"खगोलभौतिकी": अवतरणों में अंतर

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'''ताराभौतिकी''' या '''खगोलभौतिकी''' (Astrophysics) [[खगोल विज्ञान]] का वह अंग है जिसके अंतर्गत खगोलीय पिंडो की रचना तथा उनके भौतिक लक्षणों का अध्ययन किया जाता है।
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किर्खहॉफ ने इस सिद्धांत का प्रतिपादन प्रयोगों के आधार पर किया था। परंतु आगे चलकर परमाणुरचना के ज्ञान और क्वांटम सिद्धांत की सहायता से वर्णक्रमिकी के नियमों का प्रतिपादन सैद्धांतिक रूप से किया जा सका। उपर्युक्त कथन से यह स्पष्ट है कि ताराभौतिकी के अध्ययन में वर्णक्रमिकी के साधन की उपयोगिता की एक स्वाभाविक सीमा है। यह इसलिए कि वर्णक्रमदर्शी पदार्थ की भौतिक अवस्था के विषय में तभी सूचना दे सकता है जब यह पदार्थ दीप्तिमान गैस के रूप में हो। अत: इस साधन से यह नहीं जाना जा सकेगा कि प्रकाश के पथ में स्थित पिंडखंड किन पदार्थों के बने हुए हैं तथा उनकी भौतिक अवस्था क्या है। खगोलीय पिंडों से जो प्रकाश आता है वह उसके आंतरिक भागों में उत्पन्न होता है, फिर भी उन भागों की रचना के विषय में वर्णक्रमदर्शी की सहायता से कुछ भी नहीं कहा जा सकता। वह तो केवल इन पिंडों को घेरे हुए गैसमंडल के विषय में ही सूचना देने में समर्थ है। फलत: इन पिंडों के आंतरिक भागों की रचना तथा भौतिक अवस्था के विषय में जानने के लिये वर्णक्रमिकी से भिन्न साधनों की आवश्यकता है। इन साधनों का वर्णन आगे किया जाएगा। अघ्ययन के साधनों के विचार से तारापिंड को दो मुख्य भागों में विभक्त किया जा सकता है: (1) आंतरिक भाग और (2) गैसमंडल
 
 
==तारों के विषय में ज्ञात तथ्य==
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म0 (M0) 3,890
म5 (M5) 3,735
 
 
आगे चलकर अविशिष्ट अवलोकित तारों को वर्गीकरण में सम्मिलित करने के लिये इस वर्गीकरण के प्रारंभ में वर्ग व (W) और अंत में न (N), र (R) तथा स (S) वर्गों का योग कर दिया फलत: प्रचलित वर्गीकरण इस प्रकार है:
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कुछ प्रकार के तारों का पुंज और उनके अर्धव्यास ज्ञात हैं। इसके अतिरिक्त प्रत्येक तारे का यह आवश्यक लक्षण है कि वह सतत आकाश में सब ओर ऊर्जा का विकिरण करता रहता है। ऊर्जा के विकिरण की दर, जिसे तारे की ज्योति (luninosity) कहते हैं, तारे का उतना ही महत्वपूर्ण लक्षण है जितने उसके पुंज और अर्धव्यास। यदि तारों के पुंज और उनते अर्धव्यासों का रेखाचित्र खींचा जाए, तो यह स्पष्ट हो जाता है कि तारे लगभग तीन भागों में विभाजित किए जा सकते हैं। तारों के पुंज और ज्योतिषयों का रेखाचित्र भी इस कथन का समर्थन करता है। अधिकांश तारों के लिये उनकी ज्योति पुंज के लगभग 3.5 घात के अनुसार विचरण करती है। इन तारों के समूह को मुख्य श्रेणी कहते हैं। जो तारे इस श्रेणी से भिन्न हैं, वे दो प्रकार के होते हैं : (1) श्वेत वामन (white dwarfs) और (2) ट्रंपलर तारे। ट्रंपलर तारों की ज्योति उनके पुंज के अनुपात में विचरण करती है। यदि एक ही पुंज की मुख्य श्रेणी के तारों और श्वेत-वामन की ज्योतियों ओर अर्धव्यासों की तुलना करें, तो यह पाया जाता है कि श्वेत वातन मुख्य श्रेणी के तारे की अपेक्षा बहुत कम ज्येतिष्मान् होता है और उसका अर्धव्यास भी बहुत कम होता है। अत: श्वेत वामन का पदार्थ अत्यंत घन होना चाहिए। द्वितीय-लुब्धक (सीरियम-बी) श्वेत-वामन श्रेणी का प्रतिनिधि माना जाता है। इसका माध्य घनत्व लगभग 6.8 ज्र्104 ग्राम प्रति घन सेंमी0 है। यही यहीं, यदि एक ही प्रभावी ताप के मुख्य श्रेणी के तारों और श्वेत वामन की ज्योतियों की तुलना करें, तो श्वेत वामन मुख्य श्रेणी के तारे की अपेक्षा बहुत ही कम ज्येतिष्मान होता है। ये भिन्नताएँ तारों के आंतरिक संघटन की भिन्नता की द्योतक हैं।
 
 
==इन्हें भी देखें==
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* [http://master.obspm.fr/ Master of Science in Astronomy and Astrophysics]
* [http://www.astro.ucla.edu/~wright/cosmolog.htm Ned Wright's Cosmology Tutorial, UCLA]
 
 
[[श्रेणी:भौतिकी]]