"सफ़दर हाशमी": अवतरणों में अंतर

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सफदर 'राज्य की तानाशाही' के खिलाफ भारतीय वामपंथी आंदोलन के लिए एक सांस्कृतिक प्रतिरोध का प्रतीक बनकर उभरे। जनम ने दिल्ली में अपना कार्य जारी रखा। फरवरी १९८९ में भीष्म साहनी और अन्य बुद्धिजीवियों ने मिलकर 'सफदर हाशमी मैमोरियल ट्रस्ट'(सहमत) का निर्माण किया।
सफदर का संगठन जन नाट्य मंच १९८९ की उस घटना के बाद से हर बरस १ जनवरी को झंडापुर के उसी शहादत स्थल पर एक सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन करता है। इस कार्यक्रम की दर्शक होती है आसपास के औद्योगिक क्षेत्र के सैकड़ों मजदूरों की विशाल भीड़। इसी तरह के एक कार्यक्रम का आयोजन 'सहमत' भी दिल्ली के बुद्धिजीवी तबके के बीच विट्ठलभाई पटेल हाउस में करता है।
आज सफदर जनवादी तबके के लिए प्रतिरोध के एक बहुत बड़े प्रतीक के रूप में जाना जाता है, बहुत से लोग, गैर सरकारी संस्थान उसकी इस विरासत का इस्तेमाल अपने निजी हित साधने में कर रहे हैं, लेकिन इस सबके बावजूद भी सफदर की अमिट ज्योति इन प्रयासों को धूमिल कर देती हैं।