"दिक्सूचक": अवतरणों में अंतर

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यदि भू-समान्वेषकों के पथप्रदर्शन के लिए दिक्सूचक न होता तो उनकी जल एवं स्थल यात्राएँ असंभव ही हो जातीं। विमानचालकों, नाविकों, गवेषकों, मार्गदर्शकों, पर्यवेक्षकों, बालचरों एवं अन्य व्यक्तियों को दिक्सूचक की आवश्यकता होती है। इसका उपयोग जल या स्थल पर यात्रा की दिशा, किसी वस्तु की दिशा एवं दिङ्‌मान ज्ञात करने और विभिन्न अन्य कार्यों के लिए किया जाता है।
 
== इतिहास ==
यह अब तक विदित नहीं है कि दिक्सूचक का प्रयोग सर्वप्रथम किसने किया। अति प्राचीन काल में चीनियों द्वारा दिक्सूचक का प्रयोग किए जाने की कथा कदाचित्‌ एक कल्पित आख्यान ही है। ऐसा कहा जाता है कि २,६३४ ईसवी पूर्व में चीन देश के सम्राट् "ह्वाङ्‌गटी' के रथ पर दक्षिण दिशा प्रदर्शित करने के लिए एक यंत्र की व्यवस्था रहती थी। इसकी भी संभावना है कि अरबवासियों ने दिक्सूचक का उपयोग चीनियों से ही सीखा हो और उन्होंने इसको यूरोप में प्रचलित किया हो।
 
यूरोपीय साहित्य में दिक्सूचक का प्रथम परिचय १२०० ईसवी में अथवा इसके उपरांत ही मिलता है। सन्‌ १४०० ईसवी के उपरांत से इस यंत्र का उपयोग नौचालन, विमानचालन एवं समन्वेषण में अत्यधिक बढ़ गया है। नाविक दिक्सूचक अत्यधिक समय तक बड़े ही अपरिष्कृत यंत्र थे१ १८२० ईसवी में बार्लो ने चार पाँच समांतर चुंबकों से युक्त एक पत्रक (card) का सूत्रपात किया। सन्‌ १८७६ में सर विलियम टॉमसन (लार्ड केल्विन) ने अपने शुष्क पत्रक दिक्सूचक (Dry card compass) का निर्माण किया। सन्‌ १८८२ में द्रवदिक्सूचक का निर्माण हुआ।
 
== प्रकार ==
दिक्सूचक मुख्यत: चार प्रकार के होते हैं :
 
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(४) सूर्य अथवा तारा दिक्सूचक (Solar or Astral compass) - इसका उपयोग सूर्य अथवा किसी तारे के दृष्टिगोचर होने पर निर्भर करता है।
 
== चुंबकीय दिक्सूचक ==
चुंबकीय दिक्सूचक क्षैतिज दिशा ज्ञात करने का यंत्र है। इस यंत्र के साधारण रूप में एक चुंबकीय सुई होती है, जो एक चूल के ऊपर ऐसे संतुलित रहती है कि वह पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र की क्षैतिज दिशा में घूमने के लिए स्वतंत्र हो।
 
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2. विचलन (Deviation) - चुंबकीय याम्योत्तर और दिक्सूचक के पाठ्यांक में यह दूसरे प्रकार की त्रुटि, जिसे विचलन कहते हैं, स्थानीय चुँबकीय प्रभावों (जैसे जलयान, वायुयान एव मोटरकार के इस्पात के प्रभाव) द्वारा उत्पन्न होती है। दिक्सूचकधानी (Binnacle or compass stand) में लोहे के टुकड़े और त्रुटिपूरक चुंबक लगाने से, यह त्रुटि यथासंभव दूर कर दी जाती है। अवशिष्ट विचलन को प्रदर्शित करती हुई एक सारणी बना ली जाती है। प्रत्येक विचलनसारणी एक विशेष दिक्सूचक संस्थापन के लिए ही प्रयुक्त होती है।
 
== नाविक दिक्सूचक (Mariner's Compass) ==
यह चुंबकीय दिक्सूचक साधारण यंत्र की अपेक्षा अधिक जटिल एवं यथार्थ होता है। इस यंत्र के पाँच मुख्य भाग होते हैं : पत्रक, चुंबकीय सुइयाँ, रत्नित टोपी (jewelled cap), कीलक (द्रत्ध्दृद्य) तथा कटोरा। पत्रक के केंद्र पर रत्नित टोपी संलग्न रहती है तथा पत्रक के नीचे विभिन्न चुंबकीय सुइयाँ संलग्न रहती है। पत्रक और सुइयों की यह संपूर्ण व्यवस्था, कटोरे के अंदर एक केंद्रीय कीलक पर आरोपि इस प्रकार संतुलित रहती है कि चाहे पोत की स्थिति में कितना भी परिवर्तन हो जाए, दिक्सूचक पत्रक सदैव क्षैतिज अवस्था में रहता है।
 
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आधुनिक दिक्सूचक पत्रक पर, उत्तर से आरंभ करके, दक्षिणावर्त दिशा में ०रू से लेकर ३६०रू तक के चिन्ह अंकित होते हैं।
 
== दिङ्‌मान (Bearing) ==
दिक्सूचक द्वारा उत्तरी दिशा ज्ञात करने के पश्चात्‌ यानचालक का उत्तरी दिशा एवं उसके अभीष्ट मार्ग की दिशा के मध्य बननेवाले कोण को ज्ञात करने की आवश्यकता होती है। दिक्सूचक द्वारा ज्ञात की हुई किसी लक्ष्य की दिशा उसका दिक्मान कहलाती है। दिक्मान उसी प्रकार अंशों में प्रदर्शित किया जाता है, जिस प्रकार रेखागणित में कोण।
 
== द्रव दिक्सूचक ==
यह चुंबकीय दिक्सूचक का ही एक प्रकार है और विश्व उपयोग की वस्तु हो गया है। इसमें चुंबक ताम्रप्लव कोष्ठ, नीलम (sapphire) टोपी तथा अभ्रकपत्रक की सरलता से घूमनेवाली व्यवस्था होती है। कटोरा आसुत जल और ३५ प्रतिशत ऐलकोहल के मिश्रण से भरा होता है। यह उपकरण द्रव में ठीक डूब जाता है। कीलक पर घर्षण न्यूनतम होता है और चुंबकीय सुई अवमंदित (damped) दोलन करने लगती है, जिससे दिक्सूचनपठन अविलंब और सुविधापूर्ण हो जाता है।
 
== शुष्कपत्रक अथवा टॉमसन दिक्सूचक ==
यह अंग्रेजी व्यापारी बेड़े में प्रयुक्त होता है तथा द्रवदिक्सूचक से पत्रक के हल्केपन और सुइयों की दुर्बलता में भिन्न होता है। ऐसे दिक्सूचक कंपन और अघात द्वारा अत्यधिक विक्षेपित हो जाते हैं और एक बार विक्षेपित होने पर पर्याप्त समय के उपरांत संतुलित अवस्था में आते हैं। इसीलिए द्रवदिक्सूचक शुष्कपत्रक दिक्सूचक की अपेक्षा अत्यधिक उपयोगी है।
 
== घूर्ण चुंबकीय दिक्सूचक ==
यह विशेष प्रकार का चुंबकीय दिक्सूचक है। इसमें आवर्तन त्रुटियाँ नहीं होतीं और इसलिए द्रुत आवर्तन (rapid turns) को यह यथार्थतापूर्वक निर्देशित कर सकता है। घूर्णंचुंबकीय दिक्सूचक में एक स्वत:चालित घूर्णदर्शी चुंबकीय व्यवस्था के संरेखण (alignment) में रखा रहता है। इस प्रकार घूर्णाक्ष दिक्सूचक और चुंबकीय दिक्सूचक एक यंत्र में संयोजित कर दिए जाते हैं, जिससे बाह्य समंजन की कोई आवश्यकता नहीं रहती।
 
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दस्ती दिक्सूचक (Hand compass), समपार्श्वीय दिक्सूचक (Prismatic compass), वायुयान दिक्सूचक (Air-craft compass), सर्वेक्षण दिक्सूचक (Surveyor's compass), टैंक दिक्सूचक (Tank compass) प्रभृति, चुंबकीय दिक्सूचक के ही विभिन्न प्रकार है।
 
== घूर्णाक्ष दिक्सूचक ==
यह अचुंबकीय दिक्सूचक है, जो भ्रममान चकती (disc) के सिद्धांत पर कार्य करता है। इसका उपयोग नौबेड़े के पोतों में किया जाता है। इसमें एक घूर्णदर्शी होता है, जो ८,६०० घूर्णन प्रति मिनट की चाल से प्रत्यावर्ती धारा द्वारा चालित होता है। इसका कार्यसिद्धांत पृथ्वी के घूर्णन पर आधारित है। इस यंत्र के लिए विचरण और विचलन के किसी संशोधन की आवश्यकता नहीं होती। यह यथार्थ उत्तर दिशा को सूचित करता है। पोतों में चुंबकीय दिक्सूचकों के स्थान पर इसका उपयोग अत्यधिक हो रहा है।
 
== रेडियो दिक्सूचक ==
यह भी अचुंबकीय दिक्सूचक है। यह जिस रेडियो स्टेशन से समस्वरित (tuned) किया जाता है, उससे संबधित दिशा सूचित करता है। इसका रूप साधारणतया पाश एरियल (loop aerial) सदृश होता है, जैसा उन घरेलू रेडियो सेटों में प्रयुक्त होता है जिनमें बाह्य एरियल नहीं होते। रेडियो दिक्सूचक द्वारा बहुतेरे व्यक्तियों का जीवन समुद्र पर बचाया जा सका है।
 
== सूर्य अथवा तारा दिक्सूचक ==
यह सूर्य दिशा की सहायता से यथार्थ की उपसन्न दिशा ज्ञात करन का यंत्र है। सूर्य दिक्सूचक विशेषत: ध्रुवीय उड़ान (polar flights) के लिए लाभप्रद होते हैं। यहाँ चुंबकीय विचरण और निदेशक बल के परिवर्तन के कारण चुंबकीय दिक्सूचक का प्रयोग अत्यधिक कठिन होता है।
 
[[श्रेणी: नौवहन]]
 
[[af:Kompas]]
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[[nrm:Compas]]
[[pam:Paraluman]]
[[pap:Compas]]
[[pl:Kompas magnetyczny]]
[[pt:Bússola]]