"गीत गोविंद": अवतरणों में अंतर
Content deleted Content added
No edit summary |
|||
पंक्ति 1:
{{merge|गीतगोविन्द}}
'''गीतगोविन्द''' १२वी शतव्दि मे लिखि गयि एक ऐसि काव्य है जो हमे भगवान [[कृष्ण]] और राधारानी के प्रेम के बारे मै बताती है।इसमे कुल १२ अध्याय है।यह काव्य ओडिशा राज्य कै [[पुरी]] शहर के समिप्वर्ती केन्दुबिल्व या केन्दुलि शासन नाम के गांव मे वास कर्ने वाले ब्राह्मण [[जयदेव]] कि कृति है।जयदेव ने उनकि पत्नी पाद्मावति के सहयता से इस को ऐसि रुपान्तर किया कि तत्कालिन उत्कल(ओडिशा क पुर्व नाम) के राजा इर्षा करने लगे।फिर जब गीतगोविन्द कि प्राधान्य जगन्नाथ जी ने स्वप्न मे राजा को बतायि तब से मन्दिर के देवादासी रात के एकान्त सेवा और सुबह कि सेवा मे प्रभु जगन्नाथ के सामने ओडिशि नृत्य रुप मै पेश करने लगे।पहेले विद्वानो क मानना था कि जयदेव बंगाल के राजा के सभाकवि है।पर शिलालेख एवं प्रचीन मन्दिर जो ओडिशा मे मोह्जुद है,उन्से प्रमाणित हुआ कि जयदेव जगन्नाथ के भक्त थे और उत्कल राज्य के वासि थे।आज भि ओडिशी नृत्य के माध्यम से गीतगोविन्द सर्वजनीन प्रिय हो रहा है।ओडिशि नृत्य हि जयदेव का ओडिशा प्रान्त क होना सुचित करता है।उनकि गीतगोविन्द काव्य कि प्रचार पडोशी आन्ध्र,तमिळ्नाडु तथा कर्णाटक मे हुआ।फिर उत्तरभारत मै खास तौर पर राजस्थान मै मीराबाइ के द्वारा हुआ।गुरुग्रन्थ साहिब मै भि भगत जयदेव का नाम लिख है जो गीतगोविन्द कै रच्हयैत है।
==आधार==
|