"पंजाबी साहित्य": अवतरणों में अंतर

No edit summary
छो साँचा {{आधार}}
पंक्ति 1:
{{आधार}}
 
'''पंजाबी साहित्य''' का आरंभ कब से होता है, इस विषय में विद्वानों का मतैक्य नहीं है। [[फरीद]] को [[पंजाबी]] का आदि कवि कहा जाता है ; किंतु यदि इस बात को स्वीकार किया जाय कि जिन फरीद की बाणी "[[आदि ग्रंथ]]" में संगृहीत है वे फरीद सानी ही थे तो कहना पड़ेगा कि 16वीं शती से पहले का पंजाबी साहित्य उपलब्ध नहीं है। इस दृष्टि से [[गुरु नानक]] को ही पंजाबी का आदि कवि मानना होगा। "आदि ग्रंथ" पंजाबी का आदि ग्रंथ है। इसमें सात गुरुओं और 16 भक्तों की वाणियाँ संगृहीत हैं। पदों की कुल संख्या 3384 है। गुरु नानक की रचनाओं में सर्वप्रसिद्ध "[[जपुजी]]" है; इसके अतिरिक्त "आसा दी वार," "सोहिला" और "रहिरास" तथा लगभग 500 फुटकर पद और है। भाव और अभिव्यक्ति एवं कला और संगीत की दृष्टि से यह बाणी अत्यंत सुंदर और प्रभावपूर्ण है। भक्ति में "सिमरन" और जीवन में "सेवा" नानक की वाणी के दो प्रमुख स्वर हैं। परवर्ती सिक्ख गुरुओं ने गुरु नानक के भावों की प्राय: अनुकृति और व्याख्या की है। [[गुरु रामदास]] (1534-1581 ई.) की कविता में काव्यगुण अधिक है। [[गुरु अर्जुनदेव]] (1561-1606 ई.) की वाणी में ज्ञान और विचार की प्रधानता है। "आदि" ग्रंथ में सबसे अधिक पद (1000 से कुछ ऊपर) इन्हीं के हैं। यह बात विशेषत: उल्लेखनीय है कि पूरे ग्रंथ में कुल मिलाकर 350-400 पद पंजाबी के होंगे। [[गुरु गोविंदसिंह]] के "[[दशम ग्रंथ]]" में भी "[[चंडी दी वार]]" एकमात्र पंजाबी की कृति है, जो सिरखंडी छंद में रचना है। इसमें दुर्गा देवी और दैत्यों के युद्ध का वर्णन है। सिक्ख गुरुओं के अतिरिक्त [[भाई गुरुदास]] (1558-1637 ई.) की वाणी को गुरुमत साहित्य के अंतर्गत मान्यता दी जाती है। उनके कवित्त और सवैए [[ब्रजभाषा]] में हैं, वारें और गीत शुद्ध साहित्यिक पंजाबी में हैं।