"ऐरावतेश्वर मंदिर": अवतरणों में अंतर

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ऐरावतेश्वर मंदिर , द्रविड़ वास्तुकला का एक हिंदू मंदिर है जो दक्षिणी भारत के तमिलनाड़ु राज्य में कुंभकोणम के पास दारासुरम में स्थित है. 12वीं सदी में राजराजा चोल द्वितीय द्वारा निर्मित इस मंदिर को तंजावुर के बृहदीश्वर मंदिर तथा गांगेयकोंडा चोलापुरम के गांगेयकोंडाचोलीश्वरम मंदिर के साथ यूनेस्को द्वारा वैश्विक धरोहर स्थल बनाया गया है; इन मंदिरों को महान जीवंत चोल मंदिरों के रूप में जाना जाता है.[1]

युनेस्को विश्व धरोहर स्थल
Great Living Chola Temples
विश्व धरोहर सूची में अंकित नाम
देश  भारत
प्रकार Cultural
मानदंड i, ii, iii, iv
सन्दर्भ 250
युनेस्को क्षेत्र Asia-Pacific
शिलालेखित इतिहास
शिलालेख 1987 (11th सत्र)
विस्तार 2004

पौराणिक कथा

ऐरावतेश्वर मंदिर भगवान शिव को समर्पित है. शिव को यहां ऐरावतेश्वर के रूप में जाना जाता है क्योंकि इस मंदिर में देवताओं के राजा इंद्र के सफेद हाथी एरावत द्वारा भगवान शिव की पूजा की गई थी. ऐसा माना जाता है कि ऐरावत ऋषी दुर्वासा के श्राप के कारण अपना रंग बदल जाने से बहुत दुखी था, उसने इस मंदिर के पवित्र जल में स्नान करके अपना रंग पुनः प्राप्त किया. मंदिर के भीतरी कक्ष में बनी एक छवि जिसमें ऐरावत पर इंद्र बैठे हैं, के कारण इस धारणा को माना जाता है.[2] इस घटना से ही मंदिर और यहां आसीन इष्टदेव का नाम पड़ा.

कहा जाता है कि मृत्यु के राजा यम ने भी यहाँ शिव की पूजा की थी. परंपरा के अनुसार यम, जो किसी ऋषि के शाप के कारण पूरे शरीर की जलन से पीड़ित थे, ऐरावतेश्वर भगवान द्वारा ठीक कर दिए गए. यम ने पवित्र तालाब में स्नान किया और अपनी जलन से छुटकारा पाया. तब से उस तालाब को यमतीर्थम के नाम से जाना जाता है.

वास्तुकला

 
पवित्र स्थान; सजे रथ के रूप में घोड़ों द्वारा खींचता हुआ
 
खंभे अवधि की सामाजिक-आर्थिक स्थिति को दर्शाता है

यह मंदिर कला और स्थापत्य कला का भंडार है और इसमें पत्थरों पर शानदार नक्काशी देखने को मिलती है. हालांकि यह मंदिर बृहदीश्वर मंदिर या गांगेयकोंडाचोलीश्वरम मंदिर से बहुत छोटा है, किंतु विस्तार में अधिक उत्तम है. ऐसा इसलिए है क्योंकि कहा जाता है कि यह मंदिर नित्य-विनोद , "सतत मनोरंजन, को ध्यान में रखकर बनाया गया था.

विमाना (स्तंभ) 24 मीटर (80फीट) उंचा है.[1] सामने के मण्डपम का दक्षिणी भाग पत्थर के बड़े पहियों वाले एक विशाल रथ के रूप में है जिसे घोड़ें द्वारा खींचा जा रहा है.[3]

भीतरी आंगन के पूर्व में बेहतरीन नक्काशीदार इमारतों का एक समूह स्थित है जिनमें से एक को बलिपीट (बलि देने का स्थान) कहा जाता है. बलीपीट की कुरसी पर एक छोटा मंदिर बना है जिसमें गणेश जी की छवि अंकित है. चौकी के दक्षिणी तरफ शानदार नक्काशी से युक्त 3 सीढ़ियों का एक समूह है. चरणों पर प्रहार करने से विभिन्न संगीत ध्वनियां उत्पन्न होती हैं.[4]

आंगन के दक्षिण-पश्चिमी कोने में 4 तीर्थ वाला एक मंडपम है. इनमें से एक पर यम की छवि बनी है. इस मंदिर के आसपास एक विशाल पत्थर की शिला है जिस पर सप्तमाताओं (सात आकाशीय देवियां) की आकृतियां बनी हैं.[4]

देवी-देवता

   
Horse-drawn chariot carved onto the mandapam of Airavatesvarar temple, Darasuram (left). The chariot and its wheel (right)are so finely sculpted that they include even the faintest details

मुख्य देवता की पत्नि पेरिया नायकी अम्मन का एक अलग मंदिर है जो ऐरावतेश्वर मंदिर के उत्तर में स्थित है. संभव है जब बाहरी आंगन पूरा रहा हो तो यह मुख्य मंदिर का ही एक हिस्सा रहा हो. वर्तमान समय में, यह एक अलग मंदिर के रूप में अकेला खड़ा है जिसके बड़े आंगन में देवी का मंदिर बना है.[4]

मंदिर में शिलालेख

इस मंदिर में विभिन्न शिलालेख हैं. इन लेखों में से एक में कुलोतुंगा चोल तृतीय द्वारा मंदिरों का नवीकरण कराए जाने का पता चलता है.[5]

बरामदे की उत्तरी दीवार पर शिलालेखों के 108 खंड हैं, इनमें से प्रत्येक में शिवाचार्या (शिव को मानने वाले संत) के नाम, वर्णन व छवियां बनी है जो उनके जीवन की मुख्य घटनाओं को दर्शाती हैं.[5][6][7]

गोपुरा के पास एक अन्य शिलालेख से पता चलता है कि एक आकृति कल्याणी से लायी गई थी, जिसे बाद में राजाधिराज चोल प्रथम द्वारा कल्याणपुरा नाम दिया गया, पश्चिमि चालुक्य राजा सोमेश्वर प्रथम से उसकी हार के बाद उनके पुत्र विक्रमादित्य षष्ठम (VI) और सोमेश्नर द्वितीय ने चालुक्यों की राजधानी पर कब्जा कर लिया.[5][8]

यूनेस्को वैश्विक धरोहर स्थल

 
एरावतेश्वर मंदिर का दृश्य

इस मंदिर को वर्ष 2004 में महान चोल जीवंत मंदिरों की सूची में शामिल किया गया. महान चोल जीवंत मंदिरों की सूची में तंजावुर का बृहदीश्वर मंदिर, गांगेयकोंडा चोलापुरम का गांगेयकोंडाचोलीश्वरम मंदिर और दारासुरम का ऐरावतेश्वर मंदिर शामिल हैं. इन सभी मंदिरों को 10 वीं और 12 वीं सदी के बीच चोलों द्वारा बनाया गया था और इनमे बहुत सी समानताएं हैं.[9]

टिप्पणियां

  1. ग्रेट लिविंग चोला टेम्पल्स - यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज सेंटर
  2. देखें पी.वी. जगदीस अय्यर, पीपी 350-351
  3. देखें चैतन्य, के, पी 42
  4. देखें पी.वी. जगदीस अय्यर, पी 351
  5. देखें पी.वी. जगदीस अय्यर, पी 353
  6. देखें चैतन्य, के, पी 40
  7. देखें गीता वासुदेवन, पी 55
  8. देखें रिचर्ड डेविस, पी 51
  9. देखें पी.वी. जगदीस अय्यर, पी 351

संदर्भ

  • Geeta Vasudevan (2003). The Royal Temple of Rajaraja: An Instrument of Imperial Chola Power. Abhinav Publications. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 81-701-7383-3.
  • P.V. Jagadisa Ayyar (1993). South Indian Shrines. New Delhi: Asian Educational Services. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 81-206-0151-3.
  • Krishna Chaitanya (1987). Arts of India. Abhinav Publications.
  • Richard Davis (1997). Lives of Indian images. Princeton, N.J: Princeton University Press. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 0-691-00520-6.

बाह्य कड़ियां