"चैतन्य महाप्रभु": अवतरणों में अंतर

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==षण्गोस्वामी==
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[[हिंदू धर्म]] में नाम-जप को ही वैष्णव धर्म माना गया है और भगवान श्रीकृष्ण को प्रधानता दी गई है। चैतन्य ने इन्हीं की उपासना की और नवद्वीप से अपने छः प्रमुख अनुयायियों को वृंदावन भेजकर वहां सप्त देवालयों की आधारशिला रखवाई। गौरांग ने जिस गौड़ीय संप्रदाय की स्थापना की थी। उसमें षड्गोस्वामियों की अत्यंत अहम भूमिका रही। इन सभी ने भक्ति आंदोलन को व्यवहारिक स्वरूप प्रदान किया। साथ ही वृंदावन के सप्त देवालयों के माध्यम से विश्व में आध्यात्मिक चेतना का प्रसार किया। रसिक कवि कुल चक्र चूडामणि श्री [[जीव गोस्वामी]] महराज षण्गोस्वामी गणों में अन्यतम थे। उन्होंने परमार्थिक नि:स्वार्थ प्रवृत्ति से युक्त होकर सेवा व जन कल्याण के जो अनेकानेक कार्य किए वह स्तुत्य हैं। चैतन्य महाप्रभु के सिद्धान्त अनुसार हरि-नाम में रुचि, जीव मात्र पर दया एवं वैष्णवों की सेवा करना उनके स्वभाव में था। वह मात्र २० वर्ष की आयु में ही सब कुछ त्याग कर वृंदावन में अखण्ड वास करने आ गए थे।<ref name = "सेंट्स "> {{cite web |url= http://santslife.blogspot.com/2008/12/blog-post_2270.html|title= गौड़ीय संप्रदाय के स्तंभ जीव गोस्वामी|author= ब्रह्म शर्मा |date= २८|year= २००८|month= दिसंबर|format= एचटीएम|work= |publisher= सेंट्स लाइफ, ब्लॉगस्पॉट |pages= |language= हिन्दी |archiveurl= |archivedate= |quote= }}</ref> ये [[षड्गोस्वामी]] थे:
*'''श्री [[गोपाल भट्ट गोस्वामी]]''', बहुत कम आयु में ही [[गौरांग]] की कृपा से यहां आ गए थे। दक्षिण भारत का भ्रमण करते हुए गौरांग चार माह इनके घर पर ठहरे थे। बाद में इन्होंने गौरांग के नाम संकीर्तन में प्रवेश किया।<ref> श्री चैतन्य चरितामृतम, आदि-लीला, १०.१०५</ref>
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*'''श्री [[रघुनाथ दास गोस्वामी]]''', ने युवा आयु में ही गृहस्थी का त्याग किया, और [[गौरांग]] के साथ हो लिए थे। ये चैतन्य के सचिव [[स्वरूप दामोदर]] के निजी सहायक रहे। उनके संग ही इन्होंने गौरांग के पृथ्वी पर अंतिम दिनों में दर्शन भी किये।<ref>श्री चैतन्य चरितामृतम, आदि-लीला, १०.९१-१०३ एवं अंत्य-लीला अध्याय ६</ref>
 
इन्होंने [[वृंदावन]] में सात वैष्णव मंदिरों की स्थापना की। वे इस प्रकार हैं:-[[गोविंददेव मंदिर]], [[गोपीनाथ मंदिर]], [[मदन मोहन मंदिर]], [[राधा रमण मंदिर]], [[राधा दामोदर मंदिर]], [[राधा श्यामसुंदर मंदिर]] और [[गोकुलानंद मंदिर]]। इन्हें सप्तदेवालय कहा जाता है।
 
{{seealso|षण्गोस्वामी}}
 
==अध्यात्म==