"नागार्जुन (प्राचीन दार्शनिक)": अवतरणों में अंतर
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'''नागार्जुन''' (बौद्धदर्शन) [[शून्यवाद]] के प्रतिष्ठापक तथा माध्यमिक मत के पुरस्कारक प्रख्यात [[बौद्ध धर्म|बौद्ध]] आचार्य थे।
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परमार्थतत्व बुद्धिव्यापार से अगोचर, अविषय (ज्ञान की कल्पना से बाहर), सर्वप्रपंचनिर्मुक्त तथा कल्पनाविरहित है, परंतु उसके ऊपर जागतिक पदार्थों का समारोप करने से ही उसका ज्ञान हमें हो सकता है। यह तत्व वेदांतियों के अध्यारोप तथा अपवादविधि से निमांत सादृश्य रखता है।
==अन्य नागार्जुन==
आर्य नागार्जुन ने नाम से वैद्यक, रसायन विद्या तथा तंत्र के ग्रंथ भी उपलब्ध होते हैं। कतिपय विद्वान् दार्शनिक नागार्जुन को तांत्रिक नागार्जुन से नितांत अभिन्न मानते हैं, परंतु विद्वानों का बहुमत इन दोनों की भिन्नता मानने के ही पक्ष में है। इसी से आर्य नागार्जुन से भिन्नता दिखलाने के हेतु तांत्रिक नागार्जुन "सिद्धनागार्जुन" के नाम से अभिहित किए जाते हैं। दोनों के समय में भी पर्याप्त अंतर है। आर्य नागार्जुन का आविर्भाव द्वितीय शती के उत्तरार्ध में हुआ था, जब कि सिद्ध नागार्जुन का समय सप्तम शती के आस पास स्वीकार किया जाता हैं। नागार्जुन का तिब्बती नाम है - क्लुस-ग्रुव और तारानाथ के प्रामाण्य पर ये 300 ई. के आसपास राज्य करनेवाले राजा नेमिचंद्र के समकालीन माने जाते हैं परंतु यह मत प्रामाणिक नहीं है। प्रकृत आख्यायिका "लीलावती" के अनुसार नागार्जुन पोट्टिस तथा कुमारिल के साथ शातवाहन के दरबार में रहते थे।
आयुर्वेदाचार्य नागार्जुन सिद्धों की परंपरा में हुए हैं। इनका समय आठवीं या नवीं शती है। यही समय आयुर्वेद में रसचिकित्सा, धातुवाद का है। प्रबंधचिंतामणि से पता चलता है कि नागार्जुन पादलिप्त सूरि के शिष्य थे। इसी पुस्तक के अनुसार ये पारद से स्वर्ण वनाने में सफल हुए थे (रसशास्त्र पृ. 52-53)। नागार्जुन के नाम से कई योग आयुर्वेद में प्रचलित हैं।
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