"त्रिकोणीय सर्वेक्षण": अवतरणों में अंतर
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[[चित्र:L-Triangulierung.png|right|thumb|300px|उन्नीसवीं शती का राइनलैण्ड-हेस्स क्षेत्र का त्रिकोणीय सर्वेक्षण]]
'''त्रिकोणीय सर्वेक्षण''' (Triangulation) उस विधि का नाम है जिसमें [[सर्वेक्षण]] के लिये दिये गये क्षेत्र को त्रिकोणीय टुकड़ों के जाल के रूप में बाँटकर सर्वेक्षण को सरलतापूर्वक कर लिया जाता है। इसका सिद्धान्त बहुत सरल है - ज्ञात दूरी पर स्थित किन्हीं भी दो बिंदुओं से किसी तीसरे बिंदु द्वारा बनाये गये कोणों को मापकर त्रिकोणमित्तीय सर्वसमिकाओं की सहायता से उस तीसरे बिन्दु की सही स्थिति निर्धारित की जा सकती है।
इसकी विशेषता यह है कि इसमें दूरी का मापन कम से कम करना पड़ता है और कोणों के मापन से काम चल जाता है। कोणों का मापन अधिक शुद्धता से, कम समय मे, कम श्रम से हो जाता है। सामान्यत:, जहाँ दो दूर के बिंदुओं के बीच सीधी दूरी नाप पाना संभव न हो, मगर वे आपस मे दृष्टिगत हों, वहाँ त्रिकोणीय सर्वेक्षण बड़ा लाभप्रद होता है।
[[चित्र:Distance by triangulation.svg|right|thumb|300px| ट्रैंगुलेशन के उपयोग द्वारा समुद्र में स्थित किसी जलयान की तट से दूरी और उसके निर्देशांक निकाले जा सकते हैं। '''A''' बिन्दु पर स्थित प्रेक्षक कोण '''α''' मापता है ; इसी प्रकार, बिन्दु
यदि ऐसे त्रिभुज की एक, दो या तीनों भुजाओं पर क्रमानुगत त्रिभुज बनाते चले जाएँ और प्रारंभिक त्रिभुज की एक भुजा, उसके दोनों शीर्ष बिंदुओं के नियामक (coordinate) और बनाए गए सभी त्रिभुजों के कोण ज्ञात हों, तो ऐसी संपूर्ण त्रिभुजमाला की भुजाओं की लंबाइयाँ और त्रिभुज बनानेवाले बिंदुओं के नियामक और बनाए गए सभी त्रिभुजों के कोण ज्ञात हों, तो ऐसी संपूर्ण त्रिभुजमाला की भुजाओं की लंबाइयाँ और त्रिभुज बनानेवाले बिंदुओं के नियामक गणितीय कलन (computations) से ज्ञात किए जा सकते हैं। किसी भी क्षेत्र का [[मानचित्र]] बनाने के लिये इस प्रकार के बिंदु संपूर्ण क्षेत्र में समान रूप से बिखरें हुए स्थापित करना आवश्यक होता है। ऐसे बिंदुओं को सामूहिक रूप में सर्वेक्षण हेतु 'नियंत्रण ढाँचा' और प्रत्येक बिंदु को अलग अलग 'सर्वेक्षण स्टेशन' कहते हैं।
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* [[पाइथागोरस प्रमेय]]
==कार्यप्रक्रिया==
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जिस क्षेत्र में [[सर्वेक्षण]] करना हो उसमें यदि दो बिंदु ऐसे उपलब्ध हों जो परस्पर दृष्टिगोचर हों और उनके नियामक (coordinates) ज्ञात हों तो एक तीसरा समुचित बिंदु चुनकर प्रारंभिक त्रिभुज उसपर बनाया जा सकता है। '''किसी भी त्रिभुजमाला (triangulation network) में आरंभ करने के लिये एक भुजा ज्ञात होना आवश्यक है।''' ऐसी भुजा को '''आधाररेखा''' कहते हैं। आधार-रेखा के सिरे के बिंदुओं के नियामक ज्ञात हों, तो गणना द्वारा उसकी लंबाई निकाली जा सकती है। उदाहरणार्थ, यदि उन बिंदुओं के नियामक मूलबिंदु (origin) से उत्तर-दक्षिण रेखा, कोटि (ordinate), पर क्रमश: (N1), (N2), तथा पूर्व-पश्चिम रेखा, भुज (abscisaa), पर (E1), (E2) हों तो भुजा की लम्बाई होगी :
उस भुजा का उत्तर दिशा से दक्षिणवर्ती कोण (clockwise angle)
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यदि ऐसे दो बिंदु उपलब्ध न हों तो आधार उसी समय नापकर स्थापित किया जाता है। इसके लिये सर्वेक्षक आरंभ करने वाले बिंदु के आसपास एक सुविधाजनक समतल भूखंड पर, यथार्थ माप देनेवाले फीते से, एक रेखा अ आ नापता है। आजकल मुख्यत: यह नाप फीते को रज्जुवक्र (catenary) में टाँग कर लेते हैं। फीते के सिरों के बीच यथार्थ क्षैतिज दूरी गणना द्वारा निकाल ली जाती है। उस पर क्रमश: ऐसे त्रिभुज बनाए जाते हैं कि पहले एक या दो त्रिभुजों को छोड़कर किसी भी त्रिभुज का कोई भी कोण 20 डिग्री से कम न हो। आधार भुजा से आरंभ करते समय दो कोण इ और ई 3 डिग्री तक के ले लिए जाते हैं। मगर इन्हें आवृत्ति विधि (method of repetition) से बहुत ही यथार्थ नापते हैं।
यह कोण [[थियोडोलाइट]] नामक यंत्र से नापते हैं। आधार बिंदुओं से आरंभ करके क्रमश: सभी स्टेशन बिंदुओं पर थियोडोलाइट केंद्रित करके कोण पढ़ लिए जाते हैं। जैसे जैसे त्रिभुजमाला के एक एक त्रिभुज या चतुर्भुज के सारे कोण पूरे हो जाते हैं, सर्वेक्षक ज्यामितीय संबंधों, जैसे त्रिभुज के तीनों कोण (180°) या चतुर्भुज के चारों कोण (360°), की जाँच करता जाता है। पृथ्वी की सतह गोलाकार होने के कारण त्रिभुज बहुत बड़े होने पर उसके कोणों का योग 180 डिग्री से अधिक हो जाता है। इस प्रकार की बढ़ती को गोलीय आधिक्य (spherical excess) कहते हैं। 75 वर्ग मीलवाले त्रिभुज में यह आधिक्य 1"" होता है। प्रेक्षण त्रुटियों और गोलीय आधिक्य का शोधन करके गणना में कोण प्रयुक्त होते हैं।
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