"विकृतिविज्ञान": अवतरणों में अंतर
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अनुनाद सिंह (वार्ता | योगदान) |
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==विकृतियाँ==
शरीर के अंगों में होनेवाली विकृतियाँ अव्यक्त होते हुए भी [[प्रतिक्रिया]] (Reaction), [[सूजन]] (Inflammation), [[जीर्णोद्धार]] (Repair), वृद्धि में बाधा (Disturbance in growth), [[अपजनन]] (Degeneration), [[अर्बुद]] (Tumour) इत्यादि कुछ इनी-गिनी सामान्य प्रकार की होती है। शरीर के भीतर इन विकृतियों का स्वरूप जब आसानी से इंद्रिय ग्राह्य होता है, तब उसको स्थूल (grross) विकृति कहते हैं तथा सूक्ष्म स्वरूप की विकृति होने पर इन विकृतियों को देखने के लिए जब [[सूक्ष्मदर्शी]] यंत्र की आवश्यकता होती है तब उसको सूक्ष्म (microscopic) विकृति कहते हैं।
===विकृति और रोग में भेद===
विकृतियों में शरीर के विभिन्न अंगों की वैषम्यावस्था पर तथा उनके रचनात्मक और स्वरुपात्मक (morphological and structural) परिवर्तनों पर जोर दिया जाता है और रोगों में उनके कार्यात्मक (functional) परिवर्तनों पर जोर दिया जाता है। सारांश में विकृतियों का उल्लेख विभिन्न अंगों से संबंधित होता है और रोग का उल्लेख अधिकतर लक्षणों से संबंधित होता है। शरीर में विकृतियों के स्वरूप में रोग बहुत पहले से रहता है। केवल वह बहुत सूक्ष्म होने से इंद्रियग्राह्य कम होकर बुद्धिग्राह्य अधिक होता है।
==शाखाएँ==
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