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[[चित्र:Wool.www.usda.gov.jpg|right|thumb|300px|ऊन के लम्बे एवं छोटे रेशे]]
'''ऊन''' (अंग्रेजी:Wool) मूलत: रेशेदार (तंतुमय) [[प्रोटीन]] है जो विशेष प्रकार की [[त्वचा]] की [[कोशिका]]ओं से निकलता है। ऊन पालतू [[भेड़ |भेड़ों]] से प्राप्त किया जाता है। किन्तु [[बकरी]], [[याक]] आदि अन्य जन्तुओं के बालों से भी ऊन बनाया जा सकता है। [[कपास]] के बाद ऊन का सर्वाधिक महत्व है। इसके रेशे [[उष्मा]] के कुचालक होते हैं।
 
सूक्ष्मदर्शी से देखने पर इन रेशों की सतह असमान, एक दूसरे पर चढ़ी हुई कोशिकाओं से निर्मित दिखाई देती है। विभिन्न नस्ल की भेड़ों में इन कोशिकाओं का आकार और स्वरूप भिन्न-भिन्न होता है। महीन ऊन में कोशिकाओं के किनारे, मोटे ऊन के रेशों की अपेक्षा, अधिक निकट होते हैं। गर्मी और नमी के प्रभाव से ये रेशे आपस में गुँथ जाते हैं। इनकी चमक कोशिकायुक्त स्केलों के आकार और स्वरूप पर निर्भर रहती है। मोटे रेशे में चमक अधिक होती है। रेशें की भीतरी परत (मेडुल्ला) को महीन किस्मों में तो नहीं, किंतु मोटी किस्मों में देखा जा सकता है। मेडुल्ला में ही ऊन का रंगवाला अंश (पिगमेंट) होता है। मेडुल्ला की अधिक मोटाई रेशे की संकुचन शक्ति को कम करती है। कपास के रेशे से इसकी यह शक्ति एक चौथाई अधिक है।
 
== इतिहास ==
संभवत: बुनने के लिए ऊन का ही सर्वप्रथम उपयोग प्रारंभ हुआ। ऊनी वस्त्रों के टुकड़े मिस्र, बैबिलोन और निनेवेह की कब्रों, प्राथमिक ब्रिटेन निवासियों के झोपड़ों और पे डिग्री वासियों के अंशावशेषों के साथ मिले हैं। रोमन आक्रमण से पूर्व भी ब्रिटेन वासी इनका उपयोग करते थे। विंचेस्टर फ़ैक्ट्री की स्थापना ने इसकी उपयोगविधि का विकास किया। विजेता विलियम इसे इंग्लैंड तक लाया। हेनरी द्वितीय ने कानून, वस्त्रहाट और बुनकारी संघ बनाकर इस उद्योग को प्रोत्साहित किया। किंतु 18वीं शती के सूती वस्त्रोद्योग ने इसकी महत्ता को कम कर दिया। सन् 1788 में हार्टफोर्ड (अमरीका) में जल-शक्ति-चालित ऊन फेक्ट्री प्रांरभ हुई। इनके अतिरिक्त रूस, न्यूज़ीलैंड, अर्जेटाइना, आस्ट्रेलिया, चीन, भारत, दक्षिण अफ्रीका और ग्रेट ब्रिटेन उल्लेखनीय ऊन उत्पादक देश हैं।
 
== ऊनी रेशों की किस्में ==
भेड़ों की नस्ल का ऊन के स्वरूप, लंबाई, रेशे के व्यास, चमक, मजबूती, बुनाई और सिकुड़न आदि पर बहुत असर पड़ता है। ऊन के रेशे पाँच वर्गों में बाँटे जा सकते हैं :
 
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ऊन के स्वरूप को जलवायु, भूमि और भोजन काफी प्रभावित करते हैं।
 
=== महीन ऊन ===
[[मेरिनो भेड़|मेरिनों भेड़ों]] से ही यह ऊन प्राप्त होता है। मेरिनो भेड़ों की प्रमुख जातियाँ अमरीकी, आस्ट्रेलियाई, फ्रांसीसी, सैक्सनी, स्पेनी, दक्षिण अफ्रीकी और दक्षिण अमरीकी हैं। मेरिनो ऊन अपनी कोमलता, बारीकी, मजबूती, लचीलेपन, उत्कृष्ट कताई और नमदा बना सकने के गुणों के कारण विशेष प्रसिद्ध है। मेरिनो ऊन के रेशों की लंबाई डेढ़ से ढाई इंच तक और बारीकी औसतन 17 से 21 माइक्रान (1 माइक्रोन = 1/1000 मिलीमीटर) होती है। फलालेन, उच्च कोटि के हाथ के बुने वस्त्र, सूट, तथा महीन बनावट की पोशकें मेरिनो ऊन से ही बनती हैं।
 
=== मध्यम ऊन ===
यह ऊन ब्रिटेन की नस्ल की भेड़ों से प्राप्त होता है। लंबे ऊन की लंबाई और मोटाई तथा महीन ऊन की बारीकी और घनत्व के बीच यह ऊन है। यह बहुत घना और शुष्क होता है। इसके रेशे की लंबाई 2 से 5 इंच तक होती है और इन्हें आसानी से काता जा सकता है। इनकी बारीकी 24 से 32 माइक्रोन तक होती है। इसके रेशे मेरिनो ऊन के रेशों से बहुत हल्के होते हैं, क्योंकि बिल्कुल खुले रहने के कारण इनमें बालू और चरबी बहुत कम रहती है। रेशों की व्यासवृद्धि के साथ उनका नमदा बनाने का गुण कम होता जाता है। इसका उपयोग स्त्रियों की पोशाकें, ट्वीड, सर्ज, फलालेन, कोट तथा ओवरकोट के कपड़े और कंबल बनाने में अधिक होता है।
 
=== लंबा ऊन ===
सभी नस्लों में सबसे बड़े कद की भेड़ें, जिनका मांस खाने के काम में आता है, लंबा ऊन पैदा करती हैं। इनके रेशे महीन और मध्यम ऊन के रेशों की अपेक्षा खुले और एक दूसरे से अलग होते हैं। इनकी लंबाई 10 से 14 इंच तक और मोटाई 40 माइक्रोन तक होती है। इस नस्ल की भेड़ें अधिक वर्षावाले क्षेत्रों में तेजी से बढ़ती हैं। इस किस्म का ऊन लिंकन, कौस्टवोल्ड, लीसेस्टर और रोमनी मार्श नाम से विख्यात है। लिंकन ऊन की लटें चौड़ी और उनका बाहरी हिस्सा घुँघराला होता है। इसमें चरबी कम होने के कारण सिकुड़न भी कम होती है और यह कुछ मोटा होता है। इस नस्ल की एक भेड़ 10 से 14 पाउंड तक ऊन देती है। इस ऊन में चमक भी अच्छी होती है। इसका अधिकतर सादे ऊनी कपड़े, ट्वीड, सर्ज तथा कोट के कपड़े बनाने में उपयोग होता है।
 
=== वर्णसंकर ऊन ===
मध्यम महीन कोटि का यह ऊन मेरिनो या रैमबूले नस्ल और लंबे ऊनवाली भेड़ों की वर्णसंकर नस्ल से प्राप्त होता है। इन ऊन में मेरिनो ऊन की बारीकी और कोमलता तथा लंबे ऊन की लंबाई दोनों होती हैं। इस किस्म के कुछ ऊनों के रंग काफी अच्छे होते हैं और लोच भी पूरी होती है। इन ऊन का उपयोग मोज़ा, बनियाइन आदि, स्त्रियों तथा पुरुषों के पहनने के सभी प्रकार के ऊनी कपड़ों तथा मध्यम श्रेणी के नमदे बनाने में किया जाता है।
 
=== कालीनी ऊन या मिश्रित ऊन ===
इस प्रकार का ऊन दुनिया के सभी भागों में उन भेड़ों से प्राप्त होता है जो अब भी पुरातन परिस्थितियों में रहती है। ये अधिकतर एशियाई देशों में पाई जाती हैं। ये रेगिस्तानी हिस्सों में भी मिलती हैं, जहाँ उन्हें दीर्घ काल तक बिना खाए या अल्पाहार पर निर्भर रहना पड़ता है। ऐसे समय में ये भेड़ें अपनी पूँछ में संचित चरबी से अपनी प्राणरक्षा करती हैं। जिन भेड़ों के पिछले हिस्सों में चरबी जमा रहती है उनकी पूँछ 3 इंच तक लंबी होती है और उनके दोनों चूतड़ों पर चरबी की मोटी तह जमा रहती है। इनकी तौल 200 पाउंड तक तथा इनमें लंबे बालों की एक परत होती है और इसके नीचे वास्तविक ऊन होता है, जो निम्न ताप, तेज हवा, अत्यधिक शुष्कता, अति वर्षा और कुहरे से भेड़ों की रक्षा करता हैं। इस प्रकार की भेड़ों के ऊन में एक तीसरी तरह का छोटा, मोटा, एवं लहरदार रेशा पाया जाता है, जिसे केंप कहते हैं। यह ऊन सामान्यतया कालीन ओर रंग (मोटा कंबल) इत्यादि बनाने के काम में आता है। कभी-कभी इसमें अन्य प्रकार का ऊन मिलाकर मोटा और सस्ते किस्म का ओवरकोट का कपड़ा और ट्वीड तैयार किया जाता है।
 
== ऊन का सूक्ष्म स्वरूप ==
यदि ऊन को [[सूक्ष्मदर्शी|सूक्ष्मदर्शक यंत्र]] से देखा जाए तो उसकी सतह विविध प्रकार की कोशिकाओं (सेलों) से बनी हुई दिखाई पड़ती है, जो सीढ़ी की तरह एक दूसरे पर चढ़ी जान पड़ती हैं। विभिन्न नस्लों की भेड़ों में इनका आकार और स्वरूप भिन्न-भिन्न होता है। महीन किस्म केऊनों में इन कोशिकाओं के किनारे मोटे किस्म के ऊनों की अपेक्षा अधिक निकट होते हैं। इन्हें सूक्ष्मदर्शक यंत्र से ही देखा जा सकता है। खाली आँखों में सिमटकर नमदे की तरह हो जाते हैं। इन रेशों की चमक उपर्युक्त सेलों के आकार और स्वरूप पर निर्भर रहती है। मोटे किस्म के रेशे में चमक अधिक होती है। सेलों के पूर्वोक्त सीढ़ीनुमा स्वरूप के कारण रेशों की मजबूती बढ़ जाती है। रेशे की चिपकने की शक्ति मेडुल्ला की मोटाई पर निर्भर रहती है। जैसे-जैसे यह बढ़ती जाती है, वह अधिक ट्टने योग्य जाता है।
 
== ऊन के भौतिक गुण ==
'''ऊर्मिलता (क्रिम्प)'''
ऊन के रेशे छड़ की तरह बिलकुल सीधे न होकर लहरदार होते हैं। उसके इसी घुँघरालेपन को ऊर्मिलता कहते हैं। रेशों की लंबाई (महीन किस्मों में) डेढ़ इंच से (मोटी किस्मों में) 15 इंच तक होती है। ऊन के रेशों के व्यास और उनकी ऊर्मिलता में घनिष्ठ संबंध होता है। ऊन का रेशा जितना ही बारीक होता है उसमें ऊर्मियों (किं्रपों) की संख्या उतनी ही अधिक होती है। 1सेंटीमीटर में 12 से 23 तक ऊर्मियाँ होती हैं। ऊन के रेशों की विशिष्टता आँकने में उसकी ऊर्मियों का महत्वपूर्ण स्थान है।
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ऊन का यह गुण ऐंठन को रोकता है। इसलिए यह कताई के लिए बहुत महत्व का है। शुष्क ऊन की कठोरता पानी से संतृप्त ऊन की अपेक्षा 15 गुनी अधिक होती है। इसीलिए ऊन की मिलों के कताई विभाग में ठीक से कताई करने के लिए और ऊन में 15से 18 प्रतिशत तक नमी बनाए रखने के लिए, अपने यहाँ के वातावरण में 70 से 80 प्रतिशत तक नमी रखनी पड़ती है।
 
== ऊन की रासायनिक रचना और उसके रासायनिक गुण ==
रासायनिक दृश्टि से ऊन में कार्बन, हाइड्रोजन, आक्सिजन, नाइट्रोजन और गंधक आपस में मिले हुए प्रोटीन या केराटीन के रूप में पाए जाते हैं। इसकी रासायनिक रचना बहुत जटिल होती है। इस प्रोटीन में अम्लीय और क्षारीय दोनों प्रकार के गुण होने के कारण इसका स्वरूप द्विगुणीय है। इसका जलीय विश्लेषण करने से कई प्रकार के एमिनो ऐसिड निकलते हैं। किसी रीएजेंट द्वारा ऊन की रासायनिक संरचना में किसी भी प्रकार का परिवर्तन किए जाने से ऊनी रेशे के भौतिक गुण नष्ट हो जाते हैं। सामान्यतया आक्सिडाइजिंग और रिडयूसिंग एजेंट, प्रकाश और क्षार, ऊन के सिस्टीन लिंकेज पर आक्रमण करते हैं अत: ऊनी रेशों के धवलीकरण (ब्लीचिंग) और उनके क्लोरिनेशन के समय सावधानी बरतनी चाहिए।
 
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फ़ॉरमैल्डिहाइड के 2.5 प्रतिशत घोल में एक घंटे तक रखने पर ऊन कीटाणुरहित हो जाता है। फ़ॉरमैल्डिहाइड से कंबल तथा वस्त्र कीटाणुविहीन किए जाते हैं।
 
== भारत में ऊन ==
[[वेद|वेदों]] में धार्मिक कृत्यों के समय ऊनी वस्त्रों का वर्णन मिलता है, जो इस बात का दृढ़ प्रमाण है कि प्रागैतिहासिक काल में भी लोग ऊन को जानते थे तथा उसका व्यवहार करते थे। [[मनु]] ने वैश्यों के यज्ञोपवीत के लिए ऊन को श्रेयस्कर माना है। ऋग्वेद में गड़ेरियों के देवता पश्म की स्तुति है, जिसमें ऊन श्वेतन करने तथा कातने का उल्लेख मिलता है कि कांबोज (बदख्शाँ और पामीर) के लोगों ने [[राजसूय यज्ञ]] के अवसर पर [[युधिष्ठिर]] को सुनहली कढ़ाई के ऊनी वस्त्र (ऊर्ण) भेंट में दिए थे। ब्रिटिश शासनकाल के आरंभिक दिनों में [[पंजाब]], [[कश्मीर]] और [[तिब्बत]] के पश्मीने की बड़ी ख्याति थी।
 
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== बाहरी कड़ियाँ ==
* [http://www.awex.com.au/ Australian Wool Exchange Ltd]
* [http://www.wool.com.au/ Australian Wool Innovation (AWI)]
* [http://www.awta.com.au/ Australian Wool Testing Authority Ltd]
* [http://www.sheepusa.org/index.phtml?page=site/text&nav_id=55c87f1a28480762cdfdb5826c37722c American Wool Industry]
* [http://www.ncwga.org/ Natural Colored Wool Growers Association]
* [http://www.tawfa.com.au/ Australian Wool Fashion Awards]
 
[[श्रेणी:पशु उत्पाद]]
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[[ar:صوف]]
[[bg:Вълна (материя)]]
[[br:Villa]]
[[bs:Vuna]]
[[ca:Llana]]
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[[eu:Artile]]
[[fi:Villa (materiaali)]]
[[fr:Laine]]
[[ga:Olann]]
"https://hi.wikipedia.org/wiki/ऊन" से प्राप्त