"जॉर्ज अब्राहम ग्रियर्सन": अवतरणों में अंतर

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'''जॉर्ज अब्राहम ग्रियर्सन''' (1851-1941) अंग्रेजों के जमाने में "इंडियन सिविल सर्विस" के कर्मचारी थे। भारतीय विद्याविशारदों में, विशेषत: भाषाविज्ञान के क्षेत्र में, अनका स्थान अमर है। सर जार्ज अब्राहम ग्रियर्सन "लिंग्विस्टिक सर्वे ऑव इंडिया" के प्रणेता के रूप में अमर हैं। ग्रियर्सन को भारतीय संस्कृति और यहाँ के निवासियों के प्रति अगाध प्रेम था। भारतीय भाषाविज्ञान के वे महान् उन्नायक थे। नव्य भारतीय आर्यभाषाओं के अध्ययन की दृष्टि से उन्हें [[बीम्स]], [[भांडारकर]] और [[हार्नली]] के समकक्ष रखा जा सकता है। एक सहृदय व्यक्ति के रूप में भी वे भारतवासियों की श्रद्धा के पात्र बने।
 
==जीवनी==
ग्रियर्सन का जन्म [[डब्लिन]] के निकट 7 जनवरी, 1851 को हुआ था। उनके पिता [[आयरलैंड]] में क्वींस प्रिंटर थे। 1868 से डब्लिन में ही उन्होंने [[संस्कृत]] और [[हिंदुस्तानी]] का अध्ययन प्रारंभ कर दिया था। बीज़ (Bee's) स्कूल श्यूजबरी, ट्रिनटी कालेज, डब्लिन और [[केंब्रिज]] तथा हले (Halle) (जर्मनी) में शिक्षा ग्रहण कर 1873 में वे इंडियन सिविल सर्विस के कर्मचारी के रूप में [[बंगाल]] आए और प्रारंभ से ही भारतीय आर्य तथा अन्य भारतीय भाषाओं के अध्ययन की ओर रुचि प्रकट की। 1880 में इंस्पेक्टर ऑव स्कूल्स, बिहार और 1869 तक [[पटना]] के ऐडिशनल कमिश्नर और औपियम एज़ेंट, बिहार के रूप में उन्होंने कार्य किया। सरकारी कामों से छुट्टी पाने के बाद वे अपना अतिरिक्त समय संस्कृत, [[प्राकृत]], पुरानी हिंदी, बिहारी और बंगला भाषाओं और साहित्यों के अध्ययन में लगाते थे। जहाँ भी उनकी नियुक्ति होती थी वहीं की भाषा, बोली, साहित्य और लोकजीवन की ओर उनका ध्यान आकृष्ट होता था।
 
==कार्य==
1873 और 1869 के कार्यकाल में ग्रियर्सन ने अपने महत्वपूर्ण खोज कार्य किए।
* उत्तरी बंगाल के लोकगीत, कविता और रंगपुर की बँगला बोली - जर्नल ऑव दि एशियाटिक सोसायटी ऑव बंगाल, 1877, जि. 1 सं. 3, पृ. 186-226
* राजा गोपीचंद की कथा; वही, 1878, जि. 1 सं. 3 पृ. 135-238
* मैथिली ग्रामर (1880)
* सेवेन ग्रामर्स आव दि डायलेक्ट्स ऑव दि बिहारी लैंग्वेज (1883-1887)
* इंट्रोडक्शन टु दि मैथिली लैंग्वेज;
* ए हैंड बुक टु दि कैथी कैरेक्टर,
* बिहार पेजेंट लाइफ,
* बीइग डेस्क्रिप्टिव कैटेलाग ऑव दि सराउंडिंग्ज ऑव दि वर्नाक्युलर्स, जर्नल ऑव दि जर्मन ओरिएंटल सोसाइटी (1895-96),
* कश्मीरी व्याकरण और कोश,
* कश्मीरी मैनुएल,
* पद्मावती का संपादन (1902) महामहोपाध्याय सुधाकर द्विवेदी की सहकारिता में,
* बिहारीकृत सतसई (लल्लूलालकृत टीका सहित) का संपादन,
* नोट्स ऑन तुलसीदास,
* दि माडर्न वर्नाक्युलर लिटरेचर ऑव हिंदुस्तान (1889)
 
आदि उनकी कुछ महत्वपूर्ण रचनाएँ हैं।
 
उनकी ख्याति का प्रधान स्तंभ लिंग्विस्टिक सर्वे ऑव इंडिया ही है। 1885 में प्राच्य विद्याविशारदों की अंतर्राष्ट्रीय कांग्रेस ने विएना अधिवेशन में भारतवर्ष के भाषा सर्वेक्षण की आवश्यकता का अनुभव करते हुए भारतीय सरकार का ध्यान इस ओर आकृष्ट किया। फलत: भारतीय सरकार ने 1888 में ग्रियर्सन की अध्यक्षता में सर्वेक्षण कार्य प्रारंभ किया। 1888 से 1903 तक उन्होंने इस कार्य के लिये सामग्री संकलित की। 1902 में नौकरी से अवकाश ग्रहण करने के पश्चात् 1903 में जब उन्होंने भारत छोड़ा सर्वे के विभिन्न खंड क्रमश: प्रकाशित होने लगे। वह 21 जिल्दों में है और उसमें भारत की 179 भाषाओं और 544 बोलियों का सविस्तार सर्वेक्षण है। साथ ही भाषाविज्ञान और व्याकरण संबंधी सामग्री से भी वह पूर्ण है। ग्रियर्सन कृत सर्वे अपने ढंग का एक विशिष्ट ग्रंथ है। उसमें हमें भारतवर्ष का भाषा संबंधी मानचित्र मिलता है और उसका अत्यधिक सांस्कृतिक महत्व है। दैनिक जीवन में व्यवहृत भाषाओं और बोलियों का इतना सूक्ष्म अध्ययन पहले कभी नहीं हुआ था। बुद्ध और अशोक की धर्मलिपि के बाद ग्रियर्सन कृत सर्वे ही एक ऐसा पहला ग्रंथ है जिसमें दैनिक जीवन में बोली जानेवाली भाषाओं और बोलियों का दिग्दर्शन प्राप्त होता है।
 
इन्हें सरकार की ओर से 1894 में सी.आई.ई. और 1912 में "सर" की उपाधि दी गई। अवकाश ग्रहण करने के पश्चात् ये कैंबले में रहते थे। आधुनिक भारतीय भाषाओं के अध्ययन क्षेत्र में सभी विद्वान् उनका भार स्वीकार करते थे। 1876 से ही वे बंगाल की रॉयल एशियाटिक सोसाइटी के सदस्य थे। उनकी रचनाएँ प्रधानत: सोसायटी के जर्नल में ही प्रकाशित हुईं। 1893 में वे मंत्री के रूप में सोसाइटी की कौंसिल के सदस्य और 1904 में आनरेरी फेलो मनोनीत हुए। 1894 में उन्होंने हले से पी.एच.डी. और 1902 में ट्रिनिटी कालेज डब्लिन से डी.लिट्. की उपाधियाँ प्राप्त कीं। वे रॉयल एशियाटिक सोसायटी के भी सदस्य थे। उनकी मृत्यु 1941 में हुई।
 
==महत्व==
भारतीय भाषाओं एवं साहित्य के अध्ययन की दृष्टि से विदेशी विद्वानो में डॉ0 ग्रियर्सन का नाम सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। इस दृष्टि से यह तथ्य उल्लेखनीय है कि भारत सरकार के मानव संसाधन विकास मंत्री की अध्यक्षता में केन्द्रीय हिन्दी संस्थान की शासी परिषद् ने सन् 1993 ई0 में अपनी बैठक में हिन्दी सेवी सम्मान योजना के अन्तर्गत प्रतिवर्ष एक विदेशी हिन्दी सेवी विद्वान को भी सम्मानित करने का निर्णय लिया तो सर्वसम्मति से पुरस्कार का नाम ‘‘डॉ0 जॉर्ज ग्रियर्सन पुरस्कार'' रखा गया। भारत के राष्ट्रपति ने 14 सितम्बर, 1994 को आयोजित समारोह में अपने भाषण में प्रथम जॉर्ज ग्रियर्सन सम्मान प्राप्त करने वाले विदेशी विद्वान को विशेष रूप से अपनी हार्दिक बधाई दी।
 
साहित्येतिहास की दृष्टि से इनकी ‘मॉडर्न वर्नाक्यूलर लिटरेचर ऑफ हिन्दुस्तान' ग्रन्थ का महत्व है। इसका प्रकाशन एशियाटिक सोसायटी ऑफ बंगाल, कलकत्ता द्वारा सन् 1889 ई0 में हुआ। आपने ग्रामीण शब्दावली एवं लोक साहित्य पर भी कार्य सम्पन्न किए। आपने काश्मीरी भाषा पर व्याकरण एवं कोश सम्बन्धी स्वतन्त्र ग्रन्थों की भी रचना की। आपके बिहारी भाषाओं तथा भारत की भाषाओं से सम्बन्धित निम्न ग्रन्थों का उल्लेख करना प्रासंगिक है जिनमें हिन्दी भाषा क्षेत्र की उपभाषाओं का भी विस्तृत विवेचन समाहित है ः-
 
(i) सेविन ग्रैमर्स ऑफ द डाइलेक्ट्स एण्ड सब-डाइलेक्ट्स ऑफ बिहारी लैंग्वेजिज, जर्नल ऑफ एशियाटिक सोसायटी, बंगाल (1883-1887)
 
(ii) मार्डन आर्यन लैंग्वेजिज, जर्नल ऑफ एशियाटिक सोसायटी, बंगाल, Vol. 64, No.-1
 
(iii) लिंग्विस्टिक सर्वे ऑफ इंडिया
 
सन् 1894 ई0 में इन्होंने भारत के भाषा सर्वेक्षण का कार्य आरम्भ किया। 33 वर्षों के अनवरत परिश्रम के फलस्वरूप यह कार्य सन् 1927 ई0 में समाप्त हुआ। मूलतः यह ग्यारह खण्डों में विभक्त है। अनेक खण्डों (खण्ड एक, तीन, पॉच, आठ एवं नौ) के एकाधिक भाग हैं। ग्यारह हजार पृष्ठों का यह सर्वेक्षण-कार्य विश्व में अपने ढंग का अकेला कार्य है। विश्व के किसी भी देश में भाषा-सर्वेक्षण का ऐसा विशद् कार्य नहीं हुआ है। प्रशासनिक अधिकारी होते हुए आपने भारतीय भाषाओं और बोलियों का विशाल सर्वेक्षण कार्य सम्पन्न किया। चूँकि आपका सर्वेक्षण अप्रत्यक्ष-विधि पर आधारित था, इस कारण इसमें त्रुटियों का होना स्वाभाविक है। सर्वेक्षण कार्य में जिन प्राध्यापकों, पटवारियों एवं अधिकारियों ने सहयोग दिया, अपने अपने क्षेत्रों में बोले जाने वाले भाषा रूपों का परिचय, उदाहरण, कथा-कहाँनियां आदि लिखकर भेजीं, वे स्वन-विज्ञान एवं भाषा विज्ञान के विद्वान नहीं थे। अपनी समस्त त्रुटियों एवं कमियों के बावजूद डॉ0 ग्रियर्सन का यह सर्वेक्षण कार्य अभूतपूर्व है तथा भारत की प्रत्येक भाषा एवं बोली पर कार्य करने वाला शोधकर्ता सर्वप्रथम डा0 ग्रियर्सन की मान्यता एवं उनके द्वारा प्रस्तुत व्याकरणिक ढांचे से अपना शोधकार्य आरम्भ करता है। यह कहा जा सकता है कि आपके कार्य का ऐतिहासिक महत्व अप्रतिम है।)<ref>{{cite web |url=http://rachanakar.blogspot.com/2009/09/blog-post_176.html|title=प्रोफ़ेसर महावीर सरन जैन का आलेख : विदेशी विद्वानों द्वारा हिन्दी का अध्ययन|accessmonthday=[[१२ सितंबर]]|accessyear=[[२००९]]|format=एचटीएमएल|publisher=रचनाकार|language=}}</ref><ref>{{cite book |last=जैन |first=प्रो.महावीर सरन |title=विदेशी विद्वानों द्वारा हिन्दी वाड्.मीमांसापरक अध्ययन (फिलॉलाजिकल स्टडीज) (सन् 1940 ई0 तक)|year=|publisher=|location=|id= |page= |accessday= |accessmonth= |accessyear= }}</ref>
 
==संदर्भ==
<references/>
 
==बाहरी कड़ियाँ==
#[http://www.npg.org.uk/live/search/person.asp?LinkID=mp60908 Photos of Sir George Grierson]
 
 
 
[[श्रेणी:हिन्दी के विदेशी विद्वान]]
[[श्रेणी:हिन्दी व्याकरण]]
 
[[de:George Abraham Grierson]]
[[en:George Abraham Grierson]]
[[ru:Грирсон, Джордж Абрахам]]
[[sv:George Abraham Grierson]]