"जैसलमेर में धर्म": अवतरणों में अंतर

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[[भारतवर्ष]] की भूमि सदैव से धर्म प्रधान रही है, यहाँ पर धर्म के बिना जीवन की कल्पना भी नही की जा सकती है। '''[[जैसलमेर]]''' राज्य का विस्तार भू-भाग भी इस भावना से मुक्त नहीं रहा।
 
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महारावल मूलराज (१७६१से १८१९ ई.) के समय में जो धार्मिक लहर प्रवाहित हुई, वह अपने आप में अनोखा उदाहरण है। मूलराज के समय जैसलमेर नगर में वल्लभ संप्रदाय के स्वामी ने यहाँ छः मास तक प्रवास किया। उनके उपदेशों से मूलराज इतने प्रभावित हुए कि उन्होने सपरिवार वल्लभ संप्रदाय ग्रहण कर लिया। तदुपरांत प्रजा के अधिकांश जनों ने भी इस संप्रदाय में दीक्षा ग्रहण कर ली, इसमें हमेश्वरी तथा भाटिया समाज प्रमुख था। यह संप्रदाय आज भी इस धर्म का पालन करता है। मूलराज द्वारा इसी तारतम्य में वल्लभ कुल के स्वरुपों के अर्थात गिरधारी जी का मंदिर, बांकेबिहारी जी का मंदिर, मदनमोहन जी का मंदिर, गोवर्धन नाथ जी का मंदिर मथुरानाथ जी का मंदिरों का निर्माण कराया। महारावल मूलराज द्वारा पुष्टिमार्गीय वल्लभ संप्रदाय स्वीकार करने के बावजूद अन्य संप्रदायों का समान आदर किया गया, अतः उन्होंने अपनी माता सोढ़ी जी की आज्ञा से सीताराम का मंदिर बनवाया। इसी क्रम में १७७० ई. में घङ्सीसर नामक तङाग के किनारे देव चंद्रशेखर महादेव मंदिर बनवाया। सन् १७९७ में गोरखनाथ का मंदिर तथा अम्बिका देवी के मंदिरों के निर्माण कार्य भी महारावल के धार्मिक सहिष्णुता के सजीव उदाहरण है।
 
 
== जैन धर्म ==
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महारावल मूलराज व उनके उत्तराधिकारी गजसिंह के राज्यकाल में भी जैसलमेर राज्य में जैन धर्म की निरंतर प्रगति होती रही। इनके काल में पादुका स्थापन, स्तम्भों का निर्माण, मंदिर की स्थापना व उत्सवों के आयोजन में प्रचुर धन खर्च किया गया, संघ यात्रा रथयात्रा आदि के भी कई आयोजन किये गये। १८४० ई. अमरसागर नामक स्थल पर आदिनाथ जी की मूर्किंत स्थापित कर भव्य मंदिर निर्किंमत कराया गया था। इस प्रकार जैन धर्म राज्य के प्रारंभिक काल से लेकर आद्यावदि तक यहाँ प्रभावशाली रहा। अपनी सुरक्षित भौगोलिक स्थिति के कारण यहाँ जैन मुनियों, धर्माचायों ने प्रश्रय लिया व अन्य स्थानों से दुर्लभ ग्रंथ लाकर तथा यहाँ रहकर उनकी रचना कर एक विशाल ग्रंथालयों में २६८३ ग्रंथ सुरक्षित किय। जैसलमेर राज्य के जैन धर्म के बारे में सबसे महत्वपूर्ण पक्ष यह है कि यहाँ के शासकों द्वारा इस धर्म के पालन करने वालों को पूर्ण राज्याश्रय दिया, किन्तु स्वयं उस धर्म से दीक्षित नहीं हुए, साथ ही जैन धर्म से प्रभावित होने के पश्चात् भी उन्होंने अन्य किसी धर्म का तिरस्कार या अवनति में हिस्सा नहीं लिया।
 
 
== इस्लाम धर्म ==