"कहानी": अवतरणों में अंतर

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'''कहानी''' [[हिन्दी]] में [[गद्य]] लेखन की एक विधा है ।
 
[[अंग्रेजी]] में जिसे 'शार्ट स्टोरी' कहते हैं उसी का प्रचलन [[हिंदी]] में '''कहानी''' के नाम से हुआ। [[बंगला]] में इसे '''गल्प''' कहा जाता है। कहानी ने अंग्रेजी से हिंदी तक की यात्रा बंगला के माध्यम से की। कहानी [[गद्य]] [[कथा साहित्य]] का एक अन्यतम भेद तथा [[उपन्यास]] से भी अधिक लोकप्रिय [[साहित्य]] का रूप है।
 
मनुष्य के जन्म के साथ ही साथ कहानी का भी जन्म हुआ और कहानी कहना तथा सुनना मानव का आदिम स्वभाव बन गया। इसी कारण से प्रत्येक सभ्य तथा असभ्य समाज में कहानियाँ पाई जाती हैं। हमारे देश में कहानियों की बड़ी लंबी और सम्पन्न परंपरा रही है। वेदों, उपनिषदों तथा ब्राह्मणों में वर्णित '[[यम-यमी]]', '[[पुरुरवा-उर्वशी]]', '[[सौपणीं-काद्रव]]', '[[सनत्कुमार-नारद]]', '[[गंगावतरण]]', '[[श्रृंग]]', '[[नहुष]]', '[[ययाति]]', '[[शकुन्तला]]', '[[नल-दमयन्ती]]' जैसे आख्यान कहानी के ही प्राचीन रूप हैं।
 
प्राचीनकाल में सदियों तक प्रचलित वीरों तथा राजाओं के शौर्य, प्रेम, न्याय, ज्ञान, वैराग्य, साहस, समुद्री यात्रा, अगम्य पर्वतीय प्रदेशों में प्राणियों का अस्तित्व आदि की कथाएँ, जिनकी कथानक घटना प्रधान हुआ करती थीं, भी कहानी के ही रूप हैं। '[[गुणढ्य]]' की "[[वृहत्कथा]]" को, जिसमें '[[उदयन]]', '[[वासवदत्ता]]', समुद्री व्यापारियों, राजकुमार तथा राजकुमारियों के पराक्रम की घटना प्रधान कथाओं का बाहुल्य है, प्राचीनतम रचना कहा जा सकता है। वृहत्कथा का प्रभाव '[[दण्डी]]' के "[[दशकुमार चरित]]", '[[वाणभट्ट]]' की "[[कादम्बरी]]", '[[सुबन्धु]]' की "[[वासवदत्ता]]", '[[धनपाल]]' की "[[तिलकमंजरी]]", '[[सोमदेव]]' के "[[यशस्तिलक]]" तथा "[[मालतीमाधव]]", "[[अभिज्ञान शाकुन्तलम्]]", "[[मालविकाग्निमित्र]]", "[[विक्रमोर्वशीय]]", "[[रत्नावली]]", "[[मृच्छकटिकम्]]" जैसे अन्य काव्यग्रंथों पर साफ-साफ परिलक्षित होता है।
 
इसके पश्‍चात् छोटे आकार वाली "[[पंचतंत्र]]", "[[हितोपदेश]]", "[[बेताल पच्चीसी]]", "[[सिंहासन बत्तीसी]]", "[[शुक सप्तति]]", "[[कथा सरित्सागर]]", "[[भोजप्रबन्ध]]" जैसी साहित्यिक एवं कलात्मक कहानियों का युग आया। इन कहानियों से श्रोताओं को मनोरंजन के साथ ही साथ नीति का उपदेश भी प्राप्त होता है। प्रायः कहानियों में असत्य पर सत्य की, अन्याय पर न्याय की और [[धर्म]] पर अधर्म की विजय दिखाई गई हैं।
 
किन्तु वर्तमान कहानियों पर सर्वाधिक प्रभाव अमेरिका के कवि-आलोचक-कथाकार '[[एडगर एलिन पो]]' का है जिनके अनुसार एक सफल कहानी में एक केन्द्रीय कथ्य होता है जिसे प्रभावशाली और सघन बनाने के लिये कहानी के सभी तत्वों - कथानक, पात्र, चरित्र-चित्रण, संवाद, देशकाल, उद्देश्य - का उपयोग किया जाता है। श्री पो के अनुसार कहानी की परिभाषा इस प्रकार हैः
 
"कहानी वह छोटी आख्यानात्मक रचना है, जिसे एक बैठक में पढ़ा जा सके, जो पाठक पर एक समन्वित प्रभाव उत्पन्न करने के लिये लिखी गई हो, जिसमें उस प्रभाव को उत्पन्न करने में सहायक तत्वों के अतिरिक्‍त और कुछ न हो और जो अपने आप में पूर्ण हो।"
 
हिंदी कहानी को सर्वश्रेष्ठ रूप देने वाले 'प्रेमचन्द' ने भी श्री पो के विचारों को स्वीकारते हुये कहानी की परिभाषा इस प्रकार से की हैः
 
"कहानी वह [[ध्रुपद]] की तान है, जिसमें गायक महफिल शुरू होते ही अपनी संपूर्ण प्रतिभा दिखा देता है, एक क्षण में चित्त को इतने माधुर्य से परिपूर्ण कर देता है, जितना रात भर गाना सुनने से भी नहीं हो सकता।"
 
कहानी के तत्व
 
रोचकता, प्रभाव तथा वक्‍ता एवं श्रोता या कहानीकार एवं पाठक के बीच यथोचित सम्बद्धता बनाये रखने के लिये सभी प्रकार की कहानियों में कमोबेस निम्नलिखित तत्व महत्वपूर्ण हैं
 
कथावस्तु
पात्र अथवा चरित्र-चित्रण
कथोपकथन अथवा संवाद
देशकाल अथवा वातावरण
भाषा-शैली
उद्देश्य
 
==कथावस्तु==
किसी कहानी के ढाँचे को कथानक अथवा कथावस्तु कहा जाता है। प्रत्येक कहानी के लिये कथावस्तु का होना अनिवार्य है क्योंकि इसके अभाव में कहानी की रचना की कल्पना भी नहीं की जा सकती। कथानक के चार अंग माने जाते हैं - आरम्भ, आरोह, चरम स्थिति एवं अवरोह।
 
*'आरम्भ' में कहानीकार कहानी के शीर्षक तथा प्रारमंभिक अनुच्छेदों के द्वारा पाठक को कथासूत्र से अवगत कराता है जिससे कि वह कहानी के प्रति आकर्षित होकर उसमें रमने लगे। सफल आरम्भ वह होता है जिसमें कि कहानी शुरू करते ही पाठका का मन कुतूहल और जिज्ञासा से भर जाये।
 
*कहानी के विकास की अवस्था को कहानी का 'आरोह' कहते हैं। आरोह में कहानीकार घटनाक्रम को सहज रूप में प्रस्तुत करता है और पात्रों की चारित्रिक विशेषताओं का उद्‍घाटन करता है।
 
*जब कहानी पढ़ते-पढ़ते पाठक कौतूहल की पराकाष्ठा में पहुँच जाये तो उसे कहानी की 'चरम स्थिति' कहते हैं।
 
*पाठक को जब कहानी के उद्‍देश्य का प्रतिफल प्राप्त होता है उसे कहानी का 'अवरोह' अथवा 'अंत' कहते हैं। कहानी के अवरोह में संक्षिप्तता तथा मार्मिकता पर अधिक जोर दिया जाता है।
 
==पात्र अथवा चरित्र-चित्रण==
 
कहानी का संचालन उसके पात्रों के द्वारा ही होता है तथा पात्रों के गुण-दोष को उनका 'चरित्र चित्रण' कहा जाता है। जब पात्रों का चरित्र चित्रण कहानीकार के द्वारा किया जाता है तो उसे 'प्रत्यक्ष' चरित्र चित्रण कहते हैं और जब पात्रों का चरित्र चित्रण संवादों के द्वारा होता है तो उसे 'अप्रत्यक्ष' अथवा 'परोक्ष चरित्र' चित्रण कहा जाता है। परोक्ष चरित्र चित्रण को अधिक उपयुक्‍त माना जाता है।
 
==कथोपकथन अथवा संवाद==
 
कहानी के पात्रों के द्वारा किये गये उनके विचारों की अभिव्यक्‍ति को संवाद अथवा कथोपकथन कहते हैं। संवाद के द्वारा पात्रों के मानसिक अन्तर्द्वन्द एवं अन्य मनोभावों को प्रकट किया जाता है।
 
==देशकाल अथवा वातावरण==
 
कहानी में वास्तविकता का पुट देने के लिये देशकाल अथवा वातावरण का प्रयोग किया जाता है। यदि किसी कहानी में शाहजहाँ और मुमताज महल को आधुनिक कार में घूमते हुये बताया जाता है तो उसे हास्यास्पद ही माना जायेगा।
 
==भाषा-शैली==
 
कहानीकार के द्वारा कहानी के प्रस्तुतीकरण के ढंग को उसकी भाषा शैली कहा जाता है। प्रायः अलग-अलग कहानीकारों की भाषा-शैली भी अलग-अलग होती है।
 
==उद्देश्य==
 
कहानी केवल मनोरंजन के लिये ही नहीं होती, उसे एक निश्‍चित उद्‍देश्य लेकर लिखा जाता है।
 
[[श्रेणी:साहित्य]]
"https://hi.wikipedia.org/wiki/कहानी" से प्राप्त