"वैदिक ज्योतिष": अवतरणों में अंतर

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'''राशि और राशिचक्र'''
 
[[चन्द्र_राशि|राशि]] और राशिचक्र को समझने के लिए नक्षत्रों को को समझना आवश्यक है क्योकि [[चन्द्र_राशि|राशि]] नक्षत्रों से ही निर्मित होते हैं. वैदिक ज्योतिष में राशि और राशिचक्र निर्धारण के लिए 360 डिग्री का एक आभाषीय पथ निर्धारित किया गया है. इस पथ में आने वाले तारा समूहों को 27 भागों में विभाजित किया गया है. प्रत्येक तारा समूह नक्षत्र कहलाते हैं. नक्षत्रो की कुल संख्या 27 है. 27 नक्षत्रो को 360 डिग्री के आभाषीय पथ पर विभाजित करने से प्रत्येक भाग 13 डिग्री 20 मिनट का होता है. इस तरह प्रत्येक नक्षत्र 13 डिग्री 20 मिनट का होता है.
 
वैदिक ज्योतिष में राशियो को 360 डिग्री को 12 भागो में बांटा गया है जिसे भचक्र कहते हैं. भचक्र में कुल 12 राशियां होती हैं. राशिचक्र में प्रत्येक राशि 30 डिग्री होती है. राशिचक्र में सबसे पहला नक्षत्र है अश्विनी इसलिए इसे पहला तारा माना जाता है. इसके बाद है भरणी फिर कृतिका इस प्रकार क्रमवार 27 नक्षत्र आते हैं. पहले दो नक्षत्र हैं अश्विनी और भरणी हैं जिनसे पहली राशि यानी मेष का निर्माण होता हैं इसी क्रम में शेष नक्षत्र भी राशियों का निर्माण करते हैं.