"भ्रमासक्ति": अवतरणों में अंतर

छो robot Adding: be:Трызненне
छोNo edit summary
पंक्ति 7:
}}
 
'''भ्रम''' , रोज़मर्रा की भाषा में '''भ्रम''' अर्थात एक ऐसा अटल विश्वास जो किसी मिथ्या, या कल्पना, या छल या धोखे से पैदा होता है. [[मनोरोग विज्ञान|मनोरोग विज्ञान]] के अनुसार इस शब्द की परिभाषा है - एक ऐसा विश्वास जो एक रोगात्मक (किसी बीमारी या बीमारी की चिकित्सा प्रक्रिया के परिणामस्वरूप) स्थिति है.विकृतिविज्ञान के तौर पर देखा जाए तो यह ग़लत या अपूर्ण जानकारी, सिद्धांत, मूर्खता, आत्मचेतना, भ्रम, या धारणा के अन्य प्रभावों से पैदा होने वाले विश्वास से बिलकुल अलग है.''''''
ख़ासकर किसी तंत्रिका संबंधी या मानसिक बीमारी के दौरान इंसान भ्रम का शिकार होता है, वैसे इसका संबंध किसी विशेष रोग से जुड़ा नहीं है, अतः अनेक रोगात्मक स्थितियों (शारीरिक और मानसिक दोनों) के दौरान रोगी को भ्रम होने लगता है. मानसिक विकृतियों से, विशेषतया मनोभाजन (schizophrenia), पैराफ्रेनिया (paraphrenia), द्विध्रुवी विकृति से पड़ने वाले पागलपन के दौरे, और मानसिक अवनति की स्थिति में होने वाले भ्रमों का ख़ास नैदानिक महत्त्व है.
 
पंक्ति 28:
* मनोदशा-अनुरूप भ्रम ऐसा भ्रम है जिसका विषय मानसिक विषाद या पागलपन के दौरान भी सुसंगत रूप से बना रहता है; उदहारण के तौर पर, मानसिक विषाद से गुज़रते व्यक्ति का मानना कि टेलिविज़न के समाचार उदघोषक उसे नापसंद करते हैं, या फिर किसी पागलपन के दौर से गुज़रते व्यक्ति का मानना कि वह ख़ुद एक शक्तिशाली देवी या देवता है. मनोदशा-तटस्थ भ्रम का, भ्रमित व्यक्ति की भावनात्मक स्थिति से कोई संबंध नहीं होता; उदाहरण के तौर पर, भ्रमित व्यक्ति का यह मानना कि उसके सिर के पीछे से एक अतिरिक्त अंग उग रहा है, उसके मानसिक विषाद या पागलपन से कोई संबंध नहीं रखता.<ref name="minddisorders.com">स्रोत: http://www.minddisorders.com/Br-Del/Delusions.html</ref>
 
इन वर्गीकरणों के अलावा, भ्रम अकसर सुसंगत विषय के अनुरूप होते हैं. हालांकि भ्रम किसी भी विषय में हो सकता है, लेकिन कुछ विषय हैं जिन पर भ्रम होना आम बात है. आम तौर पर होने वाले भ्रमों के विषय हैं<ref name="minddisorders.com">< /ref>:
*'''नियंत्रण का भ्रम''' : इसमें ऐसा ग़लत विश्वास बैठ जाता है कि व्यक्ति के विचार, भावनाओं, आवेश या बर्ताव पर किसी दूसरे व्यक्ति, व्यक्ति-समूह, या बाहरी शक्ति का नियंत्रण होता है. उदाहरण के तौर पर, भ्रमित व्यक्ति का यह कहना कि उसे ऐसा अनुभव होता है जैसे कोई परकीय उसे विशिष्ट तरीक़े से चलने का आदेश देता है और अपने शारीरिक चलन पर उसका अपना कोई नियंत्रण नहीं है. सोच-प्रसारण (एक ऐसी ग़लत धारणा कि भ्रमित व्यक्ति के विचार लोगों को सुनाई देते हैं), सोच-समावेश, और सोच-वापसी (वो विश्वास जिसमें कोई बाहरी शक्ति, व्यक्ति, या व्यक्ति-समूह भ्रमित व्यक्ति के विचारों को बाहर निकालता है) - ये भी नियंत्रण के भ्रम के उदाहरण हैं.
*'''शून्यवादिता का भ्रम''' : एक ऐसा भ्रम जिसका केंद्र-बिंदु है स्वयं को पूरी तरह या हिस्सों में, या औरों को, या दुनिया को अस्तित्त्वहीन पाना. इस प्रकार के भ्रम से भ्रमित व्यक्ति को अयथार्थ विश्वास हो सकता है कि दुनिया का अंत हो रहा है.
पंक्ति 42:
 
==निदान==
[[File:Airloom.gif|thumb|जॉन हैस्लैम ने जेम्स टिल्ली मैथ्यू द्वारा वर्णित 'वायु करघा' नामक मशीन के इस चित्र की सचित्र व्याख्या प्रस्तुत की, जिसके बारे में मैथ्यू का मानना था कि इसका उपयोग राजनीतिक उद्देश्यों के लिए उसे और दूसरों पर अत्याचार करने के लिए किया जा रहा था.]]
आधुनिक परिभाषा और जैस्पर्स के मूल मानदंडों की आलोचना की गई है, चूंकि हर परिभाषित स्थिति के प्रतिकूल उदाहरण भी पाए जा सकते हैं.
 
पंक्ति 51:
बाकी परिस्थितियों में भ्रम एक सच्चा विश्वास हो सकता है.<ref>{{cite journal |author=Jones E |title=The phenomenology of abnormal belief |journal=Philosophy, Psychiatry and Psychology |volume=6 |pages=1–16 |year=1999 |url=http://muse.jhu.edu/journals/philosophy_psychiatry_and_psychology/toc/ppp6.1.html}}</ref> उदाहरण के तौर पर, ईर्ष्या का भ्रम, जिसमें भ्रमित व्यक्ति का मानना होता है कि उसका जीवन साथी उसके साथ विश्वासघात कर रहा है या रही है (यहां तक कि वह बाथरूम में भी उसका पीछा करता है यह सोचकर कि जुदा रहने के इन कुछ क्षणों में भी उसका जीवन साथी अपने प्रेमी से संपर्क बनाए रखेगा या रखेगी), परिणामस्वरूप, अपने भ्रमित जीवन साथी द्वारा डाले जा रहे निरंतर और अनुचित तनाव के कारण वफ़ादार जीवन साथी बेवफ़ाई करने पर उतारू हो सकता है. ऐसे मामले में जब आगे चलकर बात सच निकलती है तो भ्रम, भ्रम नहीं रह जाता.
 
अन्य मामलों में, भ्रम की जांच करने वाले डॉक्टर या मनोचिकित्सक भ्रम को ग़लत बता सकते हैं, क्योंकि उन्हें ''लगता है'' कि ऐसी बेतुकी या ज़रूरत से ज़्यादा विश्वास की गई धारणा असंभव है. मनोचिकित्सकों के पास न तो इतना समय होता है न ही साधन कि वे भ्रमित व्यक्ति की बातों की सत्यता की जांच-परख कर सकें कि कहीं ग़लती से असली विश्वास को भ्रम का रूप न दिया गया हो.<ref>{{cite book |author=Maher B.A. |chapter=Anomalous experience and delusional thinking: The logic of explanations |editor=Oltmanns T., Maher B. |title=Delusional Beliefs |publisher=Wiley Interscience |location=New York |year=1988 |isbn=0-471-83635-4 }}</ref> ऐसी स्थिति को मार्था मिशेल प्रभाव कहते हैं, यह उस महिला के नाम से जुड़ा है जो एक वकील की पत्नी थी और जिसने आरोप लगाया था कि [[व्हाइट हाउस|व्हाइट हाउस]] में ग़ैरकानूनी गतिविधियां चल रहीं थीं. उस वक्त उस महिला के दावे को मानसिक अस्वस्थता का लक्षण माना गया, लेकिन वॉटरगेट के घोटाले के बाद उसका दावा सही साबित हुआ (अर्थात वह स्वस्थ थी).
 
कुछ ऐसे ही कारणों से, जैस्पर्स द्वारा दी गई असली भ्रमों की परिभाषाओं की ऐसी आलोचना की गई कि आखिरकार उन्हें 'बिलकुल ही समझ के बाहर' माना गया. आर. डी. लेइंग जैसे आलोचकों का कहना था कि ऐसी परिभाषाओं से भ्रम का निदान मनोचिकित्सक की आत्मगत समझ पर आधारित होता है, और हो सकता है कि उस मनोचिकित्सक के पास वो सारी जानकारी न हो जिनसे भ्रम का कोई और अर्थ निकाला जा सकता हो. आर. डी. लेइंग की परिकल्पना को प्रक्षेपीय चिकित्सा के कुछ रूपों में लागू किया गया है ताकि भ्रम-प्रणाली को इतनी "दृढ़ता से आबद्ध" किया जा सके कि रोगी उसमें कोई परिवर्तन न कर सके. येल यूनिवर्सिटी (Yale University), ओहियो स्टेट यूनिवर्सिटी (Ohio State University) और कम्यूनिटी मेंटल हेल्थ सेंटर ऑफ़ मिड्ल जॉर्जिया (Community Mental Health Center of Middle Georgia) के शोधकर्ता मनोचिकित्सकों ने उपन्यासों और फिल्मों का केंद्रबिंदु के रूप में उपयोग किया है. इसमें लेख, विषय और छायांकन पर चर्चा की जाती है और विषयांतर के ज़रिये भ्रम का प्रस्ताव किया जाता है.<ref>{{cite journal |author=Giannini AJ |title=Use of fiction in therapy |journal=Psychiatric Times |volume=18 |issue=7 |pages=56 |year=2001 }}</ref>. विज्ञान संबंधी काल्पनिक कथा-साहित्य (science-fiction) के लेखक फिलिप होज़े फार्मर (Philip Jose Farmer) और येल के मनोचिकित्सक ए. जेम्स जियानिनी (A. James Giannini) ने एक संयुक्त योजना बनाई जिसमें भ्रम के हेर-फ़ेर को कम करने के लिए काल्पनिक कथा-साहित्य का उपयोग किया. उन्होंने ''रेड और्क्स रेज (Red Orc's Rage)'' नामक एक उपन्यास लिखा जिसमें भ्रमित होने वाले किशोरावस्था के रोगियों का इलाज, बार-बार, प्रक्षेपीय चिकित्सा से किया जाता है. इस उपन्यास के काल्पनिक दृश्यों में लेखक फार्मर के अन्य उपन्यासों की चर्चा की गई है और उनके पात्रों को काल्पनिक रोगियों के भ्रम में प्रतीकात्मक रूप से जोड़ दिया गया है.उसके बाद, इस विशेष उपन्यास का प्रयोग असली जीवन के चिकित्सीय हालातों में किया गया.<ref>एजे गिअनिनी. अंतभाषण. (में) पीजे किसान. लाल ओरक जुनून.एनवाई, टोर पुस्तकें, 1991, पीपी.279-282.</ref>
पंक्ति 122:
* {{cite book |author=Persaud, R. |title=From the Edge of the Couch: Bizarre Psychiatric Cases and What They Teach Us About Ourselves |publisher=Bantam |year=2003 |isbn=0-553-81346-3 }}
 
[[Categoryश्रेणी:भ्रान्तिमूलक विकार]]
 
[[Categoryश्रेणी:असामान्य मनोविज्ञान]]
[[Category:भ्रान्तिमूलक विकार]]
[[Categoryश्रेणी:मनोविकृति]]
[[Category:असामान्य मनोविज्ञान]]
[[Categoryश्रेणी:लक्षण]]
[[Category:मनोविकृति]]
[[Categoryश्रेणी:DSM मानसिक बीमारी और आईसीडी द्वारा निदान]]
[[Category:लक्षण]]
[[Categoryश्रेणी:असत्यता का सम्प्रेषण ]]
[[Category:DSM मानसिक बीमारी और आईसीडी द्वारा निदान]]
[[श्रेणी:श्रेष्ठ लेख योग्य लेख]]
[[Category:असत्यता का सम्प्रेषण ]]
 
[[ar:هذيان]]