"चीनी दर्शन": अवतरणों में अंतर

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[[Imageचित्र:yin-yang-and-bagua-near-nanning.jpg|thumb|300px|[[Yin Yang]] symbol and ''Ba gua'' paved in a clearing outside of Nanning City, [[Guangxi]] province, [[China's]].]]
 
[[चीनी भाषा]] में लिखे हुए पारम्परिक चीनी विचार को '''चीनी दर्शन''' कहा जाता है। इसका इतिहास कई हजार वर्षों पुराना है।
 
== चीनी दर्शन की उत्पत्ति ==
भारतीय एवं चीनी दर्शनों के मध्य अनेक समानताएँ हैं। जिस प्रकार [[भारतीय दर्शन]] चारों [[वेद|वेदों]], विशेषकर [[ऋग्वेद]] से प्रारंभ होता है, उसी प्रकार चीनी दर्शन छह "चिंग" या भागों, विशेषतया "यी चिंग" या परिवर्तनों की पुस्तक से आरंभ होता है।
 
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चौसठ षड्रेखाकृतियों के तुरंत बाद साहित्यिक पुस्तकों, की जिन्हें "कुआ-जय" कहते हैं अथवा षड्रेखाकृतियों के चिन्हसमूह और "याओ-जू" या रेखाओं के चिह्नसमूह कहते हैं, रचना का क्रम आता है। पहला, सभी षड्रेखाकृतियं के नामों और परिभाषाओं का वर्णन करता है। दूसरा, सभी षड्रेखकृतियें की प्रत्येक व्यक्तिगत रेखा के अभिप्रायों के नाम एवं संकेतां का विवरण उनके स्थानों एवं परिस्थितियों के अनुसार देता है। ये दोनों मूलपाठ वेदों की संहिताओं और ब्राह्मणों के समान है।
 
== चीनी दर्शन की शाखाएँ ==
जिस प्रकार भारतीय दर्शन की छह परंपरागत शाखाएँ षड्दर्शनों के नाम से प्रचलित हैं : (1) न्याय (2) वैशेषिक, (3) सांख्य, (4) योग, (5) मीमांसा, और (6) वेदांत। उसी प्रकार चीन दर्शन को उसी संख्या के समान शाखाएँ "लिउ चिआ" के नाम से प्रचलित हैं : (1) "जु-चिआ" या कनफ्यूशिअस शाखा, (2) "ताओ-चिआ" या ताओ शाखा, (3) "मो-चिआ" या मोहिस्ट शाखा, (4) "फा-चिआ" या विधिज्ञ शाखा, (5) "यिन-यङ चिआ" या विश्वविज्ञान शाखा तथा (6) "मिङ-चिआ" या तार्किक शाखा।
 
जिस प्रकार भारतीय दर्शन की छह शाखाएँ तीन समूहों में मिलाई जा सकती हैं : (1) न्याय वैशेषिक (2) सांख्य योग, और (3) मीमांसा वेदांत; उसी प्रकार उन्हीं संख्याओं में चीनी दर्शन की भी छ: शाखाएँ समूहों में संमिलित की जा सकती हैं : (1) कनफ्यूशिअस की विधिज्ञ शाखा, (2) ताओ की विश्वविज्ञान संबंधी शाखा तथा (3) मोहिस्ट तार्किक शाखा।
 
=== कनफ्यूशिअस की विधिज्ञ शाखा ===
कनफ्यूशिअस शाखा का नाम कनफ्यूशिअस (511-479 ई.पू.) के नाम के पश्चात् पड़ा जो विद्या एवं गुण दोनों में पूर्णताप्राप्त प्रथम एवं सबसे महान् गुरु माना जाता था और जिसने सबसे पहले साधारण जनता को विद्या और सद्गुण सिखलाया, जिसका एकाधिकार पहले आभिजात्य शासक वर्ग के हाथ में था। अतएव कनफ्यूशिअस के अनुयायी अन्य वस्तुआं की अपेक्षा ज्ञान एवं सद्गुण का आदर करते थे।
 
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कनफ्यूशिअस के पश्चात् इस शाखा के दो अन्य महान् व्यक्ति मेन-जु या मेनसिअस (371-289 ई.पू.) और सुन-जु (जगभग 289-238 ई.पू.) हुए। दोनों ने कनफ्यूशिअस का सबसे महान् गुरु के रूप में आदर किया और प्रकट रूप से उसी शिक्षाओं का अनुसरण किया : किंतु उन्होंने कनफ्यूशिअस की व्याख्या भिन्न भिन्न ढंगों से की और उनके दृष्टिकोण भी भिन्न भिन्न रहे। उनके मध्य सबसे प्रधान अंतर मानव स्वभाव के सिद्धांतों से संबध रखता था। मेनसिअस ने मानव स्वभाव को मौलिक रूप से अच्छा माना। मेंङ-जु : पुस्तक 2 अ, अध्याय 6। किंतु सुन जु ने कहा : "मानव स्वभाव बुरा है; शिक्षण द्वारा इसकी अच्छाई प्राप्त होती है।" (सुन-जु : अध्याय 23)। किंतु कनफ्यूशिअस ने स्वयं एक ही बार कहा था : "स्वभाव से मनुष्य लगभग एक समान होते हैं; अभ्यास से वे एक दूसरे से बहुत अलग हो जाते हैं।" (साहित्यिक झाँकियों के संग्रह : पुस्तक 17, अध्याय 2)। यह चीनी दर्शन में एक अत्यंत विवादास्पद समस्याओं में से है। दर्शन की विधिज्ञ शाखा, सही अर्थो में, राजनीतिक सिद्धांतों की एक पद्धति है जिसमें स्वतंत्र रूप से कनफ्यूशिअस, ताओ और मोहिस्ट अनुयायिओं के विचारों ओर आदर्शो का विलयन है। किंतु इसका अधिक संबंध बाद के दोनों की अपेक्षा पहले से अधिक है। अत: इसका अधिक लगाव कनफ्यूशिअस शाखा से है।
 
=== ताओ की विश्व-विज्ञान-संबंधी शाखा ===
चीन भाषा और साहित्य में "ताओ" अत्यधिक महत्वपूर्ण, व्यापक एवं रहस्यमय है। कभी कभी इसका अर्थ निरपेक्ष वास्तविकता या सतत सत्य होता है। कभी कभी इसका अर्थ मौलिक लक्ष्य या प्रकृति की सर्वोच्च शक्ति से लिया जाता है। कभी कभी इसका अर्थ सृष्टि की अभिव्यक्ति या सृष्टि के विकास की प्रक्रिया या मार्ग होता है। कभी कभी इसका अर्थ सिद्धांत और सद्गुण भी होता है। यह संस्कृत के तीन शब्द, ब्रह्म, धर्म और मार्ग के समानार्थक है। इसका विवरण लगभग समस्त चीनी धार्मिक, साहित्य विशेषकर धर्मगृहीत एवं दार्शनिक कृतियों में मिलता है और समस्त भिन्न भिन्न पक्षों में प्रयुक्त किया गया है जो भिन्न भिन्न ढंगो से भिन्न भिन्न वस्तुओं के लिये व्यवहृत हुआ है। ताओ शाखा विशेष रूप से ताओ के नाम की अधिकारी है क्येंकि इसने माओ को अधिक विशेषता से, अधिक उचित रूप से और अधिक गहराई से अन्य शाखाओं की अपेक्षा स्पष्ट है।
 
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विश्वविज्ञान संबंधी शाखा का दर्शन दो विश्वविज्ञान संबंधी सिद्धांतों पर आधारित है, अर्थात् "यिन" और "याङ"। इसलिये इनका नाम "यिन-यांङ चिआ" या विश्वविज्ञान संबंधी शाखा है। जैसा पहले ही वर्णित है, "यिन" और "याङ" शब्द पहले "यी-चिङ" या परिवर्तनों की पुस्तक में प्रकट हुए थे और उस "याङ" का अर्थ व्यवहृत और पुरुषोचित सिद्धांत या शक्ति है, और "यिन" का अर्थ निषेधक और स्त्रियोचित सिद्धांत या शक्ति है। इन दोनों के समीकरण से समस्त विश्व की उत्पत्ति हुई। इनकी व्याख्या गंभीरतापूर्वक एवं व्यापक रूप से कनफ्यूशिअस एवं ताओं दोनों के अनुयाइयों द्वारा की गई है। किंतु विश्वविज्ञान संबंधी दार्शनिकों ने इन दोनों सिद्धांतों का प्रयोग "यिन" एवं "यांङ" का मानव जीवन के सूक्ष्मतम पक्षों के प्रत्येक क्षेत्र का लेकर किया। यह शाखा वास्तव में अधिक या कम कनफ्यूशिअस और ताओ विचारधाराओं का संमिश्रण है। किंतु कनफ्यूशियस की विचारधाराओं की अपेक्षा इनका अधिक संबंध ताओ की विचारधारा से है। इसलिये यह ताओ विचारधारा से संबधित है।
 
=== मोहिस्ट तार्किक शाखा ===
मोहिस्ट शाखा का नाम मो-ति या मोजु (463-376 ई.पू.) के नाम पर पड़ा जो इस शाखा का साधारणत: जन्मदाता माना जाता है। प्राचीन चीनी इतिहास में मो-जु एक महत्वपूर्ण व्यक्ति माना जाता है।
 
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इस शाखा के सबसे महत्वपूर्ण प्रतिनिधि निम्नलिखित हैं : (1) हिय-शिह (लगभग 350-260 ई.पू.) और (2) कुङ- सुन कुङ् (लगभग 284-259 ई.पू.) हिय शिह की पुस्तक "वन-वु-शुओ" या दस सहस्त्र उपादानों पर निबंध जो बहुत पहले खो गया था। कुङ् सुन लुङ् की कृति "लुङ्-सुन-कुङ्-जु" की प्रामाणिकता संदेहात्मक है। हम लोग जो उनके सिद्धांतां के संबध में जानते हैं वे "शिह शिह" या हिय शिह की दस समस्याएँ, ओर अर्ह-शिह-यि-शिह या कुङ्-सुन-लुङ्. और अन्य तार्किकों की 21 समस्याएँ हैं। ये समस्याएँ अधिकतर विरोधाभास के रूप में समझी जाती हैं। वास्तव में ये विरोधाभास नहीं हैं बल्कि दार्शनिक और वैज्ञानिक प्रश्न, तात्विक और प्रत्यक्ष, सत्ताशास्त्रीय और विश्वविज्ञान संबंधी, ज्ञानवाद संबंधी और तार्किक समस्याएँ हैं : वे सभी विश्व में वस्तुओं की सापेक्षता के उदाहरण हैं। मुख्य विषय ये हैं : (1) समय और दूरी के समस्त विभाजन और अंतर कृत्रिम और कल्पित हैं। (2) स्थूल पदार्थो और वस्तुओं के अंतर और भेद बाह्म एवं सापेक्ष हैं, निरपेक्ष नहीं। (3) सभी वस्तुएँ और जीव वास्तव में एक और समान हैं (4) समय, दूरी और सृष्टि शाश्वत हैं, प्रारंभरहित, अंतरहित और सीमारहित हैं। अतएव हिय शिह का निष्कर्ष है : "समस्त् वस्तुओं को मान रूप से प्रेम की दृष्टि से देखना चाहिए, आकाश एवं पृथ्वी एक हैं।"
 
== उपसंहार ==
यद्यपि अनेक भिन्न भिन्न विचार एवं सिद्धांत चीनी दर्शन की भिन्न भिन्न शाखाओं में प्रचलित रहें हैं; फिर भी उनकी अनेक बातों में समानता रही है। इस प्रकार एकत्व में विषमता और नानात्व में एकत्व का प्रदर्शन मिलता है।
 
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इसलिये चीनी दर्शन की सभी भिन्न भिन्न शाखाएँ मानव जीवन और नीतिशास्त्र पर अधिक बल देती हैं। चीनी भाषा में नीतिशास्त्र का बहुत ही व्यापक अर्थ है। यह मावन के बीच के संबंधों के ही संबंध् में केवल नहीं बतलाता है, बल्कि मनुष्य और प्रकृति के मध्य के संबंध का भी वर्णन करता है और मनुष्य और सभी अन्य जीवों और वस्तुओं के संबंध में भी प्रकाश डालता है। चीनी दर्शन के अनुसार मानवता सामंजस्यपूर्ण समष्टिवाद का जीवन है न कि प्रबल उद्योग करते हुए व्यष्टि ओर निषेधक का जीवन। मानवता का अंतिम लक्ष्य और अभिप्राय सभी मानव जाति के लिये मंगल प्राप्ति होनी चाहिए, न व्यक्ति, न जाति और न राज्य ही अंतिम लक्ष्य होना चाहिए।
 
== बाहरी कड़ियाँ ==
* [http://www.literati-tradition.com/space.html Article "The Chinese Concept of Space"]
* [http://www.literati-tradition.com/time.html Article "The Chinese Concept of Time"]
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[[ar:فلسفة صينية]]
[[bo:རྒྱ་རིགས་ཀྱི་མཚན་ཉིད་རིག་པ།]]
[[ca:Pensament xinès]]
[[cs:Čínská filosofie]]