"एकांकी": अवतरणों में अंतर
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इस काल में कुछ बेमानी (ऐब्सर्ड) एकांकी भी लिखे गए हैं जिनमें सत्यदेव दुबे कृत "थोड़ी देर पहले और थोड़ी देर बाद'; धर्मचंद्र जैन का "चेहरों के चेहरे'; मोहन राकेश का बीज नाटक "शायद' आदि उल्लेख्य हैं। डा. लक्ष्मीनारायण लाल, मोहन राकेश, विष्णु प्रभाकर, गंगाधर शुक्ल, विनोद रस्तोगी, उपेंद्रनाथ अश्क, कमलेश्वर तथा मनहर चौहान ने इधर बहुत से चित्रएकांकी भी प्रस्तुत किए हैं।
पाँचवें चरण के एकांकियों में या तो पाश्चात्य रचनाप्रक्रिया को कठोरता के साथ ग्रहण किया गया है अथवा उसमें प्रतिभा और बुद्धि से नए वस्तुविधान, नई अभिव्यंजना द्वारा मौलिक रूप का निर्माण कर लिया गया है। गीतों का इनमें एकांत अभाव है, प्रकाश का जमकर उपयोग किया गया है, जिसमें पर्दो की जरूरत बहुत कुछ समाप्त हो गई है। संवाद अत्यंत कसे हुए तथा चुटीले हैं। जीवन के नए ढंग, उसकी आशाओं, निराशाओं, छोटी छोटी समस्याओं तथा प्रति दिन की सामान्य घटनाओं को लेकर ये एकांकी रचे गए हैं। चित्र एकांकियों ने "आउट-डोर-हीनता' को तोड़ा है। इसमें अब पहाड़ी नदी की चंचलता, सड़कों पर भागती कारें, समुद्र में चलते यान, आकाश में शत्रुविमानों से जूझते "नैट' आदि दिखाए जाते हैं। गली एकांकी ने मंच को तोड़ा है तो बेमानी एकांकियों ने दर्शकों को ही मंचपर लाकर खड़ा कर दिया है।
==सन्दर्भ ग्रन्थ==
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