"सिकन्दर बाग़": अवतरणों में अंतर
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[[Image:Image-Secundra Bagh after Indian Mutiny higher res.jpg|thumb|200px|''93वीं हाइलैण्डर और 4थी पंजाब रेजीमेंट द्वारा 2000 विद्रोहियों को मारे जाने के बाद सिकन्दर बाग़ का भीतरी भाग'' फेलिस बीटो द्वारा ली गयी अल्बुमेन रजत छवि]]
1857 के भारतीय विद्रोह के दौरान हुई [[लखनऊ की घेराबंदी]] के समय, ब्रिटिश और औपनिवेशिक सैनिकों से घिरे सैकड़ों भारतीय सिपाहियों ने इस बाग़ में शरण ली थी। [[16 नवम्बर]] [[1857]] को ब्रिटिश फौजों ने बाग़ पर चढ़ाई कर लगभग 2000 सिपाहियों को मार डाला था। लड़ाई के दौरान मरे ब्रिटिश सैनिकों तो एक गहरे गड्ढे में दफना दिया गया लेकिन मृत भारतीय सिपाहियों के शवों को यूँ ही सड़ने के लिए छोड़ दिया गया था। 1858 की शुरूआत में [[फेलिस बीटो]] ने परिसर के भीतरी हिस्सों की एक कुख्यात तस्वीर ली थी जो पूरे परिसर में मृत सैनिकों के बिखरे पड़े कंकालीय अवशेषों को दिखाती है।
वर्षों के दौरान बाग़ में जगह जगह से निकल आये तोप के गोले, तलवार और ढालें, बंदूक और राइफल के टुकड़े, अकस्मात अब एक संग्रहालय में सुरक्षित रखे गये हैं। बाग़ की दीवारों पर इस द्वंद के दौरान पड़े निशान इस ऐतिहासिक घटना की गवाही देते हैं।
इस लड़ाई का स्मरण कराती एक पारसी महिला उदा देवी एक मूर्ति उद्यान परिसर में कुछ साल पहले ही स्थापित की गयी है। उदा देवी घिरे हुये भारतीय सैनिकों की ओर से लड़ी थी। उदा देवी ने पुरुषों के वस्त्र धारण कर एक ऊँचे पेड़ पर डेरा जमाया था। उसके पास कुछ गोला बारूद और एक बंदूक थी। जब तक उसके पास गोला बारूद था उसने ब्रिटिश हमलावर सैनिकों को बाग में प्रवेश नहीं करने दिया था पर जब उसका गोला बारूद खत्म हो गया उसे ब्रिटिश सैनिकों द्वारा गोलियों से छलनी कर दिया गया।
== संदर्भ ==
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