:).[8][9] अतः ‘मेघवाल’ और ‘मेघवार’ शब्दशः एक लोग हैं, जो मेघवंश के हैं.[10] यह भी कहा जाता है कि मेघ जम्मू और कश्मीर के पर्वतीय क्षेत्रों में रहते थे जहाँ बादलों की गतिविधि बहुत होती है. वहाँ रहने वाले लोगों को स्वाभाविक ही (मेघ, बादल) नाम दे दिया गया. मिरासियों (पारंपरिक लोक कलाकार) द्वारा सुनाई जाने वाली लोक-कथाओं में मेघों को सूर्यवंश से जोड़ा जाता है जिस वंश से भगवान राम हुए हैं.[11]

पौराणिक संकेत

भारतीय पौराणिक कथाओं में राजऋषि वृत्र धार्मिक प्रमुख था और वह सप्त सिंधु क्षेत्र का राजा भी था. समस्त भारत पर शासन करने वाले नागवंशियों का वह पूर्वज था. नागवंशी अपने व्यवहार, शैली, योग्यता और उनकी गुणवत्ता में ईश्वरीय गुणों के लिए जाने जाते थे. वास्तुकला के वे विशेषज्ञ थे. वे नाग या अजगर की पूजा करते थे. मेघवालों को हिरण्यकश्यप, प्रह्लाद, हिरण्याक्ष, विरोचन, राजा महाबली (मावेली), बाण आदि के साथ भी जोड़ा जाता है. [12]

ऐतिहासिक चिह्न

मौर्य काल के दौरान मेघवंश के चेदी राजाओं ने कलिंग पर शासन किया. वे अपने नाम के साथ महामेघवाहन जोड़ते थे और स्वयं को महामेघवंश का मानते थे. [13] कलिंग के राजा खारवेल ने मगध के पुष्यमित्र को पराजित किया और दक्षिण भारतीय (वर्तमान में तमिलनाडु) क्षेत्रों पर विजय पाई. कलिंग के राजा जैन धर्म का पालन करते थे. [14] मौर्यों के पतन के बाद, मेघवंश के राजाओं ने अपनी शक्ति और स्वतंत्रता पुनः प्राप्त कर ली. चेदी, वत्स, मत्स्य आदि शासकों को मेघ कहा जाता था. गुप्त वंश के उद्भव के समय कौशांबी एक स्वतंत्र राज्य था. इसका शासक मेघराज मेघवंश से था और बौद्ध धर्म का अनुयायी था. [15]

भौगोलिक वितरण

‘मेघवाल’ मारवाड़, राजस्थान से हैं. 1981 की जनगणना के अनुसार राजस्थान में मेघ, मेघवाल, मेंघवार के रूप में अधिसूचित लोगों की संयुक्त जनसंख्या 889,300 थी.[16] वे पश्चिमी गुजरात में (पाकिस्तान सीमा के पास) और भारत के अन्य भागों जैसे महाराष्ट्र, पंजाब और हरियाणा में रहते हैं. ‘मेघ’ जम्मू-कश्मीर और हिमाचल प्रदेश से हैं,[17] और उन्हें मेघ, आर्य मेघ और भगत के नाम से जाना जाता है. कुछ स्थानों पर वे गणेशिया, मेघवंशी, मिहाग, राखेसर, राखिया, रिखिया, रिषिया और अन्य नामों से भी जाने जाते हैं. कुछ महाशा भी यह दावा करते हैं कि वे मेघों से संबंधित हैं.[18] सन् 1947 में भारत के विभाजन के बाद मेघ, जो हिंदू धर्म में धर्मान्तरित हो गए थे, वे भारतीय क्षेत्र में पलायन कर गए.[19] उनमें से अधिकांश सियालकोट से आ कर पंजाब, जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में उनके लिए स्थापित शिविरों में आ बसे. पाकिस्तान में शब्द मेघवाल के स्थान पर मेघवार प्रयोग किया जाता है. सन् 1991 में पंजाब (भारत) में मेघों की जनसंख्या 105157 होने का अनुमान था.[20] सन् 2000 में पाकिस्तान में लगभग 226600 मेघवार रहते थे जो मुख्यतः उत्तर-पूर्व पंजाब के दादू और नवाबशाह शहरों में,[21] और सिंध में अधिकतर बदीन, मीरपुर खास, थारपरकर, और उमेरकोट जिलों में बसे थे.[उद्धरण चाहिए]

जाति का दर्जा

कई कश्मीरी मुसलमान, जो अविभाजित पंजाब और गुजरात राज्यों के मैदानों में आकर बसे और मेघों की भाँति बुनकर थे, ब्राह्मणों के वंशज हैं. मेघों के रीति-रिवाज़ ब्राह्मणों के रीति-रिवाज़ों से मिलते हैं.[11] ‘मेघ’ शब्द इस समुदाय से जुड़े किसी विशेष कार्य का संकेत नहीं करता जैसा कि कुछ अन्य समुदायों के मामले में होता था. राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात आदि राज्यों में इन्हें अन्य पिछड़ी जातियों के रूप में वर्गीकृत किया गया है.[22] अर्थात् वे भारत की ऐसी जातियों में शामिल हैं जिन्हें भारतीय संविधान की अनुसूची में निर्दिष्ट किया गया और कुछ विशेष प्रबंध किए गए ताकि वे जातिगत पूर्वाग्रहों के कारण उत्पन्न प्रतिकूल प्रभावों से उबर सकें. हिंदू उनके साथ हिंदुओं के रूप में वैसा व्यवहार नहीं करते जैसा वे हिंदू दायरे के अन्य हिंदुओं के साथ करते हैं. मेघों में यह सोच है कि उन्हें राजनीतिक प्रयोजन से हिंदुओं में गिना जाता है.[23]

जीवन शैली

मेघवंशियों का पेशा कृषि और बुनाई था. वे वर्ष में दो फसलें लेते थे. शेष समय वे अन्य संबंद्ध गतिविधियों में व्यस्त रहते थे. [24] राजस्थान के देहाती इलाके में अभी भी इस समुदाय के कई लोग अभी भी छोटी बस्तियों में रहते हैं. उनके आवास गारे की ईंट से बनी गोलाकार झोपडि़याँ हैं जिन पर रंगीन ज्यामितीय डिजाइन चित्रित होते हैं और जिन्हें विस्तृत जड़ाऊ दर्पण कार्य से सजाया गया होता है.[25] बीते समय में मेघवाल समुदाय का मुख्य व्यवसाय कृषिश्रम था, बुनाई, विशेष रूप से खादी और काष्ठकार्य था और ये अभी भी उनके मुख्य व्यवसायों में हैं. महिलाएँ अपने कढ़ाई के काम के लिए प्रसिद्ध हैं और ऊन तथा सूती कपड़े की बढ़िया बुनकर हैं.[26][27]

मेघवंशियों में से कुछ राजस्थान के गांवों से मुंबई जैसे बड़े शहरों चले गए हैं. सन् 1936 में बी.एच मेहता, शोधकर्ता ने एक अध्ययन में कहा कि गाँव के मनहूस जीवन से बचने के लिए उनमें से अधिकतर शहरों में गए और महसूस किया कि शहर में भीड़ और अस्वास्थ्यकर परिस्थितियों के बावजूद उनके जीवन में सुधार हुआ है.[28] आज मेघवालों में शिक्षितों की संख्या बढ़ी है और सरकारी नौकरियाँ प्राप्त कर रहे हैं. पंजाब में विशेषकर अमृतसर, जालंधर और लुधियाना जैसे शहरों में वे खेल, हौज़री, शल्य-चिकित्सा उपकरणों और धातुओं से वस्तुओं का उत्पादन करने वाले कारखानों में मज़दूरी कर रहे हैं. उनमें से कुछ का अपना स्वयं का व्यवसाय या लघु उद्योग है. जीवन यापन के लिए छोटा व्यापार और सेवा इकाइयाँ उनका प्रमुख सहारा है.[29] जम्मू-कश्मीर में भूमि सुधारों के सफल कार्यान्वयन के बाद उनमें से कई छोटे किसान बन गए. पाकिस्तान से भारत में आने के बाद मेघों को भी अलवर (राजस्थान) में बंजर भूमि में दी गई. बाबू गोपी चंद ने उन्हें इस प्रक्रिया में बहुत सहायता की. यह अब उपजाऊ भूमि है.

उनके प्रधान भोजन में चावल, गेहूं और मक्का शामिल है, और दालों में मूंग, उड़द और चना. वे शाकाहारी नहीं हैं परंतु अंडा, मछली, चिकन और मटन खाते हैं जब यह उपलब्ध हो. वे सुअर, गाय और भैंस का मांस नहीं खाते.[7] जम्मू में एक मेघ धार्मिक नेता भगता साध (केरन वाले) के नेतृत्व में एक बहुत बड़ा मेघ समूह शाकाहारी बना.[उद्धरण चाहिए]

पारंपरिक मेघवाल समाज में महिलाओं का दर्जा कमतर है. परिवारों के बीच बातचीत के माध्यम से यौवन से पहले ही विवाह तय कर दिए जाते हैं. शादी के बाद पत्नी पति के घर में आ जाती है. प्रसव के समय वह मायके में जाती है. पिता द्वारा बच्चों का उत्तर दायित्व लेने और पत्नी को मुआवजा देने के बाद तलाक की अनुमति देने की परंपरा है. किसी बात के लिए नापसंद व्यक्ति का हुक्का-पानी बंद करने की एक सामाजिक बुराई मेघों में है. इसे तुच्छ मामलों में भी इस्तेमाल किया जाता है. इससे मेघ महिलाओं के लिए सामाजिक कठिनाइयाँ बढ़ी हैं.[11]

धर्म

मेघवालों के प्रारंभिक इतिहास या उनके धर्म के बारे में बहुत कम जानकारी उपलब्ध है. संकेत मिलते हैं कि मेघ शिव और नाग (ड्रैगन के उपासक थे).[30] मेघवाल राजा बली को भगवान के रूप में मानते हैं और उनकी वापसी के लिए प्रार्थना करते हैं.[31] कई सदियों से केरल में यही प्रार्थना ओणम त्योहार का वृहद् रूप धारण कर चुकी है. वे एक नास्तिक और समतावादी ऋषि चार्वाक के भी मानने वाले थे. आर्य चार्वाक के विरोधी थे. दबाव जारी रहा और चार्वाक धर्म का पूरा साहित्य जला दिया गया. [32] इस बात का प्रमाण मिलता है कि 13वीं शताब्दी में कई मेघवाल इस्लाम की शिया निज़ारी शाखा के अनुयायी बन गए और कि निज़ारी विश्वास के संकेत उनके अनुष्ठानों और मिथकों में मिलते हैं.[33] अधिकांश मेघों को अब हिंदू माना जाता है, हालांकि कुछ इस्लाम या ईसाई धर्म जैसे अन्य धर्मों के भी अनुयायी हैं.

मध्यकालीन हिंदू पुनर्जागरण, जिसे भक्ति काल भी कहा जाता है, के दौरान राजस्थान के एक मेघवाल कर्ता राम महाराज, मेघवालों के आध्यात्मिक गुरु बने.[34] कहा जाता है कि 19 वीं सदी के दौरान मेघ आम तौर पर कबीरपंथी थे जो संतमत के संस्थापक संत सत्गुरु कबीर (1488 - 1512 ई.) के अनुयायी थे.[35] आज कई मेघवाल संतमत के अनुयायी हैं जो कच्चे रूप से जुड़े धार्मिक नेताओं का समूह है और जिनकी शिक्षाओं की विशेषता एक आंतरिक, एक दिव्य सिद्धांत के प्रति प्रेम भक्ति और समतावाद है, जो हिंदू जाति व्यवस्था पर आधारित गुणात्मक भेद और हिंदू तथा मुसलमानों के बीच गुणात्मक भेद के विरुद्ध है.[36] वर्ष 1910 तक, स्यालकोट के लगभग 36000 मेघ आर्यसमाजी बन गए थे [37] परंतु चंगुल को पहचानने के बाद सन् 1925 में वे ‘आद धर्म सोसाइटी’ में शामिल हो गए जो ऋषि रविदास, कबीर और नामदेव देव (ये सभी कमज़ोर जातियों की धार्मिक परंपराओं के प्रतिष्ठित महापुरुष हैं) को अपना आराध्य मानती थी.[38] भारत के एक सुधारवादी फकीर और राधास्वामी मत के एक गुरु बाबा फकीर चंद ने अपनी जगह सत्गुरू के रूप में काम करने के लिए भगत मुंशी राम को मनोनीत किया जो मेघ समुदाय से थे.[11]

राजस्थान में इनके मुख्य आराध्य बाबा रामदेवजी हैं जिनकी वेदवापूनम (अगस्त - सितम्बर) के दौरान पूजा की जाती है. मेघवाल धार्मिक नेता गोकुलदास ने अपनी वर्ष 1982 की पुस्तक ‘मेघवाल इतिहास’, जो मेघवालों के लिए सम्मान और उनकी सामाजिक स्थिति में सुधार का प्रयास है और जो मेघवाल समुदाय के इतिहास का पुनर्निर्माण करती है, में दावा किया है कि स्वामी रामदेव स्वयं मेघवाल थे.[39] गांव के मंदिरों में चामुंडा माता की प्रतिदिन पूजा की जाती है. विवाह के अवसर पर बंकरमाता को पूजा जाता है.[7] डालीबाई एक मेघवाल देवी है जिसकी पूजा रामदेव के साथ-साथ की जाती है.[16] भारत के जम्मू-कश्मीर, पंजाब, हिमाचल, हरियाणा राज्यों में पूर्वजपूजा (एक प्रकार का श्राद्ध) की जाती है. जम्मू-कश्मीर में डेरे-डेरियों पर पूर्वजों की वार्षिक पूजा प्रचलित है.[उद्धरण चाहिए] कुछ मेघवार पीर पिथोरो की पूजा करते हैं जिसका मंदिर मीरपुर खास के पास पिथोरो गांव में है.[40] केरन के बाबा भगता साध मेघों के धार्मिक नेता और आराध्य पुरुष थे जिन्होंने जम्मू-कश्मीर में मेघ समुदाय के आध्यात्मिक कल्याण के लिए कार्य किया. [41] बाबा मनमोहन दास ने बाबा भगता साध के उत्तराधिकारी बाबा जगदीश जी महाराज के निधन के बाद गुरु का स्थान ले लिया.

 
गाँव कलोई, ज़िला थारपारकर, सिंध, पाकिस्तान में एक मेघवाल महिला.

कला

राजस्थान में मेघवाल महिलाएँ उनकी सुंदर और विस्तृत वेशभूषा और आभूषणों के लिए प्रसिद्ध हैं. विवाहित महिलाओं को अक्सर सोने की नथिनी, झुमके और कंठहार पहने हुए देखा जा सकता है. यह सब दुल्हन को उसकी होने वाली सास "दुल्हन धन" के रूप में देती है. नथनियाँ और झुमके अक्सर रूबी, नीलम और पन्ना जैसे कीमती पत्थरों से सुसज्जित होते हैं. मेघवाल महिलाओं द्वारा कढ़ाई की गई वस्तुओं की बहुत मांग है. अपने काम में वे प्राथमिक रूप से लाल रंग का प्रयोग करती हैं जो स्थानीय कीड़ों से उत्पादित विशेष रंग से बनता है. सिंध और बलूचिस्तान में थार रेगिस्तान और गुजरात की मेघवाल महिलाओं को पारंपरिक कढ़ाई और रल्ली बनाने का निपुण कारीगर माना जाता है. हाथ से की गई मोहक कशीदाकारी की वस्तुएँ मेघवाल महिलाओं के दहेज का एक हिस्सा होती हैं.[42][43][44]

प्रमुख लोग

  • मिल्खी राम भगत पंजाब राज्य के सभी अनुसूचित जातियों के बीच पहले थे जिन्हें पंजाब सिविल सेवा (पीसीएस) के पहले बैच में चयनित किया गया. उन्होंने मजिस्ट्रेट और अन्य प्रशासनिक पदों पर कार्य किया और हंसराज, आईएएस और मास्टर दौलतराम के साथ मिल कर मेघों को अनुसूचित जाति में शामिल कराने के लिए काम किया.[45]
  • सुश्री सुमन भगत जम्मू-कश्मीर सरकार में स्वास्थ्य और चिकित्सा शिक्षा मंत्री के स्तर तक पहुँचीं.[46]
  • चूनी लाल भगत पहले मेघ थे जो पंजाब विधान सभा के सदस्य के रूप में निर्वाचित हुए. उन्होंने भारतीय जनता पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ा.[47]
  • सुश्री स्नेह लता कुमार भगत पंजाब के मेघों में से पहली महिला हैं जो सीधे आईएएस (भारतीय प्रशासनिक सेवा) अधिकारी बनीं. वे तब प्रकाश में आईं जब उन्होंने चेन्नई में अखिल भारतीय सिविल सेवा प्रतियोगिता के दौरान तैराकी स्पर्धाओं में दो रजत पदक जीते.[48]
  • सुश्री विमला भगत पहली मेघ थीं जिन्हें भारतीय प्रशासनिक सेवा में पदोन्नत किया गया. वे हिमाचल प्रदेश लोक सेवा आयोग की अध्यक्ष बनी.[49]
  • भंवर लाल मेघवाल राजस्थान के शिक्षा मंत्री बने.[50]
  • सुरेंदर वलसई मेघवार एक प्रसिद्ध पत्रकार और मीडिया प्रकोष्ठ, बिलावल हाउस, पाकिस्तान के मीडिया समन्वयक हैं. वे पाकिस्तान में मेघवार समुदाय के भीतर सबसे प्रमुख और प्रभावशाली व्यक्ति हैं. वे शिड्यूल्ड कास्ट फेडरेशन ऑफ पाकिस्तान के संस्थापक अध्यक्ष हैं.
  • मांगी लाल को विश्वकर्मा राष्ट्रीय पुरस्कार (1998) और श्रम श्री पुरस्कार (2003) मिला.[51]
  • प्रो. राजकुमार, राष्ट्रीय अध्यक्ष, भगत महासभा ने भारत में मेघों की एकता के लिए बहुत कार्य किया है. उन्होंने पंजाब, हरियाणा, जम्मू कश्मीर, राजस्थान आदि में भगत महासभा की राज्य इकाइयों को स्थापित किया है. वे मेघों के बीच जागरूकता पैदा करने के लिए सामाजिक नेटवर्किंग चला रहे हैं.

यह भी देखें


बाह्य सूत्र

संदर्भ

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