"बांग्लादेश मुक्ति युद्ध": अवतरणों में अंतर

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16 दिसंबर सन् १९७१ को [[बांग्लादेश]] बना था। भारत की पाकिस्तान पर इस ऐतिहासिक जीत को [[विजय दिवस]] के रूप में मनाया जाता है। [[पाकिस्तान]] पर यह जीत कई मायनों में ऐतिहासिक थी। भारत ने ९३ हजार पाकिस्तानी सैनिकों को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया था।
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कई सालों के संघर्ष और [[पाकिस्तान]] की सेना के अत्याचार और [[बांग्ला]]भाषियों के दमन के विरोध में पूर्वी पाकिस्तान के लोग सड़कों पर उतर आए थे। १९७१ में आज़ादी के आंदोलन को कुचलने के लिए पाकिस्तानी सेना ने पूर्वी पाकिस्तान के विद्रोह पर आमादा लोगों पर जमकर अत्याचार किए। लाखों लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया और अनगिनत महिलाओं की आबरू लूट ली गई।
The Bangladesh Liberation War(i) (Mukti Juddha in Bangla), incorporating the Indo-Pakistani War of 1971, was an armed conflict between West Pakistan (now Pakistan) and East Pakistan (now Bangladesh) that lasted for roughly nine months, from 26 March until 16 December 1971. The war resulted in Bangladesh's independence from Pakistan.
 
[[भारत]] ने पड़ोसी के नाते इस जुल्म का विरोध किया और क्रांतिकारियों की मदद की। इसका नतीजा यह हुआ कि भारत और पाकिस्तान के बीच सीधी जंग हुई। इस लड़ाई में भारत ने पाकिस्तान को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिए। इसके साथ ही दक्षिण एशिया में एक नए देश का उदय हुआ।
 
==पृष्ठभूमि==
14 अगस्त 1947 को पाकिस्तान बना, लेकिन पश्चिमी और पूर्वी पाकिस्तान में कोई समानता नहीं थी। पूर्वी पाकिस्तान में ज्यादा संसाधन थे, लेकिन पश्चिमी क्षेत्र के नेता राजनीति में हावी रहते थे। और इसी वजह से अंत में 1971 में बांग्लादेश बना।
 
पाकिस्तान के गठन के समय पश्चिमी क्षेत्र में सिंधी, पठान, बलोच और मुजाहिरों की बड़ी संख्या थी, जबकि पूर्व हिस्से में बंगाली बोलने वालों का बहुमत था। लेकिन पूर्वी हिस्सा हमेशा राजनीतिक रूप से उपेक्षित रहा। इससे पूर्वी पाकिस्तान के लोगों में जबर्दस्त नाराजगी थी। और इसी नाराजगी को भुनाने के लिए बांग्लादेश के नेता शेख मुजीब-उर-रहमान ने अवामी लीग का गठन किया और पाकिस्तान के अंदर ही और स्वायत्तता की मांग की। 1970 में हुए आम चुनाव में पूर्वी क्षेत्र में शेख की पार्टी ने जबर्दस्त विजय हासिल की। उनके दल ने संसद में बहुमत भी हासिल किया लेकिन बजाए उन्हें प्रधानमंत्री बनाने के उन्हें जेल में डाल दिया गया। और यहीं से पाकिस्तान के विभाजन की नींव रखी गई।
 
1971 के समय पाकिस्तान में जनरल याह्या खान राष्ट्रपति थे और उन्होंने पूर्वी हिस्से में फैली नाराजगी को दूर करने के लिए जनरल टिक्का खान को जिम्मेदारी दी। लेकिन उनके द्वारा दबाव से मामले को हल करने के प्रयास से स्थिति पूरी तरह बिगड़ गई। 25 मार्च 1971 को पाकिस्तान के इस हिस्से में जबर्दस्त नरसंहार हुआ। इससे पाकिस्तानी सेना में काम कर रहे पूर्वी क्षेत्र के निवासियों में जबर्दस्त रोष हुआ और उन्होंने अलग मुक्ति वाहिनी बना ली। पाकिस्तानी फौज का निरपराध, हथियार विहीन लोगों पर अत्याचार जारी रहा। भारत ने अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से लगातार अपील की कि पूर्वी पाकिस्तान की स्थिति सुधारी जाए, लेकिन किसी देश ने ध्यान नहीं दिया और जब वहां के विस्थापित लगातार भारत आते रहे तो अप्रैल 1971 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने मुक्ति वाहिनी को समर्थन देकर, बांग्लादेश को आजाद करवाने का निर्णय लिया।
 
==बदतर थे पूर्वी पाकिस्तान के हालात==
बांग्लादेश बनने से पहले पूर्वी पाकिस्तान में पाकिस्तानी सेना ने स्थानीय नेताओं और धार्मिक चरमपंथियों की मदद से मानवाधिकारों का हनन किया। २५ मार्च १९७१ को शुरू हुए ऑपरेशन सर्च लाइट से लेकर पूरे बांग्लादेश की आज़ादी की लड़ाई के दौरान पूर्वी पाकिस्तान में जमकर हिंसा हुई। बांग्लादेश सरकार के मुताबिक इस दौरान करीब ३० लाख लोग मारे गए। हालांकि, पाकिस्तान सरकार की ओर से गठित किए गए [[हमूदूर रहमान आयोग]] ने इस दौरान सिर्फ २६ हजार आम लोगों की मौत का नतीजा निकाला।
 
==सामूहिक कब्र==
पाकिस्तान सेना के इशारे पर रजाकरों, अल शम्स और अल बद्र ने तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान में बंगाली भाषी अल्पसंख्यकों और बंगाली भाषी मुस्लिमों पर अत्याचार किए और जमकर मानवाधिकारों का उल्लंघन किया। अब तक मिलती रही हैं।
 
१९७१ में तत्कालीन पूर्व पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) में नरसंहारों के बाद कई सामूहिक कब्र बनाई गईं, जिनका पता अब तक चलता रहा है। १९९९ में ढाका में मस्जिद के पास एक कब्र का पता चला। बंगालियों के खिलाफ किए गए अत्याचार का पता ढाका में मौजूद अमेरिकी वाणिज्यिक दूतावास से भेजे गए टेलीग्राम से लगता है। इस टेलीग्राम के मुताबिक बंगालियों के खिलाफ युद्ध की पहली ही रात ढाका यूनिवर्सिटी में छात्रों और आम लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया।
 
==लाखों महिलाओं के साथ ज़्यादती==
१९७१ में पूर्वी पाकिस्तान में लाखों महिलाओं के साथ बलात्कार, अत्याचार किया गया और हत्या की गईं। एक अनुमान के मुताबिक ऐसी करीब चार लाख महिलाओं के साथ ऐसी ज्यादतियां की गईं। ५६३ बंगाली महिलाओं को कैंट इलाके में कर रखा था कैदलड़ाई के पहले ही दिन से ५६३ बंगाली महिलाओं को ढाका के डिंगी मिलिट्री कैंट में कैद कर दिया गया था। इन महिलाओं के साथ पाकिस्तानी सेना के जवाब ज्यादतियां करते थे। १० लाख लोग भारत चले गएएक अनुमान के मुताबिक पूर्वी पाकिस्तान में अत्याचार से तंग आकर करीब ८० लाख लोग भारत की सीमा में प्रवेश कर गए। भारत के इस लड़ाई में दखल देने के पीछे इन शरणार्थियों के भारत में प्रवेश को भी एक वजह माना जाता है।
 
==[[मुक्तिवाहिनी|मुक्ति वाहिनी]]==
बांग्लादेश की आज़ादी की लड़ाई के दौरान मुक्ति वाहिनी का गठन पाकिस्तान सेना के अत्याचार के विरोध में किया गया था। १९६९ में पाकिस्तान के तत्कालीन सैनिक शासक जनरल अयूब के खिलाफ पूर्वी पाकिस्तान में असंतोष बढ़ गया था और बांग्लादेश के संस्थापक नेता शेख मुजीबुर रहमान के आंदोलन के दौरान १९७० में यह अपने चरम पर था। मुक्ति वाहिनी एक छापामार संगठन था,जो पाकिस्तानी सेना के खिलाफ गुरिल्ला युद्ध लड़ रहा था। मुक्ति वाहिनी को भारतीय सेना ने समर्थन दिया था।
 
==बंगबंधु'शेख मुजीब-उर-हमान==
बांग्लादेश के संस्थापक नेता शेख मुजीब-उर-रहमान ने बांग्लादेश की आज़ादी के लिए संघर्ष किया। बांग्लादेश के राष्ट्रपिता कहे जाने वाले शेख मुजीब को 'बंगबंधु' की उपाधि से नवाजा गया। अवामी लीग के नेता शेख मुजीब बांग्लादेश के पहले राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री बने। हालांकि, १९७५ में उनके सरकारी आवास पर ही सेना के कुछ जूनियर अफसरों और अवामी लीग के कुछ नेताओं ने मिलकर शेख मुजीब-उर-रहमान की हत्या कर दी। उस वक्त उनकी दोनों बेटियां शेख हसीना वाजेद और शेख रेहाना तत्कालीन पश्चिमी जर्मनी की यात्रा पर थीं।
 
[[श्रेणी:बांग्लादेश]]
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