"भवभूति": अवतरणों में अंतर

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'''भवभूति''', [[संस्कृत]] के महान कवि एवं नाटककार थे। उनके [[नाटक]], [[कालिदास]] के नाटकों के समतुल्य माने जाते हैं।
 
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’श्रीकण्ठ पदलाञ्छनः भवभर्तिनाम’ इस उल्लेख से यह प्रकट होता है कि श्रीकण्ठ कवि की उपाधि थी और भवभूति नाम था। किन्तु कुछ टीकाकारों का यह विश्वास है कि कवि का नाम नीलकण्ठ था और भवभूति उपाधि थी, जो उन्हें कुछ विशेष पदों की रचना की प्रशंसा में मिली थी। इस पक्ष की पुष्टि में ‘महावीरचरित’ एवं ‘उत्तररामचरित’ के टीकाकर वीर राघव1 ने इस वाक्य की व्याख्या इस प्रकार प्रस्तुत की है—
 
‘श्रीकण्ठपदं:"श्रीकण्ठपदं लाञ्छनं नाम यस्य सः। ‘लाञ्छनो नाम-लक्ष्मणोः’ इति रत्नमाला। पितृकृतनामेदम्...भवभूतिर्नाम ‘साम्बा पुनातु भवभूतिपवित्रमूर्तिः।’ इति श्लोकरचना सन्तुष्टेन राज्ञा भवभूतिरिति ख्यापितः।’ख्यापितः।"
 
इस व्याख्या के अनुसार 'श्रीकण्ठ', भवभूति का नाम था, क्योंकि ‘लाञ्छन’ शब्द नाम का परिचायक है। ‘साम्बा पुनातु भवभूतिपवित्रमूर्तिः’—शिव की भस्म से पवित्र निग्रहवाली माता पार्वती तुम्हें पवित्र करें—इस श्लोक की रचना से प्रसन्न होकर राजा ने उन्हें ‘भवभूति’ पदवी से सम्मानित किया।
 
जगद्धर2 ‘मालती माधव’ की टीका में ‘ नाम्ना श्रीकण्ठः; प्रसिद्धया भवभूतिरित्यर्थः’ तथा त्रिपुरारि3 ने भी इसी नाटक की टीका में ‘भवभूतिरित व्यवहारे तस्येदं नामान्तरम्’ कहकर इसी मत का प्रतिपादन किया है कि श्रीकण्ठ का नाम था और भवभूति प्रसिद्धि तथा व्यवहार का नाम था।