"प्रियप्रवास": अवतरणों में अंतर

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'''प्रियप्रवास''', [[अयोध्यासिंह "हरिऔध"]] की हिन्दी काव्य रचना है। हरिऔध जी को काव्यप्रतिष्ठा "प्रियप्रवास" से मिली। इसका रचनाकाल सन् 1909 से सन् 1913 है।
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मेरा कौमार-व्रत भव में पूर्णता प्राप्त होवे।
 
"प्रियप्रवास" में यद्यपि कृष्ण महापुरुष के रूप में अंकित हैं, तथापि इसमें उनका यह रूप आनुषंगिक है। वे विशेषत: पारिवारिक और सामाजिक स्वजन हैं। जैसा पुस्तक के नाम से स्पष्ट है, मुख्य प्रसंग है - "प्रियप्रवास", परिवार और समाज के प्रिय कृष्ण का वियोग। अन्य प्रसंग अवांतर हैं। यद्यपि वात्सल्य, सख्य और माधुर्य का प्राधान्य है और भाव में लालित्य है, तथापि यथास्थान ओज का भी समावेश है। समग्रत: इस महाकाव्य में वर्णनबाहुल्य और वाक्वैदग्ध्य का आधिक्य है। जहाँ कहीं संवेदना तथा हार्दिक उद्गीर्णता है, वहाँ रागात्मकता एवं मार्मिकता है। विविध ऋतुओं, विविध दृश्यों विविध चित्तवृत्तियों और अनुभूतियों के शब्दचित्र यत्रतत्र बड़े सजीव हैं।
 
 
[[श्रेणी:साहित्य]]