"कपिलवस्तु": अवतरणों में अंतर

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'''कपिलवस्तु''', शाक्य गण की राजधानी, जिसमें [[महात्मा बुद्ध|गौतम बुद्ध]] का जन्म हुआ। विंसेंट स्मिथ के मत से यह [[उत्तर प्रदेश]] के [[बस्ती जिले]] का पिपरावा नामक स्थान है जहाँ बुद्ध की अस्थियों पर शाक्यों द्वारा निर्मित [[स्तूप]] पाया गया है। पर अधिकतर विद्वान्‌ कपिलवस्तु [[नेपाल]] के [[तिलौराकोट]] को मानते हैं जो नेपाल की तराई के प्रधान नगर तौलिहवा से दो मील उत्तर की ओर हैं।
#REDIRECT [[कपिलवस्तु जिला]]
 
बुद्ध शाक्य गण के राजा शुद्धोदन और [[महामाया]] के पुत्र थे। उनका जन्म [[लुंबिनी]] वन में हुआ जिसे अब [[रुम्मिनदेई]] कहते हैं। रुम्मिनदेई तिलौराकोट (कपिलवस्तु) से १० मील पूर्व और भगवानपुर से दो मील उत्तर है। यहाँ अशोक का एक स्तंभलेख मिला है जिसका आशय है कि भगवान्‌ बुद्ध के इस जन्मस्थान पर आकर अशोक ने पूजा की और स्तंभ खड़ा किया तथा "लुम्मिनीग्राम' के कर हलके किए।
 
गौतम बुद्ध ने बाल्य और यौवन के सुख का उपभोग कर २९ वर्ष की अवस्था में कपिलवस्तु से महाभिनिष्क्रमण किया। बुद्धत्वप्राप्ति के दूसरे वर्ष वे शुद्धोदन के निमंत्रण पर कपिलवस्तु गए। इसी प्रकार १५ वाँ चातुर्मास भी उन्होंने कपिलवस्तु में न्यग्रोधाराम में बिताया। यहाँ रहते हुए उन्होंने अनेक सूत्रों का उपदेश किया, ५०० शाक्यों के साथ अपने पुत्र राहल और वैमात्र भाई नंद को प्रवज्जा दी तथा शाक्यों और कोलियों का झगड़ा निपटाया।
 
बुद्ध से घनिष्ठ संबंध होने के कारण इस नगर का बौद्ध साहित्य और कला में चित्रण प्रचुरता से हुआ है। इसे [[बुद्धचरित]] काव्य में "कपिलस्य वस्तु' तथा [[ललितविस्तर]] और [[त्रिपिटक]] में "कपिलपुर' भी कहा है। दिव्यावदान ने स्पष्टत: इस नगर का संबंध कपिल मुनि से बताया है। ललितविस्तर के अनुसार कपिलवस्तु बहुत बड़ा, समृद्ध, धनधान्य और जन से पूर्ण महानगर था जिसकी चार दिशाओं में चार द्वार थे। नगर सात प्रकारों और परिखाओं से घिरा था। यह वन, आराम, उद्यान और पुष्करिणियों से सुशोभित था और इसमें अनेक चौराहे, सड़कें, बाजार, तोरणद्वार, हर्म्य, कूटागार तथा प्रासाद थे। यहाँ के निवासी गुणी और विद्वान्‌ थे। [[सौंदरानंद]] काव्य के अनुसार यहाँ के अमात्य मेधावी थे। पालि त्रिपिटक के अनुसार शाक्य क्षत्रिय थे और राजकार्य "[[संथागार]]" में एकत्र होकर करते थे। उनकी शिक्षा और संस्कृति का स्तर ऊँचा था। भिक्षुणीसंघ की स्थापना का श्रेय शाक्य स्त्रियों को है।
 
[[फ़ाह्यान]] के समय तक कपिलवस्तु में थोड़ी आबादी बची थी पर [[युआन्च्वाङ]] के समय में नगर वीरान और खँडहर हो चुका था, किंतु बुद्ध के जीवन के घटनास्थलों पर चैत्य, विहार और स्तूप १,००० से अधिक संख्या में खड़े थे।
 
[[श्रेणी:ऐतिहासिक स्थान]]
[[श्रेणी:बौद्ध धर्म]]