"अंश (वित्त)": अवतरणों में अंतर
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'''शेयर''' का अर्थ किसी [[कम्पनी]] मे भाग या हिस्सा होता है। एक कंपनी के कुल स्वामित्व को लाखों करोड़ों टुकड़ों में बाँट दिया जाता है। स्वामित्व का हर एक टुकड़ा एक शेयर होता है। जिसके पास ऐसे जितने ज्यादा टुकड़े, यानी जितने ज्यादा शेयर होंगे, कंपनी में उसकी हिस्सेदारी उतनी ही ज्यादा होगी।
लोग इस हिस्सेदारी को खरीद-बेच भी सकते हैं। इसके लिए बाकायदा शेयर बाजार (स्टॉक एक्सचेंज) बने हुए हैं। भारत में बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (बीएसई) और नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) सबसे प्रमुख शेयर बाजार हैं। बीएसई की वेबसाइट www.bseindia.com और एनएसई की वेबसाइट www.nseindia.com है। हिंदी में शेयर बाजार की जानकारी पाने के लिए [http://www.sharemanthan.in शेयर मंथन] जैसी वेबसाइटें उपयोगी हैं।
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इस प्रकार इन तीनों तरीकों से आवंटित हुए शेयर निवेशक, संस्थान या कंरनी के डीमैट अकाउंट में जमा हो जाते हैं।
==शेयर, अंश या हिस्सा==
व्यक्ति की चलसंपत्ति दो प्रकार की होती है - भोगाधीन वस्तु (Chose in possession) और वादप्राप्य स्ववस्तु (Chose in action)। भोगाधीन वस्तु के माने हैं वह संपत्ति जो आपके वास्तविक व्यक्तिगत अधिकार में है लेकिन वादप्राप्य स्ववस्तु के माने वह संपत्ति है जो आपके तात्कालिक अधिकार में नहीं है। उसपर आपका अधिकार है जिसे वैधानिक कार्रवाई द्वारा क्रियान्वित किया जा सकता है। यह अधिकार सामान्यतया एक आलेख (Document) द्वारा प्रमाणित होता है, उदाहरणार्थ - रेलवे की रसीद द्वारा। प्रमंडल (कंपनी या समवाय) में एक अंश (हिस्सा या शेयर) भी वादप्राप्य स्ववस्तु है और अंशपत्र उसका प्रमाण है। लेकिन भारतवर्ष में अंश माल (Goods, गुड्स) माना जाता है। प्रमंडल (समवाय) अधिनियम (Company act) 1956 की धारा 82 की परिभाषा में कहा गया है कि प्रमंडल में किसी व्यक्ति का अंश या अन्य निहित स्वार्थ 'चल संपत्ति' माना जाएगा। वस्तुविक्रय अधिनियम (Sale of Goods Act) में वस्तु या माल की परिभाषा में हर प्रकार की चल संपत्ति सम्मिलित है। इसलिए प्रमंडल के अंश केवल वादप्राप्य स्ववस्तु ही नहीं, अपितु वस्तु या माल (गुड्स) भी हैं।
अंश का वास्तविक स्वरूप सरलता से स्पष्ट नहीं किया जा सकता, क्योंकि प्रमंडल उसका निर्माण करनेवाले अंशधारियों के समूह से सर्वथा भिन्न है। संस्थापित प्रमंडल (Incorporated Company) की अंशपूँजी (Capital stock) का होना सार्वत्रिक है, यद्यपि अनिवार्य नहीं। यह भी समान रूप से सार्वत्रिक है, अनिवार्य नहीं, कि पूँजी को अभिहितमूल्य (nominal value) के अंशों में बाँटा जाए। वह व्यक्ति जिसके पास इस प्रकार का अंश है, अंशधारी (Shareholder) कहलाता है। इसलिए प्रत्येक अंशधारी के पास प्रमंडल की पूँजी का एक भाग रहता है। लेकिन विधिक दृष्टि से अंशधारी उस उद्यम या कारखाने का आंशिक स्वामी नहीं है। उद्यम अंशधारियों की संपूर्ण पूँजी से कुछ भिन्न वस्तु हैं। प्रमंडल की समस्त परिसंपत्ति (Assets) उक्त सुसंगठित संस्थान में निहित है, उसे बनानेवाले व्यक्तियों में नहीं।
विधान की दृष्टि में अंशधारियों के कुछ अधिकारों और निहितस्वार्थों के साथ साथ कुछ दायित्व भी हैं। अंशधारी का हित या स्वार्थ महज चल संपत्ति से नहीं, वरन् स्वयं प्रमंडल से होता है। यह स्वार्थ स्थायी ढंग का होता है। अंश प्रमंडल में अंशधारी का वह हित है जो दो दृष्टियों से धन की रकम के रूप में मापा जाता है, एक तो दायित्व और लाभांश की दृष्टि से, दूसरे व्याज की दृष्टि से। और इसमें प्रमंडल की अंतर्नियमावली (Article of Association) में निहित संविदाएँ भी सम्मिलित हैं। अंश मुद्रा या धन (money) नहीं, अपितु मुद्र के रूप में आँका गया वह हित है जिसमें विभिन्न अधिकार और दायित्व जुड़े हुए हैं। अंश अधिकारों या हकों का विद्यमान समूह है। उदाहरणार्थ, अंश के कारण अंशधारी प्रमंडल के लाभों का एक समानुपातिक भाग प्राप्त करने, अंतर्नियमों के आधार पर प्रमंडल के कारोबार में हाथ बँटाने, कारोबार की समाप्ति पर संपत्ति का आनुपातिक भाग पाने तथा सदस्यता के सभी अन्य लाभों का अधिकारी हो जाता है। अंश के कुछ दायित्व भी हैं। उदाहरणार्थ - प्रमंडल की परिसमाप्ति पर पूर्ण मूल्य की देयता। यह सभी अधिकार और दायित्व प्रमंडल के अंतर्नियमों द्वारा नियमित अधिकार और दायित्व शेयर या अंश का मूलभूत तत्व है।
== संदर्भ ==
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