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जापानी लोककथाओं के अनुसार विश्व के निर्माता ने सूर्य देवी तथा चन्द्र देवी को भी रचा । फिर उसका पोता [[क्यूशू]] द्वीप पर आया और बाद में उनकी संतान [[होंशू]] द्वीप पर फैल गए । हँलांकि यह लोककथा है पर इसमें कुछ सच्चाई भी नजर आती है ।
== प्राचीन काल ==
 
जापान का प्रथम लिखित साक्ष्य 57 ईस्वी के एक चीनी लेख से मिलता है । इसमें एक ऐसे राजनीतिज्ञ के [[चीन]] दौरे का वर्णन है जो ''पूरब के किसी द्वीप'' से आया था । धीरे-धीरे दोनो देशों के बीच राजनैतिक और सांस्कृतिक सम्बंध स्थापित हुए । उस समय जापानी एक बहुदैविक धर्म का पालन करते थे जिसमें कई देवता हुआ करते थे । छठी शताब्दी में चीन से होकर [[बौद्ध धर्म]] जापान पहुंचा । इसके बाद पुराने धर्म को ''[[शिंतो]]'' की संज्ञा दी गई जिसका शाब्दिक अर्थ होता है - ''देवताओं का [[पंथ]]'' । बौद्ध धर्म ने पुरानी मान्यताओं को खत्म नहीं किया पर मुख्य धर्म बौद्ध ही बना रहा । बौद्ध धर्म के आगमान के साथ साथ लोग, लिखने की प्रणाली ([[लिपि]]) तथा मंदिरो का सांस्कृतिक तथा शैक्षणिक कार्यों के लिए उपयोग भी जापान में चीन से आया।
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=== यूरोपीय प्रादुर्भाव ===
 
सोलहवीं सदी में [[यूरोप]] के पुर्तगाली व्यापारियों तथा मिशनरियों ने जापान में पश्चिमी दुनिया के साथ व्यापारिक तथा सांस्कृतिक तालमेल की शुरूआत की । जापानी लोगों ने यूपोरीय देशों के बारूद तथा हथियारों को बहुत पसन्द किया । यूरोपीय शक्तियों ने [[इसाई धर्म]] का भी प्रचार किया । 1549 में पहली बार जापान में इसाई धर्म का आगमन हुआ । दो वर्षों के भीतर जापान में करीब तीन लाख लोग ऐसे थे जिन्होनें ईसा मसीह के शब्दों को अंगीकार कर लिया । ईसाई धर्म जापान में उसी प्रकार लोकप्रिय हुआ जिस प्रकार सातवीं सदी में बौद्ध धर्म । उस समय यह आवश्यक नहीं था कि यह नया धार्मिक सम्प्रदाय पुराने मतों से पूरी तरह अलग होगा । पर ईसाई धर्म के प्रचारकों ने यह कह कर लोगो को थोड़ा आश्चर्यचकित किया कि ईसाई धर्म को स्वीकार करने के लिए उन्हें अपने अन्य धर्म त्यागने होंगे । यद्यपि इससे जापानियों को थोड़ा अजीब लगा, फिर भी धीरे-धीरे ईसाई धर्मावलम्बियो की संख्या में वृद्धि हुई । 1615 ईस्वी तक जापान में लगभग पाँच लाख लोगो ने ईसाई धर्म को अपना लिया । 1615 में समुराई सरगना शोगुन्ते को संदेह हुआ कि यूरोपीय व्यापारी तथा मिशनरी, वास्तव में, जापान पर एक सैन्य तथा राजनैतिक अधिपत्य के अग्रगामी हैं । उसने विदेशियों पर कड़े प्रतिबंध लगा दिए तथा उनका व्यापार एक कृत्रिम द्वीप (नागासाकी के पास) तक सीमित कर दिया । ईसाई धर्म पर प्रतिबंध लगा दिया गया और लगभग 25 सालों तक ईसाईयों के खिलाफ प्रताड़ना तथा हत्या का सिलसिला जारी रहा । 1638 में, अंततः, बचे हुए 37,000 ईसाईयों को नागासाकी के समीप एक द्वीप पर घेर लिया गया जिनका बाद में नरसंहार कर दिया गया । bhanu sahu chhindwara
 
== आधुनिक काल ==