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{{See also|Delusional disorder}}
{{DiseaseDisorder infobox |
Name = Delusion |
ICD10 = {{ICD10|F|22||f|20}} |
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MeshID = D003702 |
}}
 
'''भ्रम''' , रोज़मर्रा की भाषा में '''भ्रम''' अर्थात एक ऐसा अटल विश्वास जो किसी मिथ्या, या कल्पना, या छल या धोखे से पैदा होता है. [[मनोरोग विज्ञान|मनोरोग विज्ञान]] के अनुसार इस शब्द की परिभाषा है - एक ऐसा विश्वास जो एक रोगात्मक (किसी बीमारी या बीमारी की चिकित्सा प्रक्रिया के परिणामस्वरूप) स्थिति है.
विकृतिविज्ञान के तौर पर देखा जाए तो यह ग़लत या अपूर्ण जानकारी, सिद्धांत, मूर्खता, आत्मचेतना, भ्रम, या धारणा के अन्य प्रभावों से पैदा होने वाले विश्वास से बिलकुल अलग है.''''''
 
ख़ासकर किसी तंत्रिका संबंधी या मानसिक बीमारी के दौरान इंसान भ्रम का शिकार होता है, वैसे इसका संबंध किसी विशेष रोग से जुड़ा नहीं है, अतः अनेक रोगात्मक स्थितियों (शारीरिक और मानसिक दोनों) के दौरान रोगी को भ्रम होने लगता है. मानसिक विकृतियों से, विशेषतया मनोभाजन (schizophrenia), पैराफ्रेनिया (paraphrenia), द्विध्रुवी विकृति से पड़ने वाले पागलपन के दौरे, और मानसिक अवनति की स्थिति में होने वाले भ्रमों का ख़ास नैदानिक महत्त्व है.
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==परिभाषा==
==उदाहरण==
हालांकि हज़ारों वर्षों से, पागलपन के बारे में तरह-तरह की धारणाएं मौजूद हैं, लेकिन मनोवैज्ञानिक और दार्शनिक कार्ल जैस्पर्स प्रथम व्यक्ति थे जिन्होंने 1917 में लिखी अपनी पुस्तक '''जनरल साय्कोपैथौलौजी' (General Psychopathology)'' में किसी विश्वास को भ्रम घोषित करने के तीन प्रमुख मानदंड बताये हैं. ये मानदंड हैं:
==मूल==
* निश्चितता (दृढ़ धारणा पर आधारित)
==अन्य अर्थ==
* सुधारना असंभव (धारणा के प्रतिरोध्य दलीलें या विपरीत सबूत पेश करने के बावजूद जो न बदला जा सके)
==संबंधित शब्द==
* असंभवता या विषय की असत्यता (अकल्पनीय, बेतुका या बिलकुल स्पष्ट रूप से असत्य)
=== हिंदी में ===
*
===अन्य भारतीय भाषाओं में निकटतम शब्द===
 
ये मानदंड आज भी मनोरोग के आधुनिक निदान में लागू होते हैं. अभी हाल ही में प्रकाशित 'डायगनौस्टिक एंड स्टेटिस्टिकल मैन्युअल ऑफ़ मेंटल डिसऑर्डर्स' (Diagnostic and Statistical Manual of Mental Disorders) में दी गयी भ्रम की परिभाषा कुछ ऐसी है:
[[श्रेणी:शब्दार्थ]]
 
:एक ग़लत विश्वास जो बाहरी सच्चाई के बारे में लगाए ग़लत अनुमान पर आधारित होता है और बाकी सभी लोगों के विश्वास से हटकर होता है और इसके विपरीत मौजूद अखंडनीय व स्पष्ट सबूत के बावजूद दृढ़ बना रहता है. ''ऐसा विश्वास आम तौर पर भ्रमित व्यक्ति की संस्कृति और उप-संस्कृति के सदस्यों को भी मान्य नहीं होता.''
[[en:]]
 
वैसे इस परिभाषा पर विवाद है कि 'बाकी सभी लोगों के विश्वास से हटकर होता है' का तात्पर्य निकलता हैं कि यदि कोई व्यक्ति किसी ऐसी धारणा पर विश्वास करता है जिस पर बाकी अधिकांश लोग विश्वास नहीं करते तो वह व्यक्ति भ्रमात्मक विचार की जकड़ में है. इसके अलावा, यह विड़म्बना ही है कि, उपरोक्त तीन मानदंडों का श्रेय जैस्पर्स को दिया जाता है, पर उनका ख़ुद का कहना है कि वे मानदंड 'अस्पष्ट' और केवल 'बाह्य-रूपी' हैं.<ref>{{harvnb|Jaspers|1997|p=95}}</ref> उन्होंने यह भी लिखा है कि, चूंकि भ्रम का असली या 'आतंरिक' 'मानदंड भ्रम के <em>प्राथमिक अनुभव</em> और <em>व्यक्तित्व में होने वाले बदलाव से</em> [<em>न</em> कि उपरोक्त वर्णित तीन कमज़ोर मानदंडों से] जाना जा सकता है, इसलिए भ्रम, भ्रम होते हुए भी, विषय को लेकर सही हो सकता है: जैसे - विश्व युद्ध हो रहा है.'<ref>{{harvnb|Jaspers|1997|p=106}}</ref>
 
==प्रकार==
भ्रम को, बेतुका या तर्क-संगत और मनोदशा-अनुरूप या मनोदशा-तटस्थ, इन दो वर्गों में वर्गीकृत किया गया है.
 
* बेतुका भ्रम वह होता है जो बहुत ही अजीबो-ग़रीब और बिलकुल असंभव होता है; उदाहरण के तौर पर कि किसी परकीय ने भ्रमित व्यक्ति का मस्तिष्क बाहर निकाल दिया है. और तर्क-संगत भ्रम वह होता है जिसमें भ्रम के विषय में ग़लतफ़हमी हो सकती है, लेकिन भ्रम होने की संभावना तो रहती है; जैसे किसी भ्रमित व्यक्ति का यह मानना कि वह निरंतर पुलिस की निगरानी में है.
* मनोदशा-अनुरूप भ्रम ऐसा भ्रम है जिसका विषय मानसिक विषाद या पागलपन के दौरान भी सुसंगत रूप से बना रहता है; उदहारण के तौर पर, मानसिक विषाद से गुज़रते व्यक्ति का मानना कि टेलिविज़न के समाचार उदघोषक उसे नापसंद करते हैं, या फिर किसी पागलपन के दौर से गुज़रते व्यक्ति का मानना कि वह ख़ुद एक शक्तिशाली देवी या देवता है. मनोदशा-तटस्थ भ्रम का, भ्रमित व्यक्ति की भावनात्मक स्थिति से कोई संबंध नहीं होता; उदाहरण के तौर पर, भ्रमित व्यक्ति का यह मानना कि उसके सिर के पीछे से एक अतिरिक्त अंग उग रहा है, उसके मानसिक विषाद या पागलपन से कोई संबंध नहीं रखता.<ref name="minddisorders.com">स्रोत: http://www.minddisorders.com/Br-Del/Delusions.html</ref>
 
इन वर्गीकरणों के अलावा, भ्रम अकसर सुसंगत विषय के अनुरूप होते हैं. हालांकि भ्रम किसी भी विषय में हो सकता है, लेकिन कुछ विषय हैं जिन पर भ्रम होना आम बात है. आम तौर पर होने वाले भ्रमों के विषय हैं<ref name="minddisorders.com"></ref>:
*'''नियंत्रण का भ्रम''' : इसमें ऐसा ग़लत विश्वास बैठ जाता है कि व्यक्ति के विचार, भावनाओं, आवेश या बर्ताव पर किसी दूसरे व्यक्ति, व्यक्ति-समूह, या बाहरी शक्ति का नियंत्रण होता है. उदाहरण के तौर पर, भ्रमित व्यक्ति का यह कहना कि उसे ऐसा अनुभव होता है जैसे कोई परकीय उसे विशिष्ट तरीक़े से चलने का आदेश देता है और अपने शारीरिक चलन पर उसका अपना कोई नियंत्रण नहीं है. सोच-प्रसारण (एक ऐसी ग़लत धारणा कि भ्रमित व्यक्ति के विचार लोगों को सुनाई देते हैं), सोच-समावेश, और सोच-वापसी (वो विश्वास जिसमें कोई बाहरी शक्ति, व्यक्ति, या व्यक्ति-समूह भ्रमित व्यक्ति के विचारों को बाहर निकालता है) - ये भी नियंत्रण के भ्रम के उदाहरण हैं.
*'''शून्यवादिता का भ्रम''' : एक ऐसा भ्रम जिसका केंद्र-बिंदु है स्वयं को पूरी तरह या हिस्सों में, या औरों को, या दुनिया को अस्तित्त्वहीन पाना. इस प्रकार के भ्रम से भ्रमित व्यक्ति को अयथार्थ विश्वास हो सकता है कि दुनिया का अंत हो रहा है.
*'''ईर्ष्या का भ्रम (या बेवफ़ाई का भ्रम)''' : ऐसे भ्रम से भ्रमित व्यक्ति का मानना होता है कि उसके पति या पत्नी का किसी और से प्रेम का चक्कर चल रहा है. ऐसे भ्रम की उपज होती है रोगात्मक ईर्ष्या से, और अकसर भ्रमित व्यक्ति "सबूतों" को बटोरता है और जो प्रेम-चक्कर है ही नहीं उसको लेकर पति या पत्नी के साथ झगड़ा करता है.
*'''अपराधी या पापी होने का भ्रम (या स्वयं को आरोपी मानने का भ्रम)''' : ऐसे भ्रम में व्यक्ति पश्चाताप की ग़लत भावना या अपराधी होने के तीव्र भ्रम का शिकार होता है. उदाहरण के तौर पर, भ्रमित व्यक्ति का ये मानना कि उसने कोई भयानक अपराध किया है और उसे कड़ी से कड़ी सज़ा मिलनी चाहिए. एक और उदाहरण जिसमें भ्रमित व्यक्ति निश्चित रूप से विश्वास करता है कि वह ख़ुद किसी महाविपदा (जैसे: आग, बाढ़, या भूकंप) के लिए ज़िम्मेदार है, हालांकि उस महाविपदा से उसका कोई संबंध हो ही नहीं सकता.
*'''मन की बात को पढ़ने का भ्रम''' : एक ग़लत विश्वास कि और लोग उसके मन की बात को पढ़ सकते हैं. यह भ्रम सोच-प्रसारण से अलग है क्योंकि इसमें भ्रमित व्यक्ति को ऐसा नहीं लगता कि और लोग उसके विचारों को सुन रहे हैं.
*'''संदर्भ का भ्रम''' : ऐसे भ्रम में भ्रमित व्यक्ति को अपने चारों तरफ़ होने वाली तुच्छ टिप्पणियों, घटनाओं या वस्तुओं में व्यक्तिगत अर्थ या महत्त्व नज़र आता है. उदाहरण के तौर पर, भ्रमित व्यक्ति का ऐसा मानना कि उसे अख़बार की सुर्ख़ियों से विशेष संदेश प्राप्त हो रहे हैं.
*'''कामोन्माद''' एक ऐसा भ्रम है जिसमें भ्रमित व्यक्ति मानता है कि कोई व्यक्ति उससे प्यार करता है. उसका मानना होता है कि उस प्यार करने वाले व्यक्ति ने, कुछ ख़ास तरीक़ों से, जैसे नज़रें मिलाना, इशारे करना, टेलीपैथी द्वारा या प्रसार-माध्यम से, अपने प्यार का इज़हार पहले किया.
*'''भव्य भ्रम''' : ऐसे भ्रम में भ्रमित व्यक्ति का मानना होता है कि उसमें विशेष शक्तियां, प्रतिभाएं, या क्षमताएं मौजूद हैं. ऐसा भी हो सकता है कि भ्रमित व्यक्ति अपने आप को एक मशहूर हस्ती या पात्र (जैसे, एक रॉक स्टार) समझने लगे. सामान्यतः यह देखने में आया है कि ऐसे भ्रम में भ्रमित व्यक्ति मानता है कि उसने कुछ महान उपलब्धि (जैसे किसी नए वैज्ञानिक परिकल्पना की खोज) हासिल की है पर उसे उसके लिए पर्याप्त मान्यता नहीं मिली है. अक्सर ऐसे व्यक्ति का मानना होता है कि उसने एक ऐसी "सच्चाई" का पर्दाफ़ाश किया है जो मानव जाति के पूरे इतिहास में दबकर रह गया था.
*'''उत्पीड़न का भ्रम''' : यह सबसे सामान्य तौर पर पाया जाने वाला भ्रम है, और इसमें अपने लक्ष्य को हासिल करने के रास्ते में पीछा किया जाना, परेशान करना, धोखा देना, ज़हर देना या नशा करवाना, अपने ख़िलाफ़ साज़िश, जासूसी, हमला होना या अड़चनें पैदा करना जैसे विषय शामिल हैं. कभी-कभी ऐसा भ्रम कुछ वियुक्त और बिखरा-बिखरा सा होता है (जैसे ग़लत धारणा होना कि सह-कार्यकर्ता परेशान कर रहें हैं), तो कभी जटिल भ्रमों के समूह ("क्रमबद्ध भ्रम") से बना यह भ्रम एक सुव्यवस्थित विश्वास प्रणाली के रूप में पाया जाता है. उत्पीड़न के भ्रम से पीड़ित लोगों का मानना होता है कि, उदाहरण के तौर पर, सरकारी संगठन उनका पीछा कर रहे है क्योंकि "उत्पीड़ित" व्यक्ति को ग़लती से जासूस समझा गया है. विश्वास की ये प्रणालियां इतनी व्यापक और जटिल हो सकतीं हैं कि ये भ्रमित व्यक्ति के साथ होने वाली हर बात की सफ़ाई दे सकतीं हैं.
*'''धार्मिक भ्रम''' : कोई भी भ्रम जो किसी धार्मिक या आध्यात्मिक विषय से जुड़ा हो. यह भ्रम, भव्य भ्रम जैसे अन्य भ्रमों, (उदाहरण के तौर पर, भ्रमित व्यक्ति का मानना कि वह खुद भगवान है, या उसे भगवान के रूप में काम करने के लिए चुना गया है) के साथ संयुक्त रूप में भी पाया जाता है.
*'''दैहिक भ्रम''' : एक ऐसा भ्रम जिसका संबंध शारीरिक क्रियाशीलता, शारीरिक अनुभूतियों या शारीरिक रूप-रंग से होता है. साधारणतया एक ग़लत धारणा होती है कि शरीर किसी तरह से बीमार है,या शरीर में कुछ असामान्यता आई है या कोई बदलाव आया है, जैसे पूरे शरीर में परजीवी पड़े हों.
 
==निदान==
[[File:Airloom.gif|thumb|जॉन हैस्लैम ने जेम्स टिल्ली मैथ्यू द्वारा वर्णित 'वायु करघा' नामक मशीन के इस चित्र की सचित्र व्याख्या प्रस्तुत की, जिसके बारे में मैथ्यू का मानना था कि इसका उपयोग राजनीतिक उद्देश्यों के लिए उसे और दूसरों पर अत्याचार करने के लिए किया जा रहा था.]]
आधुनिक परिभाषा और जैस्पर्स के मूल मानदंडों की आलोचना की गई है, चूंकि हर परिभाषित स्थिति के प्रतिकूल उदाहरण भी पाए जा सकते हैं.
 
मानसिक तौर पर अस्वस्थ रोगियों पर किये अध्ययन से पता चलता है कि समय के साथ-साथ भ्रमों की तीव्रता और विश्वास की दृढ़ता में हेर-फ़ेर होने लगता है जिससे यह संकेत मिलता है कि ये ज़रूरी नहीं है कि निश्चितता और सुधारने में असंभवता, ये दोनों भ्रमित करने वाली धारणाओं के घटक हों.<ref>{{cite journal |author=Myin-Germeys I, Nicolson NA, Delespaul PA |title=The context of delusional experiences in the daily life of patients with schizophrenia |journal=Psychol Med |volume=31 |issue=3 |pages=489–98 |year=2001 |month=April |pmid=11305857 }}</ref>
 
यह ज़रूरी नहीं है कि भ्रम एक मिथ्या हो या 'बाहरी सत्यता का ग़लत अनुमान'.<ref>{{cite journal |doi=10.1016/0010-440X(90)90023-L |author=Spitzer M |title=On defining delusions |journal=Compr Psychiatry |volume=31 |issue=5 |pages=377–97 |year=1990 |pmid=2225797 |url=http://linkinghub.elsevier.com/retrieve/pii/0010-440X(90)90023-L}}<br></ref> कुछ धार्मिक और आध्यात्मिक मान्यताओं को अपनी सहजता के कारण झुठलाया नहीं जा सकता, और इसीलिये इन्हें असत्य या ग़लत भी नहीं कहा जा सकता, फिर चाहे इन मान्यताओं पर विश्वास करने वाला व्यक्ति भ्रम का शिकार हो या न हो.<ref>{{cite book |author=Young, A.W. |chapter=Wondrous strange: The neuropsychology of abnormal beliefs |editor=Coltheart M., Davis M. |title=Pathologies of belief |publisher=Blackwell |location=Oxford |year=2000 |isbn=0-631-22136-0 |pages=47–74 }}</ref>
 
बाकी परिस्थितियों में भ्रम एक सच्चा विश्वास हो सकता है.<ref>{{cite journal |author=Jones E |title=The phenomenology of abnormal belief |journal=Philosophy, Psychiatry and Psychology |volume=6 |pages=1–16 |year=1999 |url=http://muse.jhu.edu/journals/philosophy_psychiatry_and_psychology/toc/ppp6.1.html}}</ref> उदाहरण के तौर पर, ईर्ष्या का भ्रम, जिसमें भ्रमित व्यक्ति का मानना होता है कि उसका जीवन साथी उसके साथ विश्वासघात कर रहा है या रही है (यहां तक कि वह बाथरूम में भी उसका पीछा करता है यह सोचकर कि जुदा रहने के इन कुछ क्षणों में भी उसका जीवन साथी अपने प्रेमी से संपर्क बनाए रखेगा या रखेगी), परिणामस्वरूप, अपने भ्रमित जीवन साथी द्वारा डाले जा रहे निरंतर और अनुचित तनाव के कारण वफ़ादार जीवन साथी बेवफ़ाई करने पर उतारू हो सकता है. ऐसे मामले में जब आगे चलकर बात सच निकलती है तो भ्रम, भ्रम नहीं रह जाता.
 
अन्य मामलों में, भ्रम की जांच करने वाले डॉक्टर या मनोचिकित्सक भ्रम को ग़लत बता सकते हैं, क्योंकि उन्हें ''लगता है'' कि ऐसी बेतुकी या ज़रूरत से ज़्यादा विश्वास की गई धारणा असंभव है. मनोचिकित्सकों के पास न तो इतना समय होता है न ही साधन कि वे भ्रमित व्यक्ति की बातों की सत्यता की जांच-परख कर सकें कि कहीं ग़लती से असली विश्वास को भ्रम का रूप न दिया गया हो.<ref>{{cite book |author=Maher B.A. |chapter=Anomalous experience and delusional thinking: The logic of explanations |editor=Oltmanns T., Maher B. |title=Delusional Beliefs |publisher=Wiley Interscience |location=New York |year=1988 |isbn=0-471-83635-4 }}</ref> ऐसी स्थिति को मार्था मिशेल प्रभाव कहते हैं, यह उस महिला के नाम से जुड़ा है जो एक वकील की पत्नी थी और जिसने आरोप लगाया था कि [[व्हाइट हाउस|व्हाइट हाउस]] में ग़ैरकानूनी गतिविधियां चल रहीं थीं. उस वक्त उस महिला के दावे को मानसिक अस्वस्थता का लक्षण माना गया, लेकिन वॉटरगेट के घोटाले के बाद उसका दावा सही साबित हुआ (अर्थात वह स्वस्थ थी).
 
कुछ ऐसे ही कारणों से, जैस्पर्स द्वारा दी गई असली भ्रमों की परिभाषाओं की ऐसी आलोचना की गई कि आखिरकार उन्हें 'बिलकुल ही समझ के बाहर' माना गया. आर. डी. लेइंग जैसे आलोचकों का कहना था कि ऐसी परिभाषाओं से भ्रम का निदान मनोचिकित्सक की आत्मगत समझ पर आधारित होता है, और हो सकता है कि उस मनोचिकित्सक के पास वो सारी जानकारी न हो जिनसे भ्रम का कोई और अर्थ निकाला जा सकता हो. आर. डी. लेइंग की परिकल्पना को प्रक्षेपीय चिकित्सा के कुछ रूपों में लागू किया गया है ताकि भ्रम-प्रणाली को इतनी "दृढ़ता से आबद्ध" किया जा सके कि रोगी उसमें कोई परिवर्तन न कर सके. येल यूनिवर्सिटी (Yale University), ओहियो स्टेट यूनिवर्सिटी (Ohio State University) और कम्यूनिटी मेंटल हेल्थ सेंटर ऑफ़ मिड्ल जॉर्जिया (Community Mental Health Center of Middle Georgia) के शोधकर्ता मनोचिकित्सकों ने उपन्यासों और फिल्मों का केंद्रबिंदु के रूप में उपयोग किया है. इसमें लेख, विषय और छायांकन पर चर्चा की जाती है और विषयांतर के ज़रिये भ्रम का प्रस्ताव किया जाता है.<ref>{{cite journal |author=Giannini AJ |title=Use of fiction in therapy |journal=Psychiatric Times |volume=18 |issue=7 |pages=56 |year=2001 }}</ref>. विज्ञान संबंधी काल्पनिक कथा-साहित्य (science-fiction) के लेखक फिलिप होज़े फार्मर (Philip Jose Farmer) और येल के मनोचिकित्सक ए. जेम्स जियानिनी (A. James Giannini) ने एक संयुक्त योजना बनाई जिसमें भ्रम के हेर-फ़ेर को कम करने के लिए काल्पनिक कथा-साहित्य का उपयोग किया. उन्होंने ''रेड और्क्स रेज (Red Orc's Rage)'' नामक एक उपन्यास लिखा जिसमें भ्रमित होने वाले किशोरावस्था के रोगियों का इलाज, बार-बार, प्रक्षेपीय चिकित्सा से किया जाता है. इस उपन्यास के काल्पनिक दृश्यों में लेखक फार्मर के अन्य उपन्यासों की चर्चा की गई है और उनके पात्रों को काल्पनिक रोगियों के भ्रम में प्रतीकात्मक रूप से जोड़ दिया गया है.उसके बाद, इस विशेष उपन्यास का प्रयोग असली जीवन के चिकित्सीय हालातों में किया गया.<ref>एजे गिअनिनी. अंतभाषण. (में) पीजे किसान. लाल ओरक जुनून.एनवाई, टोर पुस्तकें, 1991, पीपी.279-282.</ref>
 
भ्रम के निदान में एक और कठिनाई है कि भ्रम के लगभग सभी लक्षण "सामान्य" विश्वासों में पाए जाते हैं. अनेक धार्मिक विश्वासों में भी बिलकुल यही लक्षण पाए जाते हैं, फिर भी उन्हें सर्वत्र भ्रम नहीं माना जाता. इन्हीं सब कारणों से मनोचिकित्सक ऐंथनी डेविड ने टिप्पणी की कि "भ्रम की कोई स्वीकार्य योग्य (स्वीकृत कहने के बजाय) परिभाषा नहीं है."<ref>{{cite journal |author=David AS |title=On the impossibility of defining delusions |journal=Philosophy, Psychiatry and Psychology |volume=6 |issue=1 |pages=17–20 |year=1999 }}</ref> मनोचिकित्सक तब किसी विश्वास को भ्रम का निरूपण मानते हैं जब विश्वास की धारणा बिलकुल ही बेतुकी हो, और जिससे रोगी पर संकट छाया हो, या रोगी ज़रूरत से ज़्यादा चिंतित रहता हो, ख़ासकर तब जब विपरीत सबूत या उचित तर्क पेश करने के बावजूद भी रोगी अपने विश्वास पर ही अड़ा रहता है.
 
== विशिष्ट भ्रमों की उत्पत्ति ==
'भ्रमों की उत्पत्ति' के दो प्रमुख कारण हैं: 1. मस्तिष्क के कामकाज में गड़बड़ी और 2. मिज़ाज व व्यक्तित्त्व पर हालातों का असर<ref>{{cite book |author=Sims, Andrew |title=Symptoms in the mind: an introduction to descriptive psychopathology |publisher=W. B. Saunders |location=Philadelphia |year=2002 |pages=127 |isbn=0-7020-2627-1 |oclc= |doi= |accessdate=}}</ref>.
 
डोपामाइन(dopamine) की मात्रा बढ़ जाने से 'मस्तिष्क के कामकाज में गड़बड़ी' के लक्षण दिखाई देने लगते हैं. मनस्तापी संलक्षण (psychotic syndrome) पर किये एक प्राथमिक अध्ययन में इस बात की जांच की गयी कि अमुक भ्रमों को बनाए रखने के लिए डोपामाइन का अधिक मात्रा में होना आवश्यक है, दरअसल यह अध्ययन इस बात के स्पष्टीकरण के लिए किया गया था कि क्या मनोभाजन (schizophrenia) में डोपामाइन मनोविकृति (dopamine psychosis) पायी जाती है.<ref>{{cite journal |author=Morimoto K, Miyatake R, Nakamura M, Watanabe T, Hirao T, Suwaki H |title=Delusional disorder: molecular genetic evidence for dopamine psychosis |journal=Neuropsychopharmacology |volume=26 |issue=6 |pages=794–801 |year=2002 |month=June |pmid=12007750 |doi=10.1016/S0893-133X(01)00421-3 |url=http://www.nature.com/npp/journal/v26/n6/full/1395864a.html}}</ref> परिणाम सकारात्मक पाए गए - ईर्ष्या के भ्रम और उत्पीड़न के भ्रम में डोपामाइन मेटाबोलाइट (dopamine metabolite) एचवीए (HVA) (जो आनुवंशिक कारणों से भी हो सकते हैं) अलग-अलग मात्रा में पाए गए. इन परिणामों को केवल कामचलाऊ माना जा सकता है, चूंकि अध्ययन में, और ज़्यादा जनसंख्या को लेकर, भविष्य में एक बार फिर अनुसंधान करने की मांग थी.
 
यह एकतरफ़ा बात होगी अगर कहें कि डोपामाइन (dopamine) की निश्चित मात्रा से व्यक्ति किसी विशिष्ट भ्रम का शिकार हो सकता है. अध्ययनों में पाया गया है कि भ्रम का शिकार होने में व्यक्ति की उम्र<ref>{{cite journal |author=Mazure CM, Bowers MB |title=Pretreatment plasma HVA predicts neuroleptic response in manic psychosis |journal=Journal of Affective Disorders |volume=48 |issue=1 |pages=83–6 |date=1 February 1998 |pmid=9495606 |doi=10.1016/S0165-0327(97)00159-6}}</ref><ref>{{cite journal |author=Yamada N, Nakajima S, Noguchi T |title=Age at onset of delusional disorder is dependent on the delusional theme |journal=Acta Psychiatrica Scandinavica |volume=97 |issue=2 |pages=122–4 |year=1998 |month=February |pmid=9517905 |doi=10.1111/j.1600-0447.1998.tb09973.x }}</ref> और लिंग काफी प्रभावकारी होते हैं और कुछ संलक्षणों (syndromes) के जीवन काल में एचवीए (HVA) के स्तर में फ़ेर-बदलाव होने की संभावना होती है.<ref>{{cite journal |author=Tamplin A, Goodyer IM, Herbert J |title=Family functioning and parent general health in families of adolescents with major depressive disorder |journal=Journal of Affective Disorders |volume=48 |issue=1 |pages=1–13 |date=1 February 1998 |pmid=9495597 |doi=10.1016/S0165-0327(97)00105-5}}</ref>
 
व्यक्तित्त्व का असर होने के बारे में कहा गया है कि, "जैस्पर्स का मानना था कि बीमारी की वजह से व्यक्तित्त्व में थोड़ा-सा बदलाव आता है, और ऐसे बदलाव की स्थिति से भ्रमात्मक वातावरण बनने लगता है जिसमें भ्रम का अंतर्बोध होने लगता है."<ref>{{cite book |author=Sims, Andrew |title=Symptoms in the mind: an introduction to descriptive psychopathology |publisher=W. B. Saunders |location=Philadelphia |year=2002 |pages=128 |isbn=0-7020-2627-1 |oclc= |doi= |accessdate=}}</ref>
 
सांस्कृतिक घटक, "भ्रमों के निरूपण में निर्णायक रूप से प्रभावकारी" होते हैं.<ref>{{cite journal |author=Draguns JG, Tanaka-Matsumi J |title=Assessment of psychopathology across and within cultures: issues and findings |journal=Behav Res Ther |volume=41 |issue=7 |pages=755–76 |year=2003 |month=July |pmid=12781244 |doi= |url=http://linkinghub.elsevier.com/retrieve/pii/S0005796702001900}}</ref> उदाहरण के तौर पर, ऑस्ट्रिया जैसे ईसाई, पाश्चात्य देश के लोगों में अक्सर अपराधी होने और सज़ा पाने के भ्रम पाए जाते हैं, लेकिन पाकिस्तान में - जहां अपराध की संभावना अधिक है, वहां कोई भ्रम नहीं पाया जाता. इसे कहते हैं सांस्कृतिक घटकों का भ्रमों के निरूपण में निर्णायक रूप से प्रभावकारी होना.<ref>{{cite journal |author=Stompe T, Friedman A, Ortwein G, ''et al'' |title=Comparison of delusions among schizophrenics in Austria and in Pakistan |journal=Psychopathology |volume=32 |issue=5 |pages=225–34 |year=1999 |pmid=10494061 |doi= 10.1159/000029094|url=http://content.karger.com/produktedb/produkte.asp?typ=fulltext&file=psp32225}}</ref> . अनेक अध्ययनों के अनुसार ऑस्ट्रिया में भी अपराधी होने और सज़ा पाने के भ्रम में फंसे लोग मिलते हैं जो पार्किन्सन रोग के मरीज़ हैं और जिनका इलाज आई-डोपा (I-dopa) - बनावटी डोपामाइन से किया जा रहा है.<ref>{{cite journal |author=Birkmayer W, Danielczyk W, Neumayer E, Riederer P |title=The balance of biogenic amines as condition for normal behaviour |journal=J. Neural Transm. |volume=33 |issue=2 |pages=163–78 |year=1972 |pmid=4643007 |doi= 10.1007/BF01260902|url=http://www.springerlink.com/index/N11474QQ25R5U236.pdf|format=PDF}}</ref>
 
== इन्हें भी देखें ==
{{Portal|Thinking}}
<div>
* शारीरिक विकार डोपामाइन
* [[चित्तविभ्रम|चित्तभ्रम]]
* संदर्भ का भ्रम
* कैपग्रास भ्रम
* वृकोन्माद
* कॉटर्ड भ्रम
* भ्रान्तिमूलक गलत अभिनिर्धारण संलक्षण
 
* भ्रान्तिमूलक परजीवीरुग्णता
* फोली अ ड्यूक्स
* फ्रेगोली भ्रम
* घुसपैठ चिंतन
* यरूशलेम संलक्षण
* पुनरावृत अपस्मृति
* एक विषयक भ्रम
* [[संविभ्रम|मानसिक उन्माद]]
* मानसिक उन्माद नेटवर्क
* मानसिक विकारों के अभिघात मॉडल
</div>
 
==संदर्भ==
{{Reflist|2}}
 
;उद्धृत पाठ
*{{cite book |last=Jaspers |first=Karl |authorlink=Karl Jaspers |title=General Psychopathology |volume=1 |publisher=Johns Hopkins University Press |location=Baltimore |isbn=0-8018-5775-9 |year=1997 |ref=harv}}
 
== आगे पढ़ें ==
* {{cite journal |author=Bell V, Halligan PW, Ellis H |title=Beliefs about delusions |journal=The Psychologist |volume=16 |issue=8 |pages=418–423 |year=2003 |url=http://mindfull.spc.org/vaughan/Bell_et_al_2003_BeliefsAboutDelusions.pdf |format=PDF}}
* {{cite journal
| last = Blackwood
| first = Nigel J.
| last2 = Howard
| first2 = Robert J.
| last3 = Bentall
| first3 = Richard P.
| last4 = Murray
| first4 = Robin M.
| authorlink4 = Robin Murray
| year = 2001
| month = April
| title = Cognitive Neuropsychiatric Models of Persecutory Delusions
| journal = [[American Journal of Psychiatry]]
| volume = 158
| issue = 4
| pages = 527–539
| url = http://ajp.psychiatryonline.org/cgi/content/abstract/158/4/527
| doi = 10.1176/appi.ajp.158.4.527
}}
* {{cite book |editor=Coltheart M., Davies M. |title=Pathologies of belief |publisher=Blackwell |location=Oxford |year=2000 |isbn=0-631-22136-0 }}
* {{cite book |author=Persaud, R. |title=From the Edge of the Couch: Bizarre Psychiatric Cases and What They Teach Us About Ourselves |publisher=Bantam |year=2003 |isbn=0-553-81346-3 }}
 
{{Bipolar disorder}}
{{Mental and behavioral disorders|selected = schizophrenia}}
 
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