"रसायन": अवतरणों में अंतर

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भारत की बहुत सी प्राचीन रसायन परंपराएं पीढ़ी दर पीढ़ी चलते हुए आधुनिक समय तक जीवित हैं। आज भी हजारों वैद्य चरक द्वारा निर्देशित रीति से धातु आधारित एवं वानस्पतिक रुाोत वाली औषधियों का विरचन कर रहे हैं, जिनके दौरान अनेकानेक रासायनिक प्रक्रियाएं संपादित करनी पड़ती हैं। ईस्वी वर्ष 1800 में भी भारत में, ब्रिाटिश दस्तावेजों के अनुसार, विभिन्न धातुओं को प्राप्त करने के लिए लगभग 20,000 भट्ठियां काम करती थीं जिनमें से दस हजार तो केवल लौह निर्माण भट्ठियां थीं और उनमें 80,000 कर्मी कार्यरत थे। इस्पात उत्पाद की गुणवत्ता तत्कालीन अत्युत्तम समझे जाने वाले स्वीडन के इस्पात से भी अधिक थी। इसके गवाह रहे हैं सागर के तत्कालीन सिक्का निर्माण कारखाने के अंग्रेज प्रबंधक कैप्टन प्रेसग्रेन तथा एक अन्य अंग्रेज मेजर जेम्स फ्रैंकलिन। उसी समय तथा उसके काफी बाद तक लोहे के अतिरिक्त रसायन आधारित कई अन्य वस्तुएं यथा-साबुन, बारूद, नील, स्याही, गंधक, तांबा, जस्ता आदि भी भारतीय तकनीकी से तैयार की जा रही थीं। काफी बाद में अंग्रेजी शासन के दौरान पश्चिमी तकनीकी के आगमन के साथ भारतीय तकनीकी विस्मृत कर दी गई।
 
==इन्हें भी देखें==
*[[रसविद्या]]
 
==बाहरी कड़ियाँ==
"https://hi.wikipedia.org/wiki/रसायन" से प्राप्त