"सूचकाक्षर": अवतरणों में अंतर
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बड़े अथवा क्लिष्ट शब्दों को संक्षिप्त या सरल बनाने की इस क्रिया में प्राय: मूल शब्द के प्रथम दो, तीन या अधिक अक्षर, और यदि मूल शब्द (नाम) कई शब्दों के मेल से बना हो तो उन शब्दों के प्रथम अक्षर लेकर उन्हें अलग-अलग अक्षरों या एक स्वतंत्र शब्द के रूप में प्रयुक्त किया जाता है। इस प्रकार बनाए गए सूचकाक्षरों का प्रयोग कभी-कभी इतना अधिक होने लगता है कि मूल शब्द का प्रयोग प्राय: बिल्कुल ही बंद हो जाता है और सूचकाक्षर लिखित भाषा का अंग बनकर उस मूल शब्द का रूप ले लेता है। इसका एक सरल उदाहरण "यूनेस्को" है जो वस्तुत: "यूनाइटेड नेशंस एज्युकेशनल, साइंटिफिक ऐंड कल्चरल आर्गेनिजेशन" इस लंबे नाम में प्रयुक्त पाँच मुख्य शब्दों के प्रथम अक्षरों के मेल से बना है। इसी प्रकार अंग्रेजी में एक बहुप्रचलित शब्द "मिस्टर" (Mister) है, जिसे शायद ही कभी पूरे रूप में लिखा जाता हो। जब कभी किसी भी प्रसंग में उक्त शब्द लिखना होता है तो पूरा शब्द न लिखकर केवल उसके सूचकाक्षर Mr. से ही काम चला लिया जाता है। इसी शब्द का स्त्रीलिंग रूप "मिसेज़" या "मिस्ट्रेस" भी कभी अपने पूरे रूप में न लिखा जाकर केवल सूचकाक्षर Mrs. के रूप में ही लिखा जाता है।
== इतिहास ==
प्राणि मात्र का स्वभाव है कि वह कठिन एवं अधिक समय वाले कार्य की अपेक्षा सरल और कम समय वाले कार्य को अधिक पसंद करता है। सूचकाक्षर भी मनुष्य की इसी सहज स्वाभाविक प्रकृति की देन कहे जा सकते हैं। विद्वानों तथा भाषा विशेषज्ञों का मत है कि सूचकाक्षरों की प्रथा आदि काल से चली आ रही है। सूरकाक्षरों के प्राचीन उदाहरण प्राचीन काल के सिक्कों और शिलालेखों में आसानी से देखे जा सकते हैं जबकि सिक्कों तथा शिलालेखों पर स्थान की कमी तथा शिलालेखों पर लिखने के श्रम को बचाने के लिए भी शब्दों के संक्षिप्त रूपों या सूचकाक्षरों का प्रयोग किया जाता था। आधुनिक काल में भी विविध देशों के सिक्कों पर सूचकाक्षर देखे जाते हैं।
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प्राचीन [[मिस्र]] से संबंधित जो सामग्री प्राप्य है तथा जो [[काहिरा]] के म्यूजियम तथा ब्रिटिश म्यूजियम, ([[लंदन]]) में सुरक्षित हैं, उसे देखने से पता चलता है कि प्राचीन यूनानी और लैटिन भाषाओं में भी सूचकाक्षरों का प्रयोग होता था। प्राचीन यूनानी भाषा में सूचकाक्षर बनाने की विधि बहुत सरल थी। या तो मूल शब्द का प्रथम अक्षर लिखकर उसके आगे दो आड़ी लकीरें खींचकर सूचकाक्षर बनाए जाते थे या मूल शब्द के जितने अंश को छोड़ना होता था उसका प्रथम अक्षर मूल शब्द के प्रारंभिक अंश से कुछ ऊपर लिखकर सूचकाक्षर का बोध कराया जाता था। कभी-कभी इस प्रकार दो अक्षर भी प्रारंभिक अंश से कुछ ऊपर लिखे जाते थे।
[[अरस्तू]] लिखित एथेंस के संविधान संबंधी जो हस्तलिखित ग्रंथ प्राप्य हैं तथा जो पहली शताब्दी (100 ई.) के लिपिकों द्वारा लिखे माने जाते हैं, उनमें भी सूचकाक्षरों का प्रयोग मिलता है। इन ग्रंथों में कारकचिन्ह
ब्रिटिश म्यूजियम (लंदन) में "[[इलियड]]" की छठी शताब्दी की जो प्रतियाँ सुरक्षित हैं, उनमें भी सूचकाक्षरों का प्रयोग मिलता है। इन प्रतियों में जिन शब्दों के लिए सूचकाक्षरों का प्रयोग किया गया है, उनके प्रथम अक्षर के आगे अंग्रेजी के च् के समान चिह्न बना हुआ है जिससे यह पता चलता है कि ये शब्द संक्षिप्त रूप में लिखे गए हैं। बाइबिल में भी संतों के नामों के लिए प्राय: सूचकाक्षरों का प्रयोग किया गया है।
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अमरीका और यूरोप के देशों में तो अब यह एक प्रथा सी बन गई है कि किसी भी कंपनी, संस्था, एजेंसी आदि प्रतिष्ठान या प्रकाशन आदि का नामकरण करते समय इस बात का भी ध्यान रखा जाता है कि उसके नाम में प्रयुक्त शब्दों के अक्षरों से कोई सरल, सुविधाजनक सूचकाक्षर बनाया जा सके। "एस्कप" (Ascap = अमरीकन सोसायटी ऑव कंपोजर्स, आथर्स एंड पब्लिशर्स / American Society of Composers, Authors and Publishers), "लूलोप" (Lulop = लंदन यूनियन लिस्ट ऑव पीरियोडिकल्स / London Union List of Periodicals) आदि इसी प्रकार से सूचकाक्षरों के उदाहरण हैं।
अलग-अलग विषयों के सूचकाक्षर भी अलग-अलग प्रकार के हैं। पाश्चात्य संगीत को जब लिपिबद्ध करना होता है तो उसके लिए कुछ विशिष्ट सूचकाक्षरों का प्रयोग किया जाता है। चिकित्साजगत् में प्रचलित "टी.बी." शब्द से तो अब सामान्य जनपरिचित हैं। यह वास्तव में सूचकाक्षर ही है। गणित शास्त्र में कुछ प्रतीक सूचकाक्षरों का कार्य करते हैं। -, +,
वर्तमान काल में सूचकाक्षरों की जो वृद्धि हुई है, उसका बहुत कुछ श्रेय समाचारपत्रों को भी दिया जा सकता है। समाचारपत्रों का एक मुख्य सिद्धांत यह होता है कि कम से कम स्थान में अधिक से अधिक समाचार सारगर्भित रूप में दिए जाएँ। सूचकाक्षरों की सहायता से ही समाचार इस उद्देश्य में सफल हो पाते हैं। वर्तमान में बहुत सी राजनीतिक पार्टियों एवं संस्थाओं के नामों के लिए जो अनधिकारिक नाम प्रचलित हो गए हैं, वे वस्तुत: समाचारपत्रों की ही देन है। नाटो, सीटो और प्रसोपा जैसे नामों की कल्पना भी कभी इनके संस्थापकों ने न की होगी, पर समाचारपत्रों ने अपनी सुविधा के लिए "नार्थ अटलांटिक ट्रीटी आर्गेनाइजेशन" (उत्तर अतलांतक संधि संघटन) के लिए "नाटो" और [[प्रजा सोशलिस्ट पार्टी]] के लिए "प्रसोपा", [[भारतीय जनता पार्टी]] के लिये 'भाजपा' जैसे सरल और सहजग्राह्य सूचकाक्षरों का प्रयोग करना शुरू कर लिया।
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आधुनिक युग में सूचकाक्षरों की जो अप्रत्याशित वृद्धि हुई है उसे देखते हुए हम उन्हें साधारण भाषा के अंतर्गत प्रयोग की जाने वाली प्राविधिक भाषा (Technical Language) कह सकते हैं। गणित शास्त्र तथा रसायनशास्त्र के विषय में, जिनमें प्रयुक्त किए जाने वाले सूचकाक्षर सभी देशों में समान रूप से ज्ञात हैं, यह बात विशेष रूप से कही जा सकती है। इन विषयों के सूचकाक्षर राष्ट्रीयता, धर्म, वर्ण आदि का बंधन तोड़कर हर जगह समान रूप से प्रयुक्त होते हैं। शैक्षणिक जगत् में डिग्री और पाठ्यक्रम प्राय: सूचकाक्षरों से ही जाने जाते हैं। बी.ए., एम. ए., पी-एच.डी. आदि शब्द अब इतने अधिक प्रचलित हो चुके हैं कि इनके मूल शब्द "बैचलर ऑव आर्ट्स", "मास्टर ऑव आर्ट्स", तथा "डाक्टर ऑव फिलासफी" आदि का प्रयोग प्रमाणपत्रों के अतिरिक्त शायद ही कहीं और होता हो। उद्योग, व्यवसाय आदि के क्षेत्र में भी सूचकाक्षरों की एक लंबी सूची प्रयोग में आती है। आधुनिक जीवन में सूचकाक्षरों ने इतना अधिक स्थान बना लिया है कि उनके अर्थ को जानना अब दैनिक जीवन में सफलता प्राप्त करने के लिए आवश्यक समझा जाने लगा है।
== सूचकाक्षर बनाने के नियम ==
सूचकाक्षर बनाने के कोई निश्चित नियम नहीं हैं। किसी एक शब्द या नाम के लिए इतने अधिक सूचकाक्षर बनाए जा सकते हैं कि कभी-कभी एक ही शब्द के लिए कई सूचकाक्षर प्रचलित हो जाते हैं। जो हो, वर्तमान में विविध प्रकार के जो सूचकाक्षर प्रचलित हो गए हैं, उनका अध्ययन करने पर हमें सूचकाक्षर बनाने के कुछ नियमों का पता चलता है, जो इस प्रकार है-
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कुछ प्रसिद्ध व्यक्तियों के नामों के भी अब सूचकाक्षर प्रचलित हो गए हैं। अंग्रेजी साहित्य में [[जार्ज बर्नार्ड शा]] के लिए जी.बी.एस. और राबर्ट लुई स्टीवेन्सन के लिए आर.एल.एस. का प्रयोग किया जाता है। इसी प्रकार राजनीति में भूतपूर्व अमरीकी राष्ट्रपति श्री फ्रैंकलिन डी. रूजवेल्ट के लिए एफ.डी.आर. और भूतपूर्व राष्ट्रपति श्री आइसनहाइवर के लिए प्रयोग किए जाने वाले "आइक" सूचकाक्षर से जनसाधारण अच्छी तरह परिचित है। अंग्रेजी में फ्रेडरिक को फ्रेड, विलियन को बिल, पैट्रिशिया को पैट, हिंदी में विश्वनाथ को बिस्सु, परमेश्वरी को परमू, चमेली को चंपी आदि कहना भी वास्तव में सूचकाक्षर का ही प्रयोग करना है, तथापि नामों को इस संक्षिप्त रूप में केवल स्नेह या प्यार के कारण ही कहा जाता है।
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कभी-कभी यह भी देखा गया है कि एक ही सूचकाक्षर कई शब्दों (नामों) के लिए प्रयुक्त होता है। अत: प्रसंगानुकूल ही उसका अर्थ लगाना चाहिए, अन्यथा कभी-कभी अर्थ का अनर्थ हो सकता है। अंग्रेजी के एक प्रसिद्ध सूचकाक्षर पी.सी. का अर्थ पुलिस कांस्टेबल, प्रिवी कौंसिल, पीस कमीशन, पोस्टकार्ड, पोर्टलैंड सीमेंट, पनामा केनाल, प्राइस करेंट, आदि हो सकता है। समाचारपत्रों के प्रसंग में ए.बी.सी. का अर्थ आडिट ब्यूरो सर्कुलेशन होता है, पर जब किसी राजनीतिक प्रसंग में ए.बी.सी. कहा जाता है तो इसका अर्थ अर्जेंटाइना, ब्राजील और चिली होता है। किसी हिंदी शब्दकोश में सामान्यत: सं. का अर्थ संज्ञा होता है पर किसी समाचारपत्र डायरेक्टरी में इसका अर्थ संपादक होगा।
== बाहरी कड़ियाँ ==
* [http://www.abbreviations.com Abbreviations.com] — a database of acronyms and abbreviations
* [http://www.acronymfinder.com Acronym Finder] — a database of acronyms and abbreviations (over 750,000 entries)
पंक्ति 71:
* [http://acronymcreator.net AcronymCreator.net] - a language tool to make new meaningful acronyms and abbreviations
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[[ar:اختصار]]
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[[ro:Abreviere]]
[[ru:Аббревиатура]]
[[rw:Amagambo ahinnye]]
[[sh:Kratica]]
[[simple:Abbreviation]]
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