"ऋतुसंहार": अवतरणों में अंतर

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[[कालिदास]] का विख्यात काव्य।
 
ऋतुसंहार महाकवि कालिदास की प्रथम काव्यरचना मानी जाती है, जिसके छह सर्गो में [[ग्रीष्म]] से आरंभ कर [[वसंत]] तक की छह [[ऋतु|ऋतुओं]] का सुंदर प्रकृतिचित्रण प्रस्तुत किया गया है। ऋतुसंहार का कलाशिल्प महाकवि की अन्य कृतियों की तरह [[उदात्त]] न होने के कारण इसके कालिदास की कृति होने के विषय में संदेह किया जाता रहा है। [[मल्लिनाथ]] ने इस काव्य की टीका नहीं की है तथा अन्य किसी प्रसिद्ध टीकाकार की भी इसकी टीका नहीं मिलती है। जे. नोबुल तथा प्रो.ए.बी. कीथ ने अपने लेखों में ऋतुसंहार को कालिदास की ही प्रामाणिक एवं प्रथम रचना सिद्ध किया है।
==संबंधित कड़ियाँ==
 
इस खंडकाव्य में कवि ने अपनी प्रिया को सबोधित कर छहों ऋतुओं का वर्णन किया है। प्रकृति के आलंबनपरक तथा उद्दीपनपरक दोनों तरह के रमणीय चित्र काव्य की वास्तविक आत्मा हैं। ऋतुसंहार का सर्वप्रथम संपादन [[कोलकाता|कलकत्ता]] से सन्‌ १७९२ में [विलियम जोन्स|[सर विलियम जोन्स]] ने किया था। सन्‌ १८४० में इसका एक अन्य संस्करण पी.फॉन बोलेन द्वारा लातीनी तथा जर्मन पद्यानुवाद सहित प्रकाशित किय गया था। १९०६ में निर्णयसागर प्रेस से यह रचना मणिराम की संस्कृत टीका के साथ छपी थी, जिसके अब तक अनेक संस्करण हो चुके हैं।
 
==इन्हें भी देखें==
*[[कालिदास]]
*[[अभिज्ञान शाकुन्तलम्]]