"नागेश भट्ट": अवतरणों में अंतर

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'''नागेश भट्ट''' [[संस्कृत]] के नव्य वैयाकरणों[[वैयाकरण]]ों में सर्वश्रेष्ठ है। इनकी रचनाएँ आज भी भारत के कोने-कोने में पढ़ाई जाती हैं। ये [[महाराष्ट्र]] के ब्राह्मण थे। इनके पिता का नाम शिव भट्ट और माता का नाम सतीदेवी था। [[साहित्य]], [[धर्मशास्त्र]], [[दर्शन]] तथा [[ज्योतिष]] विषयों में भी इनकी अबाध गति थी।
 
[[प्रयाग]] के पास श्रृंगवेरपुर में रामसिंह राजा रहते थे। वहीं इनके आश्रयदाता थे। एक जनप्रवाद है कि नागेश भट्ट को सं. 1772 वि. में [[जयपुर]] राज में अश्वमेघ यज्ञ के अवसर पर आमंत्रित किया गया था। उस समय नागेश भट्ट संन्यास ले चुके थे। अतएव उन्होंने अश्वमेघ का निमंत्रण स्वीकार नहीं किया। नागेश के जीवन की क्रमबद्ध सामग्री नहीं मिलती।
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नागेश ने [[भानुदत्त]] की "[[रसमंजरी]]" पर टीका की है। उस टीका की पांडुलिपि 'इंडिया ऑफिस', लंदन की लाइब्रेरी में है। उसका लेखनकाल संवत् 1769 वि. है। बालशर्मा, नागेश भट्ट के प्रौढ़ शिष्यों में थे। उन्होंने मन्नुदेव और हेनरी कोलब्रुक की प्रेरणा से "[[धर्मशास्त्र संग्रह]]" नामक ग्रंथ लिखा था। इनकी प्रामाणिक शिष्यपरंपरा का अनुमान लगाना कठिन है। तथापि नागेश की आदिम गुरुपरंपरा इस प्रकार पाई गई है-
 
नागेश दार्शनिक [[वैयाकरण]] हैं। मौलिक रचनाओं के साथ-साथ इनकी प्रौढ़ टीका रचनाएँ भी पाई जाती हैं। इनके सभी ग्रंथ छप गए हैं और व्यापक रूप से पढ़े-पढ़ाए जाते हैं। ग्रंथों में नई-नई उद्भावनाएँ की गई हैं। नवीन तर्क एवं उक्तियों का प्रयोग है, परंतु महाभाष्यकार की सीमा में सब समाहित हो गया है। नागेश के नाम पर रसमंजरी टीका, [[लघुशब्देंदुशेखर]], [[बृहच्छब्देंदुशेखर]], परिभाषेदु शेखर, लघुमंजूषा, परमलघुमंजूषा, स्फोटवाद, महाभाष्य-प्रत्याख्यान-संग्रह और पर्तजलिकृत महाभाष्य पर उद्योत नामक टीकाग्रंथ पाए जाते हैं।
 
इन ग्रंथों की छाया में प्रचुरग्रंथों की सृष्टि हुई है। टीका और टिप्पणियों की भरमार है। [[वैयाकरण-सिद्धांत-मंजूषा]] नागेश का व्याकरणदर्शनग्रंथ है। इसका निर्माण उद्योत, और परिमाषेंदुशेखर से पूर्व हुआ है। परभाषेंदुशेखर का अध्ययन व्यापार बहुत बड़ा है। अतएव इस यशस्वी ग्रंथ पर अनेक टीकाएँ उपलब्ध हैं। लघुशब्देंदुशेखर और बृहच्छब्देंदुशेखर [[भट्टोजि दीक्षित]] कृत [[सिद्धांतकौमुदी]] की व्याख्यामात्र हैं।