"ज़ाक देरिदा": अवतरणों में अंतर

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डेरिडा ने अपनी बात को कहना और लिखना तब प्रारम्भ किया जब फ्रांसीसी बौद्धिक दृश्य व्यक्‍ति तथा सामूहिक जीवन को समझने की संरचनावादी (structuralist) तथा दृश्यप्रपंच वैज्ञानिक (phenemological) धाराओं में तीव्रता से बंट रहा था। वे दार्शनिक जो दृश्यप्रपंच विज्ञान के प्रति रूझान रखते थे उनका उद्देश्य अनुभव को समझने के लिये उसके उद्‍गम को समझना तथा उसका विवरण देना था, जिससे वे अनुभव के विकास की प्रक्रिया को किसी आरम्भिकता अथवा घटना से जोड़ सकें। परन्तु संरचनावादियों के लिये यह एकदम गलत कठिनता थी, और उनके लिए अनुभवों की गहराई केवल संरचनाओं का प्रभाव मात्र थी, जो कि स्वयं एक अनुभव नहीं हो सकता था। इस संदर्भ में सन 1959 में डेरिडा ने प्रश्‍न पूछा: क्या किसी संरचना का उद्‍गम नहीं होना चाहिए, तथा क्या आराम्भिकता, या उद्‍गम बिन्दु, किसी वस्तु का उद्‍गम होने के लिए पहले से ही संरचित नहीं होनी चाहिए?
 
दूसरे शब्दों में, हर तंत्र अथवा समकालिक प्रक्रिया का एक इतिहास होता है, तथा संरचनाओं को उनके उद्‍गम को समझे बिना नहीं समझा जा सकता। साथ ही, गति सुनिश्‍चित करने के लिए आरम्भिकता कोई विशुद्ध एकतव्य अथवा सामान्यता नहीं हो सकती, बल्कि इसे पहले से ही ऐसे परिभाषित होना चाहिए कि इससे एक ऐतिहासिक प्रक्रिया का उद्‍गम हो सके। इस आसतित्व-सूचक जटिलता को एक मूलभूत सिद्धांत नहीं माना जाना चाहिए, बल्कि इसे उद्‍गम का अभाव माना जाना चाहिए, जिसे डेरिडा ने iterability, नक्श या पाठात्मकता (textuality) कहा है। आसतित्वआस्तित्व-सूचक जटिलता का यह विचार, न कि आरम्भिक शुद्धता, उद्‍गमता तथा संरचना के विचारों को असंतुलित करता है, तथा डेरिडा के दर्शन का आधार है, जिससे विरचना सहित इस दर्शन की सभी परिभाषायें निकलती हैं।
 
[[श्रेणी:यहूदी]]