"भ्रमासक्ति": अवतरणों में अंतर

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*'''नियंत्रण का भ्रम''' : इसमें ऐसा ग़लत विश्वास बैठ जाता है कि व्यक्ति के विचार, भावनाओं, आवेश या बर्ताव पर किसी दूसरे व्यक्ति, व्यक्ति-समूह, या बाहरी शक्ति का नियंत्रण होता है. उदाहरण के तौर पर, भ्रमित व्यक्ति का यह कहना कि उसे ऐसा अनुभव होता है जैसे कोई परकीय उसे विशिष्ट तरीक़े से चलने का आदेश देता है और अपने शारीरिक चलन पर उसका अपना कोई नियंत्रण नहीं है. सोच-प्रसारण (एक ऐसी ग़लत धारणा कि भ्रमित व्यक्ति के विचार लोगों को सुनाई देते हैं), सोच-समावेश, और सोच-वापसी (वो विश्वास जिसमें कोई बाहरी शक्ति, व्यक्ति, या व्यक्ति-समूह भ्रमित व्यक्ति के विचारों को बाहर निकालता है) - ये भी नियंत्रण के भ्रम के उदाहरण हैं.
*'''शून्यवादिता का भ्रम''' : एक ऐसा भ्रम जिसका केंद्र-बिंदु है स्वयं को पूरी तरह या हिस्सों में, या औरों को, या दुनिया को अस्तित्त्वहीन पाना. इस प्रकार के भ्रम से भ्रमित व्यक्ति को अयथार्थ विश्वास हो सकता है कि दुनिया का अंत हो रहा है.
*'''ईर्ष्या का भ्रम (या बेवफ़ाई का भ्रम)''' : ऐसे भ्रम से भ्रमित व्यक्ति का मानना होता है कि उसके पति या पत्नी का किसी और से प्रेम का चक्करसम्बंध चल रहा है. ऐसे भ्रम की उपज होती है रोगात्मक ईर्ष्या से, और अकसर भ्रमित व्यक्ति "सबूतों" को बटोरता है और जो प्रेम-चक्कर है ही नहीं उसको लेकर पति या पत्नी के साथ झगड़ा करता है.
*'''अपराधी या पापी होने का भ्रम (या स्वयं को आरोपी मानने का भ्रम)''' : ऐसे भ्रम में व्यक्ति पश्चाताप की ग़लत भावना या अपराधी होने के तीव्र भ्रम का शिकार होता है. उदाहरण के तौर पर, भ्रमित व्यक्ति का ये मानना कि उसने कोई भयानक अपराध किया है और उसे कड़ी से कड़ी सज़ा मिलनी चाहिए. एक और उदाहरण जिसमें भ्रमित व्यक्ति निश्चित रूप से विश्वास करता है कि वह ख़ुद किसी महाविपदा (जैसे: आग, बाढ़, या भूकंप) के लिए ज़िम्मेदार है, हालांकि उस महाविपदा से उसका कोई संबंध हो ही नहीं सकता.
*'''मन की बात को पढ़ने का भ्रम''' : एक ग़लत विश्वास कि और लोग उसके मन की बात को पढ़ सकते हैं. यह भ्रम सोच-प्रसारण से अलग है क्योंकि इसमें भ्रमित व्यक्ति को ऐसा नहीं लगता कि और लोग उसके विचारों को सुन रहे हैं.