"भोजप्रबन्ध": अवतरणों में अंतर

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हरमूर्त्तिरिव हसंती भाति विधूमानलोपेता।
 
 
पक्के लोहे से बनी हुई यह हसंती बहुल ऊहों से सुशोभित कवि की प्रतिभा के समान है; चक्रवाक पक्षी का प्रिया से मिलन करानेवाली प्रभात वेला की भाँति यह सुंदर चक्राकार से मंडित हैं तथा धूम रहित अग्नि से भरी हुई यह चंद्र, उमा और अग्नि से संयुक्त की भँति सुशोभित है। यह पद्य श्लिष्ट मालोपमा का रमणीय उदाहरण है तथा कविप्रतिभा का भी उज्वल निदर्शन है। ऐसे अनेक प्रसंगों पर कविगण द्वारा प्रस्तुत सुंदर सुभाशित का भोजप्रर्बध एक सुंदर भांडार है।