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अनुनाद सिंह (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{आधार}} 300px|right|thumb|मोथा का पौधा [[चित्र:Cyperus rotundus tuber01.jpg|300...) |
अनुनाद सिंह (चर्चा | योगदान) |
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[[चित्र:Nutgrass Cyperus
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▲[[चित्र:Cyperus rotundus tuber01.jpg|300px|right|thumb|मोथा की जड़ (गांठ)]]
'''मोथा''' (वैज्ञानिक नाम : साइप्रस रोटडंस / Cyperus rotundus L.) एक बहुवर्षीय सेज़ वर्गीय पौधा है, जो ७५ सें.मी. तक ऊँचा हो जाता है । भूमि से ऊपर सीधा, तिकोना, बिना, शाखा वाला तना होता है । नीचे फूला हुआ कंद होता है, जिससे सूत्र द्वारा प्रकंद जुड़े होते हैं, ये गूद्देदार सफेद और बाद में रेशेदार भूरे रंग के तथा अंत में पुराने होने पर लकड़ी की तरह सख्त हो जाते हैं । पत्तियाँ लम्बी, प्रायः तने पर एक दूसरे को ढके रहती हैं । तने के भाग पर पुष्पगुच्छ बनते हैं, जो पकने पर लाल-भूरे रंग में परिवर्तित हो जाते हैं । मुख्यरूप से कंद द्वारा संचरण होता है, इसमें बीज भी कुछ सहयोग देते हैं । नमी वाली भूमि में भी अच्छी बड़वार होती है, पर सामान्यतः उच्च भूमियों में उगाए जाने वाली धान की फसल के लिए प्रमुख खरपतवारों की सूची में आता है । इसका नियंत्रण कठिन होता है, क्योंकि प्रचुर मात्रा में कंद बनते हैं, जो पर्याप्त समय सुषुप्त रह सकते हैं । विपरीत वातावरण में ये लम्बे समय तक सुरक्षित रह जाते है । भूपरिष्करण क्रियाओं से इन कंदों में जागृति आ जाती हैं एवं ओजपूर्ण-वृद्धि के साथ बढ़वार होने लगती है ।इससे कभी-कभी ५०% तक धान की उपज में गिरावट पाई गई है।
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