"दशकुमारचरित": अवतरणों में अंतर

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'''दशकुमारचरित''', [[दंडी]] (षष्ठ या सप्तम शताब्दी ई.) द्वारा प्रणीत [[संस्कृत]] गद्यकाव्य है। इसमें दश कुमारों का चरित वर्णित होने के कारण इसका नाम "दशकुमारचरित" है।
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== कथा ==
मूल दशकुमारचरित के प्रथम उच्छ्वास का आरंभ एकाएक मुख्य नायक राजकुमार राजवाहन की कथा से होता है। बाद में उसके भूले भटके सभी साथी मिल जाते हैं जो शेष सात उच्छवासों में अपनी अपनी रोमांचकारी एवं कुतूहलजनक घटनाओं को राजवाहन से कहते हैं। दूसरे उचछ्वास में अपहार वर्मा की कथा आती है जो अत्यंत विस्तृत एव विनोदपूर्ण हैं। तृतीय उच्छ्वास से लेकर षष्ठ उच्छ्वास तक क्रमश: उपहार वर्मा, अर्थपाल, प्रमति तथा मित्रगुप्त की कथाएँ हैं। सप्तम उच्छृवास में मंत्रगुप्त की कथा है। इस उच्छ्वास की यह विशेषता उल्लेखनीय है कि इसमें कथावक्ता का ओष्ठ उसकी प्रेयसी द्वारा काटे जाने के कारण ओष्ठ से उच्चार्यमाण पवर्ग के वर्णों का प्रयोग नहीं हुआ है।
 
 
== महत्व ==