"सिंधु घाटी सभ्यता": अवतरणों में अंतर

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== आर्थिक जीवन ==
=== कृषि एवं पशुपालन ===
आज के मुकाबले सिन्धु प्रदेश पूर्व में बहुत ऊपजाऊ था। ईसा-पूर्व चौथी सदी में सिकन्दर के एक इतिदासकार ने कहा था कि सिन्ध इस देश के ऊपजाऊ क्षेत्रों में गिना जाता था। पूर्व काल में प्राकृतिक वनस्पति बहुत थीं जिसके कारण यहां अच्छी वर्षा होती थी। यहां के वनों से ईंटे पकाने और इमारत बनाने के लिए लकड़ी बड़े पैमाने पर इस्तेमाल में लाई गई जिसके कारण धीरे धीरे वनों का विस्तार सिमटता गया। सिन्धु की उर्वरता का एक कारण सिन्धु नदी से प्रतिवर्ष आने वाली बाढ़ भी थी। गांव की रक्षा के लिए खड़ी पकी ईंट की दीवार इंगित करती है बाढ़ हर साल आती थी। यहां के लोग बाढ़ के उतर जाने के बाद [[नवम्बरनवंबर]] के महीने में बाढ़ वाले मैदानों में बीज बो देते थे और अगली बाढ़ के आने से पहले अप्रील के महीने में गेँहू और जौ की फ़सल काट लेते थे। यहां कोई फावड़ा या फाल तो नहीं मिला है लेकिन कालीबंगां की प्राक्-हड़प्पा सभ्यता के जो कूँट (हलरेखा) मिले हैं उनसे आभास होता है कि राजस्थान में इस काल में हल जोते जाते थे।
 
सिन्धु घाटी सभ्यता के लोग [[गेंहू]], [[जौ]], [[राई]], [[मटर]], [[ज्वार्ज्वार]] आदि अनाज पैदा करते थे। वे दो किस्म की गेँहू पैदा करते थे। बनावली में मिला जौ उन्नत किस्म का है। इसके अलावा वे [[तिल]] और [[सरसों]] भी उपजाते थे। सबसे पहले [[कपास]] भी यहीं पैदा की गई। इसी के नाम पर यूनान के लोग इस सिन्डन (Sindon) कहने लगे। हड़प्पा योंतो एक कृषि प्रधान संस्कृति थी पर यहां के लोग पशुपालन भी करते थे। [[बैल]]-[[गाय]], [[भैंस]], [[बकरी]], [[भेंड़भेड़]] और [[सूअर]] पाला जाता था . यहां केहड़प्पाई लोगों को [[कूबडहाथी]]़ वाला सांड। लोग गधे औरहैं। हड़प्पाई लोगों को हाथी तथा [[गैंडा|गैंडे]] का ज्ञान था।
 
=== व्यापार ===
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== धार्मिक जीवन ==
[[चित्र:IndusValleySeals swastikas.JPG|thumbnail|right|260px]]
हड़प्पा में पकी मिट्टी की स्त्री मूर्तिकाएं भारी संख्या में मिली हैं। एक मूर्ति में स्त्री के गर्भ से निकलता एक पौधा दिखाया गया है। विद्वानों के मत में यह पृथ्वी देवी की प्रतिमा है और इसका निकट संबंध पौधों के जन्म और वृद्धि से रहा होगा। इसलिए मालूम होता है कि यहां के लोग धरती को उर्वरता की देवी समझते थे और इसकी पूजा उसी तरह करते थे जिस तरह मिस्र के लोग [[नील नदी]] की देवी आइसिस् की। लेकिन प्राचीन मिस्र की तरह यहां का समाज भी मातृ प्रधान था कि नहीं यह कहना मुश्किल है। कुछ वैदिक सूक्तों में पृथ्वी माता की स्तुति है, किन्तु उनकों कोई प्रमुखता नहीं दी गई है। कालान्तर में ही हिन्दू धर्म में मातृदेवी को उच्च स्थान मिला है। ईसा की छठी सदी और उसके बाद से ही [[दुर्गा]], [[अम्बाअंबा]], [[चंडी]] आदि देवियों को आराध्य देवियों का स्थान मिला।
 
यहां मिले सील पर पुरुष देवता का चित्र महायोगी आदिनाथ भगवान का है जो जैनो के पहले तीर्थकर है भैंसा वो भैंसा न होकर वेल {oxe}है जो आसन के नीचे पाया गया है। वो आदिनाथ का च्हिन है। यह सत्य है कि यहां पर लिंग पूजा का भी प्रचलन था परन्तु आदिनाथ यहां के प्रर्मुख देव थे। हिरण भगवान् शान्तिनाथ का च्हिन है। बाघ या शेर भागवान महावीर का च्हिन है।हाथी भगवान् अजिताथ का च्हिन है प्र्मानानुसार ऋग्वेद मे वरनित व्रात्य जाति जो वातरसना मुनि को पुजा करते थे वातरसना मुनि यानि जैन मुनि या जैन तीर्थकर व्रात्य यहां की प्रमुख जाति थी अन्य जातियोन मै नाग असुर थै और कई महान लोगो ने यह प्रमानित भी किया