"निरुक्त": अवतरणों में अंतर

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== वर्तमान समय में निरुक्त ==
वर्तमान उपलब्ध निरुक्त, [[निघंटु]] की व्याख्या (commentary) है और वह यास्क रचित है। इसकी विशेषताओं से आकृष्ट होकर अनेक विद्वानों ने इस पर टीका लिखी है। इस समय उपलब्ध टीकाओं में स्कंदस्वामी की टीका सबसे प्राचीन है। शुक्लयजुर्वेदीय शतपथ ब्राह्मण के भाष्य में हरिस्वामी ने स्कंदस्वामी को अपना गुरु कहा है। देवराज यज्वा द्वारा रचित एक व्याख्या का प्रकाशन गुरुमंडल ग्रंथमाला, कलकत्ता से 1952 में हुआ है। ग्रंथ के प्रारंभ में इन्होंने एक विस्तृत भूमिका लिखी है। निरुक्त पर व्याख्या रूप एक वृत्ति दुर्गाचार्य रचित उपलब्ध है। इन्होंने अपनी वृत्ति में निरुक्त के प्राय: सभी शब्दों का विवचन किया है। इसका प्रकाशन आनंदाश्रम संस्कृत ग्रंथमाला, पूना से 1926 में और खेमराज श्रीकृष्णदास, बंबई से 1982 वै., में हुआ है।
 
सत्यव्रत सामश्रमी ने इस विषय पर लेखनकार्य किया है। इसका प्रकाशन बिब्लओथिका, कलकत्ता से 1911 में हुआ है। प्रो. राजवाड़े का इस विषय पर महत्वपूर्ण कार्य निरुक्त का मराठी अनुवाद है जो 1935 में प्रकाशित है। डॉ. सिद्धेश्वर वर्मा का यास्क निर्वचन नामक ग्रंथ विश्वेश्वरानंद वैदिक शोध संस्थान, होशयारपुर से 1953 में प्रकाशित है। इसपर कुकुंद झा बख्शी की संस्कृत टीका निर्णयसागर प्रेस, बंबई से 1930 में प्रकाशित है। इसपर मिहिरचंद्र पुष्करणा ने एक टीका लिखी है जो पुरुषार्थ पुस्तकमाला कार्यालय, अमृतसर से 1945 में प्रकाशित है।