"ब्रह्मगुप्त": अवतरणों में अंतर

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== गणितीय कार्य ==
आचार्य ब्रह्मगुप्त का जन्म [[राजस्थान]] राज्य के [[भीनमाल]] शहर मे ईस्वी सन् ५९८ मे हुआ था| इसी कारण उन्हें भिल्लमालाआचार्य के नाम से भी कई जगह उल्लेखित किया गया है। यह शहर तत्कालीन गुजरात प्रदेश की राजधानी तथा हर्षवर्धन साम्राज्य के राजा व्याघ्रमुख के समकालीन माना जाता है। 'ब्रह्मस्फुटसिद्धांत' उनका सबसे पहला ग्रन्थ माना जाता है जिसमें शून्य का एक विभिन्न अंक के रूप में उल्लेख किया गया है । यही नहीं, बल्कि इस ग्रन्थ में ऋणात्मक (negative) अंकों और शून्य पर गणित करने के सभी नियमों का वर्णन भी किया गया है । ये नियम आज की समझ के बहुत करीब हैं। हाँ, एक फ़र्क ज़रूर है कि ब्रह्मगुप्त शून्य से भाग करने का नियम सही नहीं दे पाये: '''०/० = ०'''.
 
"ब्रह्मस्फुटसिद्धांत" के साढ़े चार अध्याय मूलभूत गणित को समर्पित हैं। १२वां अध्याय, गणित, अंकगणितीय शृंखलाओं तथा ज्यामिति के बारे में है। १८वें अध्याय, कुट्टक ([[बीजगणित]]) में [[आर्यभट्ट]] के रैखिक अनिर्णयास्पद समीकरण (linear indeterminate equation, equations of the form ax − by = c) के हल की विधि की चर्चा है। (बीजगणित के जिस प्रकरण में अनिर्णीत समीकरणों का अध्ययन किया जाता है, उसका पुराना नाम ‘कुट्टक’ है। ब्रह्मगुप्त ने उक्त प्रकरण के नाम पर ही इस विज्ञान का नाम सन् ६२८ ई. में ‘गुट्टक गणित’ रखा।)<ref>{{cite web |url= http://pustak.org/bs/home.php?bookid=2558|title= वैदिक बीजगणित