"मूत्ररोग विज्ञान": अवतरणों में अंतर
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[[चित्र:Male anatomy en.svg|right|thumb|300px|पुरुष जननांग]]
'''मूत्र रोग विज्ञान''' (Urology) [[आयुर्विज्ञान]] की वह शाखा है, जो दोनों लिंगों में [[मूत्रतंत्र]] तथा पुरूषों के जननांग के रोगों का ज्ञान कराती है। आजकल भ्रूणवैज्ञानिक, लाक्षणिक तथा नैदानिक कारणों से [[अधिवृक्क]] (adrenals) के रोगों को भी इसमें सम्मिलित किया जाने लगा है।
==जनमूत्र तंत्र (Urogenital System)==
भ्रूणविज्ञानी तथा रोग निदान की दृष्टि से मूत्र तथा पुरूष के जनन तंत्रों को पृथक नहीं किया जा सकता है। मूत्र तंत्र में वृक्क, मूत्रकवाहिनी, मूत्राशय तथा मूत्रमार्ग होते हैं। इनकी उत्पत्ति मध्य जनस्तर के मध्यस्थ कोशिका पुंज तथा अवस्कर गुहा (cloaca) के जननमूत्र विवर से होती है। वृक्क उच्च कटि प्रदेश में मेरूदंड के दोनों ओर होते हैं और इनमें मूत्र बनता है। यहाँ से मूत्रवाहिनी के द्वारा मूत्र को मूत्राशय तक पहूँचाया जाता है। मूत्राशय में अल्पकाल के संचय के पश्चात् मूत्रमार्ग से मूत्र बाहर निकाला जाता है।
पुरूष के जनतंत्र में [[शिश्न]], [[वृषणकोष]] (scrotum), [[वृषण]] (testicle), [[एपिडिडिमिस]] (epididymis), वृषण रज्जु (spermatic cord), प्रॉस्टेटा (prostate) ग्रंथि तथा शुक्राशय होते हैं और ये सब जननक्रिया में काम आते हैं।
==मूत्ररोग के लक्षण==
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लगभग प्रत्येक रोग के निदान के लिये तीन बातों की आवश्यकता पड़ती है : रोग इतिहास (history) परीक्षा तथा जाँच (investigations) । इन तीनों का वर्णन निम्नलिखित है:
(क) '''लाक्षणिक (clinical) इतिहास'''-बच्चों के रोगनिदान में माता पिता से और बड़ों के रोगनिदान में स्वयं उन्हीं से चार भागों में पूरा इतिहास लेना चाहिए :
(१) मुख्य शिकायतें तथा उनकी अवधि,
(ख) शारीरिक (physical) परीक्षा-व्यापक परीक्षा करने के पश्चात् उदर का निरीक्षण (inspection), परिस्पर्शन (palpation), परिताड़न (percussion) तथा परिश्रवण (auscultation) से वृक्क, मूत्रवाहिनी, मूत्राशय आदि की परीक्षा करनी चाहिए। प्रॉस्टेट ग्रंथि तथा शुक्राशय आदि के लिये मलाशय परीक्षा करनी चाहिए। मूलाधार (perinum), एपिडिडिमिस (epididymis) और वृषणरज्जु की परीक्षा भी आवश्यक है। रक्त चाप तथा ज्वर की भी माप कर लेनी चाहिए।▼
(२) पूर्व (past) इतिहास, विशेष कर मसूरिका, लोहितज्वर (scarlet fever), कनपेड़ा (mumps) या किसी दीर्घकालिक संक्रमण की अवधि,
(३) वंश वृत्त, विशेष कर क्षयरोग, अतिरुधिर तनाव (hypertension) , उपदंश आदि से पीड़ित होने की जानकारी और यदि पहले कोई जाँच, अथवा चिकित्सा हुई हो ते उसका भी ज्ञान करना चाहिए।
▲(ख) '''शारीरिक (physical) परीक्षा'''-व्यापक परीक्षा करने के पश्चात् उदर का निरीक्षण (inspection), परिस्पर्शन (palpation), परिताड़न (percussion) तथा परिश्रवण (auscultation) से वृक्क, मूत्रवाहिनी, मूत्राशय आदि की परीक्षा करनी चाहिए। प्रॉस्टेट ग्रंथि तथा शुक्राशय आदि के लिये मलाशय परीक्षा करनी चाहिए। मूलाधार (perinum), एपिडिडिमिस (epididymis) और वृषणरज्जु की परीक्षा भी आवश्यक है। रक्त चाप तथा ज्वर की भी माप कर लेनी चाहिए।
(ग) '''मूत्ररोग जाँच (Urologic Investigation)''' - चार प्रकार से मूत्ररोगों की जाँच की जाती है :
(१) भौतिक, रासायनिक, सूक्ष्मदर्शीय तथा जीवाणु-विज्ञान-संबंधी (bacteriological) मूत्रपरीक्षा,
(२) रक्तपरीक्षा, रक्त यूरिया (blood urea), लसी विद्युत् विश्लेष्य (serum electrolytes) तथा यूरिया सकेंद्रण परीक्षा
(३) उपकरण परीक्षा (instrumental examination), जैसे मूत्रनलिका पारित करना (catheterization), अवशिष्ट मूत्र परिमापन (residual urine estimation), शलाका, पारित करना (bouginage) और मूत्रवाहिनी शलाका पारित करना (catheterzation)
(४) विकिरण परीक्षा (radiological investigations), जैसे उदर तथा श्रोणि सामान्य विकिरण चित्र (plain skiagram of abdomen and pelvis), अंत:- शिरा (intravenous) तथा आरोही (ascending) पाइलोग्राफी (pyelography), ऐऑर्टोग्राफी (aortography), सिस्टोग्रॉफी (cystography) एवं परिवृक्क श्वासगतिविज्ञान (peritenal pneumography) आदि।
==मूत्रतंत्र की जन्मजात असंगतियाँ==
मनुष्यों में जन्म के समय मूत्रजनन तंत्र में असंगतियाँ विद्यमान होती हैं। स्पाइना बिफिडा ओकल्टा (spina bifida occulta) को छोड़कर शरीर की विकासात्मक त्रुटियाँ 35% से 40% तक मूत्रजनन अंगों में ही होती है।
[[वृक्क]] में जन्मजात असंगतियाँ सात प्रकार की हो सकती है:
(१) संख्या में असंगति, एक ही अथवा दो से अधिक वृक्क, (२) आयतन तथा संरचना की असंगति, जैसे पुटी रोग (cystic disease), अववृद्धि (hypoplasia), अतिवृद्धि (hypertrophy) आदि, (३) आकार की असंगति, जैसे छोटा, बड़ा या नाल आकार (horse shoe) का वृक्क या एल (L) आकार का वृक्क, (४) स्थिति की असंगति, जैसे अस्थानी (ectopic) वृक्क, जंगम वृक्क (movable kidney) आदि, (५) परिभ्रमण (rotation) की असंगति, जैसे कम या अधिक परिभ्रमण,
(६) श्रोणी (pelvis) की असंगति जैसे द्विश्रोणि (double pelvis) आदि, तथा
(७) रुधिर वाहिकाओं की असंगति, जो धमनी या शिरा की हो सकती है।
मूत्रवाहिनी की असंगतियाँ संख्या, उद्भव, सांत आकार, तथा संरचना में हो सकती हैं। उदाहरण के लिये क्रमश: एक ही ओर दो मूत्रवाहिनी, अस्थानी, युरीटरीसील (ureterocele), जन्मजात संकोच (stricture) और जन्मजात विनाल (diverticula) आदि असंगतियाँ होती हैं।
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मूत्राशय की उल्लेखनीय जन्मजात असंगतियाँ विनाल, यूरेकस पुटी (urachus cyst), यूरेकस फिस्टुला (fistula) और मूत्राशय त्रिकोण पुट (trigonal folds) हैं। मूत्रमार्ग की असंगति में जन्मजात कपाटिकाएँ, जन्मजात मूत्रमार्ग संकोच आदि होते हैं।
90% से 95% मूत्ररोग के अवरोधन अथवा संक्रमण के कारण होते हैं। बच्चों में अवरोघन प्राय: जन्मजात तथा प्रौढ़ पुरुषों में प्रॉस्टेट ग्रंथि के कारण होता है। अश्मरी (calculi) मूत्रमार्ग संकोच तथा नाना प्रकार के और भी कारण होते हैं, पर जहाँ कहीं भी रुकावट होती है उसके पीछे के मूत्रतंत्र में सर्वदा क्रमश: विस्तारण (dilatation) फिर संक्रमण और अश्मरी निर्माण तथा कभी-कभी अर्बुद भी बन जाते हैं। रुकावट जितनी ही श्रोणि-मूत्र वाहिनी संगम के समीप होगी उतने ही श्घ्रीा
(१) प्रतिधारण (retention) से तुरंत छुटकारा कराना और तरल पदार्थ देना, (२) सही निदान करना, (३) वृक्क की सही अवस्था का पता लगाना तथा उसकी कार्यशक्ति को बढ़ाने क प्रयत्न करना और (४) अवरोध को हटाना। ==मूत्रतंत के संक्रमण==
मूत्रतंत्र के संक्रमण सबसे सामान्य मूत्र रोग हैं। यह जीवाणुओं के कारण होता है तथा मूत्र का अवरोध इसके लिये सबसे बड़ा पुर:प्रवर्तक कारक (predisposing factor) है। मूत्रतंत्र की प्रमुख समस्याओं में ९० प्रतिशत भाग संयुक्त रूप से संक्रमण तथा अवरोध का होता है। ये समस्याएँ तीन प्रकार की होती हैं:
(१) अगुलिकार्तीय (non tuberculous),
(२) गुलिकार्तीय (tuberculous) तथा
(३) असामान्य (unusual) ।
मूत्रतंत्र में क्षयरोग अब उन्नतोन्मुख देशों में धीरे धीरे कम होता जा रहा है। यह मूत्रतंत्र के किसी या सब अंगों में हो सकता है। यह तरुण, अथवा जीर्ण या ्व्राण रूपों इत्यादि में हो सकता है। उपदंश, ब्रूसेलोसिस (brucellosis) तथा ्थ्राश (thrush, actinomycosis) मूत्रतंत्र के असामान्य संक्रमण हैं।
==मूत्रतंत्र के उपघात (injuries)
ये दुर्घटनाएँ युद्ध तथा उपकरण उपघात से हो सकती हैं। यदि ठीक चिकित्सा समय पर न की गई, तो बुरे परिणाम हो सकते हैं। वृक्क, मूत्रवाहिनी, मूत्राशय तथा मूत्रमार्ग में कहीं भी अकेले, अथवा और किसी अंग के समेत, उपघात हो सकता है। ==मूत्र अश्मरी रोग (Urinary Calculous Disease)==
==मूत्रजनन तंत्र के अर्बुद (tumours)==
अंड ग्रंथि में सेमिनोमा (seminoma) और टेराटोमा अर्बुद प्राय: होते हैं। शुक्राशय, मूत्रमार्ग, शिश्न तथा अन्य भागों में भी सुदम्य तथा दुर्दम्य दोनों ही प्रकार के अर्बुद निकल सकते हैं।
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पेशी तंत्रिका के (neuromuscular) रोग-पेशी तंत्रिका के रोग, जैसे मूत्रवाहिनी अतानता (atony) मूत्राशय की पेशी तंत्रिका के रोग, विशेषकर स्पाइना बाइफिडा (spina bifida) तथा मेरुरज्जु के कार्य आदि में पर्याप्त संयोग होता है और ये गंभीर हो जा सकते हैं। इनकी चिकित्सा भी अच्छी प्रकार से नहीं हो पाती। कुछ में तो जीवन की कोई आशा नहीं रह जाती।
==पुरुष जनतंत्र के रोग
शिश्न में फिमसिस (phimosis), पाराफिमोसिस (paraphimosis), पॉस्थिटिस (posthitis), शिश्नाग्रशोथ, कर्कट आदि रोग हो सकते हैं। मूत्रमार्ग के सामान्य रोग
==अधिवृक्क (Adrenals)==
अधिवृक्क
==स्त्रियों के मूत्ररोग==
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