"दीन-ए-इलाही": अवतरणों में अंतर

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अकबर प्रसिद्ध तीर्थ, कुरुक्षेत्र पहुँचा। वहाँ सूर्यग्रहण पर आज भी बड़ा मेला होता है। लोग स्नान करते हैं। उस समय, कुछ साधु-वैरागी भी कुरुक्षेत्र के कुंड में स्नान करने आए थे, परंतु उनमें यह विवाद था कि कौन दल पहले स्नान करे।
 
आज भी पहले स्नान करने पर झगड़ा होता है। अतएव जब यह विवाद तय न हो सका तो दोनों दलों ने बादशाह से फरियादफ़रियाद की। दोनों के ही अपने-अपने दावे थे, पर बादशाह को कोई भी निश्चित प्रमाण न मिल सके। जान पड़ता है, युवक अकबर को कुछ मसखरी सूझी। उसने कहा- दोनों आपस में लड़ लें, जिस दल की जीत हो जाए वही पहले स्नान करे।
 
इस पर एक दल ने फरियादफ़रियाद की कि विपक्षियों के दल में अधिक व्यक्ति हैं। विनोदी अकबर ने कहा कि ठीक है, जिसके पास कम आदमी हों, वह उतने ही शाही सैनिक ले ले। फिर क्या था, किसी ने किसी की दाढ़ी पकड़ी, किसी ने किसी की जटा। इस घमासान का बड़ा मज़ेदार चित्रण अकबर-नामे की शाही प्रति में हुआ।
अकबर के साथ गए चित्रकारों ने घटना का चित्र बनाया है। चित्र को देखने से ज्ञात होता है कि दूर पर खड़ा घुड़सवार अकबर भी इस तमाशे का मज़ा ले रहा था।
 
;अकबर और जैन मुनि
अकबर के दरबार में जैन भी थे, यह बदायूँनी और अबुल फजल दोनों ही कहते हैं। दो प्रमुख जैन मुनि हीर विजयजी तथा उनके शिष्य विजयसेन सूरी उसके दरबार में आए। ये दोनों श्वेबांतर जैन थे। इनमें हीर विजयजी सूरी को तो 1584 ई. में अकबर का फरमानफ़रमान प्राप्त हुआ किपर्युषण पर्व में जीव हिंसा न हो।
 
लोग जैनों के सम्मुख हिंसा न करें और मांस न खाएँ। हीर विजयजी के प्रति अकबर की बड़ी श्रद्धा रही होगी। अबुल फजल ने लिखा है कि वे उच्चतम कोटि के धार्मिक व्यक्ति थे। इनके प्रभाव से अकबर को जीव हिंसा के प्रति अरुचि हुई और उसने कई ख़ास तिथियों पर अपने साम्राज्य में जीव हिंसा की मनाही कर दी। वह स्वयं मांस-भक्षण के विरुद्ध हो गया। उसने स्वयं प्रत्येक शुक्रवार शाकाहारी भोजन करने का व्रत ले लिया।