"त्रिकोणीय सर्वेक्षण": अवतरणों में अंतर

No edit summary
पंक्ति 13:
(4) बिंदुओं के नियामकों का कलन।
 
सबसे पहला काम स्टेशनों का चयन और उन्हें चिह्नित करना हेता है। स्टेशन बिंदु ऐसे चुने जाते हैं जो आठ से अस्सी किलामीटर तक एक दूसरे से दूर हों ओर सुघटित त्रिभुजमाला बनाएँ। त्रिभुजमाला सामान्यत: तीन प्रकार की होती हैं। एक बिंदु पर मिलनेवाले त्रिभुज, या त्रिभुजों के दूसरे सिरों पर बने स्टेशन, परस्पर दृष्टिगोचर हों और ऐसे स्थल पर बने हों जिससे प्रत्येक त्रिभुज के शीर्षबिंदु पर कोणनापने का यंत्र, [[थियोडोलाइट]], रखकर कोण पढ़े जा सकें। कोण एक ही बिंदु से और एक ही बिंदु को पढ़े जाए, इस सुविधा के लिए प्रत्येक स्टेशन को एक पत्थर पर बिंदु खोद कर चिह्नित कर देते हैं। बिंदु की स्थिति ठीक और सही पहचानने के लिये उसके चारों ओर एक वृत बना दिया जाता है। ऐसा स्थिर पत्थर यदि उस स्थल पर प्राकृतिक रूप से उपलब्ध न हो तो पत्थर अलग से लाकर ऐसे गाड़ दिया जाता है कि वृत और बिंदुवाली सतह पृथ्वी की सतह से मिली बाहर दिखाई देती रहे, जिससे सर्वेक्षण कितनी भी अवधि से बाद उस स्थान पर जाए तो स्टेशन को पहचानने में समर्थ हो। बहुधा सुरक्षा की दृष्टि से सर्वेक्षक दो पत्थरों पर वृत्त और केंद्रबिंदु बनाता है। एक को लगभग एक मीटर गहरा पृथ्वी के भीतर गाड़ देता है और दूसरा पृथ्वी की सतह पर ऐसे रखता है कि दोनों वृत्तों के बीच खुदे केंद्रबिंदु एक ही ऊर्ध्वाधर रेखा पर पड़ें। दूर से देखने की सुविधा के लिये स्टेशनों के आस पास कुछ संकेतचिह्न लगा दिए जाते हैं।
 
जिस क्षेत्र में [[सर्वेक्षण]] करना हो उसमें यदि दो बिंदु ऐसे उपलब्ध हों जो परस्पर दृष्टिगोचर हों और उनके नियामक (coordinates) ज्ञात हों तो एक तीसरा समुचित बिंदु चुनकर प्रारंभिक त्रिभुज उसपर बनाया जा सकता है। '''किसी भी त्रिभुजमाला (triangulation network) में आरंभ करने के लिये एक भुजा ज्ञात होना आवश्यक है।''' ऐसी भुजा को '''आधाररेखा''' कहते हैं। आधार-रेखा के सिरे के बिंदुओं के नियामक ज्ञात हों, तो गणना द्वारा उसकी लंबाई निकाली जा सकती है। उदाहरणार्थ, यदि उन बिंदुओं के नियामक मूलबिंदु (origin) से उत्तर-दक्षिण रेखा, कोटि (ordinate), पर क्रमश: उ1 (N1), उ2 (N2), तथा पूर्व-पश्चिम रेखा, भुज (abscisaa), पर पू1 (E1), पू2 (E2) हों तो भुजा की होगी।लम्बाई उसहोगी भुजा का उत्तर दिशा से दक्षिणवर्ती कोण (clockwise angle):
 
 
इस कोण की आवश्यकता नियामकों की गणना में होती है। इसे दिङ्मान (bearing) कहते हैं।
उस भुजा का उत्तर दिशा से दक्षिणवर्ती कोण (clockwise angle)
 
इस कोण की आवश्यकता नियामकों की गणना में होती है। इसे '''दिङ्मान''' (bearing) कहते हैं।
 
यदि ऐसे दो बिंदु उपलब्ध न हों तो आधार उसी समय नापकर स्थापित किया जाता है। इसके लिये सर्वेक्षक आरंभ करने वाले बिंदु के आसपास एक सुविधाजनक समतल भूखंड पर, यथार्थ माप देनेवाले फीते से, एक रेखा अ आ नापता है। आजकल मुख्यत: यह नाप फीते को रज्जुवक्र (catenary) में टाँग कर लेते हैं। फीते के सिरों के बीच यथार्थ क्षैतिज दूरी गणना द्वारा निकाल ली जाती है। उस पर क्रमश: ऐसे त्रिभुज बनाए जाते हैं कि पहले एक या दो त्रिभुजों को छोड़कर किसी भी त्रिभुज का कोई भी कोण 20 डिग्री से कम न हो। आधार भुजा से आरंभ करते समय दो कोण इ और ई 3 डिग्री तक के ले लिए जाते हैं। मगर इन्हें आवृत्ति विधि (method of repetition) से बहुत ही यथार्थ नापते हैं।