"भारतीय महाकाव्य": अवतरणों में अंतर

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भारत के महाकाव्यों में वाल्मीिक रामायण, तुलसीदास रचित रामचरित मानस, व्यास द्वैपान रचित महाभारत आदि गर्ंथ परमुख हैं.
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समय, रूचि तथा क्रियाशीलता के अभाव के बाद भी हिंदी साहित्य में महाकाव्य लेखन की परंपरा गति तथा विस्तार पा रही है। इस दशक के महाकाव्यों में डॉ. काबरा की 3 कृतियों के अतिरिक्त पुरूषोत्तम श्रीराम चरित व श्रीकृष्ण चरित (जगमोहन प्रसाद सक्सेना 'चंचरीक'), स्वयं धरित्री ही थी (रमाकांत श्रीवास्तव), वैज्ञानिक आध्यात्म व प्रकृति औैर पुरूष (जसपाल सिंह 'संप्राण'), देवयानी (वासुदेव प्रसाद खरे), सूतपुत्र व महामात्य (दयाराम गुप्त 'पथिक'), रत्नजा व भूमिजा (डॉ. सुशीला कपूर), वीरवर तात्या टोपे (वीरेंद्र अंशुमाली), वीरांगना दुर्गावती (गोविंद प्रसाद तिवारी), क्षत्राणी दुर्गावती (विमल), दधीचि (आचार्य भगवत दूबे), मानव (डॉ. गार्गीशरण 'मराल'), खजुराहो (डॉ. पूनम चंद्र तिवारी) आदि ने महाकाव्य प्रासाद को जीवंतता प्रदान की है।
हिंदी महाकाव्य सृजन की परंपरा में महाकाव्य के 3 तत्व कथावस्तु, नायक तथा रस मान्य हैं। कथावस्तु के 3 अंग विस्तार, विशालता व छंद वैविध्य, नायक के 3 अंग गुण धीरोदात्तता, शालीनता, प्रासंगिकता तथा रस के 3 गुण भाषा-शैली, अलंकार तथा भावानुभाव हैं।
 
[[श्रेणी: साहित्य शास्त्र]]