"दशनामी सम्प्रदाय": अवतरणों में अंतर

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'''दशनामी''' शब्द संन्यासियों के एक संगठनविशेष के लिए प्रयुक्त होता है और प्रसिद्ध है कि उसे सर्वप्रथम स्वामी [[आदि शंकराचार्य|शंकराचार्य]] ने चलाया था, किंतु इसका श्रेय कभी-कभी स्वामी सुरेश्वराचार्य को भी दिया जाता है, जो उनके अनंतर दक्षिण भारत के [[श्रृंगेरी मठ]] के तृतीय आचार्य थे ("ए हिस्ट्री ऑव दशनामी नागा संन्यासीज़ पृ. 50")।
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==उद्देश्य==
दशनामी संन्यासियों का उद्देश्य धर्मप्रचार के अतिरिक्त धर्मरक्षा का भी जान पड़ता है। इस दूसरे उद्देश्य की सिद्धि के लिए उन्होंने अपना संगठन विभिन्न अखाड़ों के रूप में भी किया है। ऐसे अखाड़ों में से "जूना अखाड़ा" (काशी) के इष्टदेव कालभैरव अथवा कभी कभी दत्तात्रेय भी समझे जाते हैं और "आवाहन" जैसे एकाध अन्य अखाड़े भी उसी से संबंधित हैं। इसी प्रकार "निरंजनी अखाड़ा" (प्रयाग) के इष्टदेव कार्तिकेय प्रसिद्ध हैं और इसकी भी "आनंद" जैसी कई शाखाएँ पाई जाती हैं। "महानिर्वाणी अखाड़ा" (झारखंड) की विशेष प्रसिद्धि इस कारण है कि इसने ज्ञानवापी युद्ध, औरगंजेब के विरुद्ध ठान दिया था। इसके इष्टदेव कपिल मुनि माने जाते हैं तथा इसके साथ अटल जैसे एकाध अन्य अखाड़ों का भी संबंध जोड़ा जाता है। इन अखाड़ों में शस्त्राभ्यास कराने की व्यवस्था रही है और इनमें प्रशिक्षित होकर नागों ने अनेक अवसरों पर काम किया है। इनके प्रमुख महंत को "मंडलेश्वर" कहा जाता है जिसके नेतृत्व में ये विशिष्ट धार्मिक पर्वो के समय एक साथ स्नान भी करते हैं तथा इस बात के लिए नियम निर्दिष्ट है कि इनकी शोभायात्रा का क्रम क्या और किस रूप में रहा करे। दशनामियों के जैसे अन्य नागाओं के कुछ उदाहरण हमें दादू पंथ आदि के धार्मिक संगठनों में भी मिलते हैं जिनके लोगों ने, जयपुर जैसी कतिपय रियासतों का संरक्षण पाकर, उन्हें समय समय पर सहायता पहुँचाई हैं। दशनामियों में कुछ गृहस्थ भी होते हैं जिन्हें "गोसाई" कहते हैं।
 
 
==विभिन्न नाम==