"पालि, प्राकृत और अपभ्रंश का कोश वाङ्मय": अवतरणों में अंतर

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मध्यकालीन भारतीय आर्यभाषाओं का वाङ्मय भी कोशों से रहित नहीं था । [[पालि]] भाषा में अनेक कोश मिलते हैं । इन्हें 'बौद्धकोश' भी कहा गया है । उनकी मुख्य उपयोगिता पालि भाषा के बौद्ब-साहित्य के समझाने में थी । उनकी रचना पद्यबद्ध संस्कृतकोशों की अपेक्षा गद्यमय [[निघण्टु|निघंटुओं]] के अधिक समीप है । बहुधा इनका संबंध विशेष ग्रंथों से रहा है ।